राजेन्द्र कॉलेज को उच्च स्तर का विवि बनाने के लिए भूतपूर्व छात्रोंं ने कसी कमर
भूतपूर्व विद्यार्थियों ने की प्लाटिनम जुबली की प्रस्तुति बैठक
बलांगीर। पश्चिम ओड़िशा की सर्वपुरातन उच्च शिक्षा संस्थान राजेन्द्र स्वयं शासित महाविद्यालय को सरकार सहबंधित विश्वविद्यालय की मर्यादा देने की घोषणा करने पर कॉलेज के भूतपूर्व विद्यार्थी संघ में खुशी का लहर दौड़ गई है। इसके लिए यताशीघ्र खाली पड़ी अध्यापक पद पर नियुक्ति देने सहित प्रस्तावित विश्वविद्यालय ओएसडी/कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया को गति देने की मांग की गई है।
बुधवार को संघ के अध्यक्ष ललित कुमार नायक के तत्वावधान में आयोजित साधारण परिषद बैठक में सैकड़ों भूतपूर्व विद्यार्थियों ने उपस्थित रहकर आगामी दिसंबर महीने तक धूमधाम से कॉलेज की प्लाटिनम जुबली पालन करने का आह्वान दिया गया। बैठक के प्रारंभ में कॉलेज के प्रभारी प्रधानाचार्य विनय कुमार जेना शैक्षिक वातावरण के लिए प्रबंधन द्वारा किए जा रहे कार्यों की सूचना दी। नागरिक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ। लक्ष्मीकांत महापात्र, अधिवक्ता जयराम साहू, अरुण मिश्र, छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष रतन महारणा, अनंत दास, गोपाल नायक एवं देवाशीष विश्वाल, सरस्वती नंद, सेवानिवृत प्राध्यापक देवेन्द्र मिश्र, समाजसेवी विरेन्द्र बनछोर, अरुण खुआस आदि ने फिलहाल के कार्यकर्त्ताओं को लेकर और कुछ समय तक दायित्व निर्वाह करने सहित बाद में कमेटी गठन करने का प्रस्ताव दिया था। मनिषा गौतमी, अनिल मोदी, असीम भोई एवं ज्योतिरंजन पाणिग्राही ने अपने अपने बैच का दायित्व लेने का आश्वासन दिया। प्रोफेसर संतोष रथ एवं प्राध्यापक रविशंकर पांडिया ने विश्वविद्यालय गठन की रूपरेखा पर विस्तृत चर्चा की। अधिवक्ता भवानी शतपथी एवं डॉ। लक्ष्मीकांत महापात्र ने भूतपूर्व छात्र संघ की और अधिक बैठक आयोजन करने की आवश्यकता पर सूचना दी। सरोज त्रिपाठी ने प्लाटिनम जुबली स्वागत द्वार निर्माण एवं अकादमीक चेयर की स्थापना पर बल दिया तथा सुमितराम भरद्वाज ने कृतिविद् साधकों की स्मृति में विभिन्न प्रेक्षालय का नामकरण करने का प्रस्ताव दिया। डॉ। वेणुधर पांडे एवं अधिवक्ता संघ के सचिव अमन नाग ने केवल भूतपूर्व विद्यार्थियों की सहयोग राशि से जयंती पालन करने का मत दिया था। अध्यापक नारायण मिश्र ने कॉलेज में शैक्षिक वातावरण सृजन करने की दिशा में प्रकाश डाला। अध्यापक विभूदेन्दू महांति, पूर्व नगरपाल प्रदीप साहू, राजकिशोर दास आदि ने भी अपने अपने विचार रखे। अंत में प्रभाष पाणिग्राही ने धन्यवाद ज्ञापन किया।