भोलेबाबा की नगरी काशी में खेली गई चिता भस्म की होली, शमशान घाट पर दिखा अदभूत नाजारा, एक बार आप भी जरूर देखें
1 min readदेशभर में होली का त्योहार इस साल 29 मार्च को मनाया जाएगा, लेकिन धर्म की नगरी काशी में इसकी शुरूआत रंगभरी एकादशी से ही हो जाती है। काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाश्मसान पर चिता भस्म के साथ खेलकर होली के पहले इस पर्व की शुरूआत कर दी। इसके बाद ही काशी में होली की शुरुआत हो जाती है। गुरूवार को श्मशान घाट पर अदभूत नाजारा देखने को मिला।
यहां भक्त बाबा संग होली खेल रहे हैं। एक दिन पहले शिवभक्तों ने बाबा संग गुलाल से होली खेली तो उसके दूसरे दिन महादेव के भक्तों ने श्मशान में जलती चिताओं के बीच चिता की भस्म से होली खेली।
इसे मसाने की होली भी कहा जाता है। इस दौरान पूरा मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghaat) व गलियां हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान हो उठा। हर-हर ओर डमरू की आवाज के साथ चिता की भस्म से होली खेली जा रही थी। इसका हिस्सा बनने ओर इसे देखने के लिये घाट ओर वहां तक आने वाली गलियां हजारों लोगों से अटी पड़ी थीं।
परंपरा के अनुसार रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भगवान शिव स्वरूप बाबा मशाननाथ की पूजा कर श्मशान घाट (मणिकर्णिका घाट) पर चिता की भस्म से उनके गण होली खेलते हैं।
रंगभरी एकादशी पर महाश्मशान में खेली गई इस अनूठी होली के पीछे एक प्राचीन मान्यता हैं। कहा जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी, लेकिन वो अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं।