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December 24, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

कोरोना हारेगा, भारत जीतेगा: मधु कोठारी

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कोरोना तुम भारत में आकर आतंक मचाए हो,
तुम चीन से आकर के भारत पर छाए हो,
भारत के नर नारी को तुम दुर्लभ कर डाले हो,
बच्चों बुढोऔर जवानों को रोग ग्रसित कर डाले हो,
क्या सोचा है तुमने? जमकर यहां रहना है?

कोरोना, हम तुमसे डरने वालों में से नही है, तुम्हें पता नहीं शायद ये धरती भगवान महावीर, बुद्ध , मर्यादा ‌पुरूषोतम राम, श्री कृष्ण की है । हम तुम्हारे भयंकर आतंक से घबराने वालो में से नहीं हे , तुमसे डट कर मुकाबला करेगें और तुम्हे हम भारतवासी हरा कर ‌ही‌ दम लेंगे । ये संकट की घडी और ये‌ महामारी कै काल मैं हमें अपने विचारों को सकारात्मक रखकर एकजुट होकर देश की रक्षा करनी है।

हमारी पुलिस फोर्स, नगर निगम के वर्कर, डॉक्टर, नर्स, अलग-अलग एनजीओ की कार्यकत्र्ता, हमारे सरकार के लोग, पत्रकार, राशन वाले, सब्जी वाले, दूध वाले, बिल्डिंग के वॉचमैन और भी ऐसे जरूरी काम करने वाले कई लोग हम सुरक्षित रहे, इसके लिए अपनी जान जोखिम में डालकर दिन रात काम कर रहे हैं। इन निस्वार्थ कर्म योद्धा जो हमें रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध करवा रहे हैं वे इस लड़ाई में बहुत ही अहम भूमिका निभा रहे हैं। इनकी स्वार्थ हीन निष्ठा और सेवा भाव एक बहुत बड़ा कारण है देश को सुरक्षित रखने का।

हमारा सौभाग्य है कि हम ऐसी प्रधानमंत्री की छत्रछाया में हैं, जिनकी दूरदर्शिता ने इतनी बड़ी महामारी का संकट जो पूरे विश्व पर छाया है उससे निपटने की तैयारियां व कर्तव्यनिष्ठा बेमिसाल है। आज उनके लिए दिल से एक ही आवाज निकलती है:
“धरा जब-जब विकल होती, मुसीबत का समय आता,
किसी भी रूप में कोई महामानव चला आता”।

हमारा सौभाग्य है कि हम उन लोगों के बीच में है जो 24 घंटे काम कर रहे हैं ताकि हम और हमारे परिवार वाले सुरक्षित रहें।आज के इस दौर में लोगों की नौकरियां जा रही है, दुकानें व कारोबार बंद हो रहे हैं, निम्न वर्ग के पास अपनी दिनचर्या चलाने का साधन नहीं रहा, खाने के लाले पड़ रहे हैं सब कुछ जैसे बदल सा गया है, जिंदगी मानो थम सी गई है, एक सन्नाटा है जैसे कोई बड़ा सा ताला इस दुनिया पर लग गया है। परंतु हमें इस हालात में अपने दृष्टिकोण को सही रखना है इन विचारों की उलझन में हम कहीं उलझ ना जाए। अगर हमारी सोच सकारात्मक रही तो यह कोरोनावायरस हमसे कुछ लेकर नहीं अपितु हमें कुछ देकर ही जाएगा।

आज सभी व्यक्ति भौतिक चकाचौंध और व्यापारिक होड़ में अपनी निजी जिंदगी को गौण कर बैठा है। अक्सर घरवालों की शिकायतें अपने पति अपने बेटे से रहती है कि आपके पास तो कभी घर वालों के लिए समय ही नहीं रहता, तो आज इस लोकडाउन के दौर में उनकी शिकायतें भी समाप्त हो गई।

इस कोरोनावायरस ने सभी को परावलमलंबी से स्वावलंबी बना दिया। जिसने कभी एक गिलास पानी भी नहीं भरा होगा आज वह घर के सभी कामों में हाथ बंटाने लगा।

आज मुझे भगवान महावीर के द्वारा बताए गए धर्म व व्रतों का स्मरण हो रहा है वह है अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे व्रतों का अनुसरण करते हुए अपने घर,‌ समाज व राष्ट्र के हित के लिए उन सिद्धांतों पर चलना ही हमारी जिंदगी का लक्ष्य होना चाहिए। किसी ने क्या खूब कहा है:

आज हमारी हवा हमसे रूठ गई है,‌ रूठी हवा को मना लेते हैं लाड प्यार से घर वापस बुला लेती हैं।
आज हम तड़प रहे है कब समुद्र की लहरों से खेलेंगे, पहाड़ों पर जाकर चीखें चिल्लाए, बाहर रास्तों पर तफरी करें, गाड़ी की चाबी घुमा कर हवा से बातें करें, यार दोस्तों के ‌साथ जप़ी शपी, रिश्तेदारों में मस्ती करें।
पर रुकते है पहले रूठी ‌हवा को मना लेते हैं, लाड प्यार से घर वापस बुला लेते हैं।
आज किसी की डॉक्टर मां घर से अस्पताल में है, किसी का पुलिस भाई आज भी सड़क पर तैनात है, किसी की बुढ़ी नानी ने खेत में आज भी सब्जियां उगाई है, किसी की दीदी आज भी झुग्गी झोपड़ियों में अनाज पहुंचा रही है, हमारी भूखी हवा को मना रही है।
हमें भी घर बैठने की एक छोटी सी जिम्मेदारी दी गई है तो रुकते हैं हमारी एक गलती एक जान मांग रही है। हमारी एक गलती से एक जान जा रही है।

रुकते हैं समंदर वहीं है , पहाड़ वहीं हैं, उगता डूबता सूरज चांद की रोशनी, टिमटिमाते तारे, तफरी के रास्ते, मटरगश्ती के अड्डे सब वहीं है, और यही कह रहे हैं कि रूको तभी हमारा देश सुख समृद्धि व को कोरोना मुक्त हो पाएगा। पहले दो कि हवा को मना लेती हैं लाड प्यार से घर वापस बुला लेते हैं तो रुकते हैं।

मधु कोठारी
राउरकेला, उड़ीसा

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