मनुष्य के कर्म ही काल को बुलावा देते हैं – आचार्य युवराज पांडेय
1 min read- शेख हसन खान, रायपुर / गरियाबंद
- महामाया मंदिर में श्री शिव महापुराण कथा
रायपुर। महामाया मंदिर के सत्संग भवन में चल रही श्री शिव महापुराण की कथा में कथा व्यास आचार्य श्री रामानुज युवराज पांडेय ने कहा मनुष्य के जीवन में काल खुद से नहीं आता, बल्कि मनुष्यों द्वारा किए गए कर्म ही काल को बुलावा देते हैं। यानी मनुष्य खुद ही काल को आमंत्रित करता है।
कथा प्रसंग का श्रवण कराते हुए पंडित युवराज पांडेय ने कहा, प्रजापति दक्ष को पद मिलने के बाद अहंकार हो गया और अहंकार ही मनुष्य को पूरी तरह काल के गाल में समाहित कर देता है। प्रजापति दक्ष ने सुंदर कन्या प्राप्ति के लिए माता भगवती की तपस्या की। माता भगवती ने प्रजापति दक्ष के यहां सती रूप में जन्म लिया और वे भगवान भोलेनाथ के प्रति समर्पित होने लगीं, उनकी भक्ति भोलेनाथ में लगने लगी। तब प्रजापति दक्ष के मन में अहंकार होने लगा कि भोलेनाथ के पास तो धन-दौलत हीरे- जवाहरात कुछ भी नहीं है, ऐसे फक्कड़ बाबा को मैं अपनी बेटी दूंगा तो निश्चित ही मेरी पुत्री को तकलीफ होगी और दक्ष प्रजापति भगवान भोलेनाथ से दुराव रखने लगा।
भाव से बुलाने पर भगवान खींचे चले आते हैं
माता सती बेटी रूप में दक्ष प्रजापति के यहां धीरे-धीरे बड़ी हुईं। एक दिन वे घर से जंगल की ओर निकलीं, जहां उन्हें भगवान भोलेनाथ के विशाल शिवलिंग के दर्शन हुए। माता सती ने जब उस विशाल शिवलिंग का स्पर्श किया तो स्पर्श करते ही उन्हें अग्नि तत्व की प्राप्ति हुई। उनका तेज अग्नि की भांति बढ़ने लगा और उन्हें भगवान भोलेनाथ के बारे में पूर्ण जानकारी हो गई। उसके बाद ऋषि-मुनियों ने माता सती को भगवान भोलेनाथ का एक शिवलिंग प्रदान किया। सती ने उस शिवलिंग को दक्ष प्रजापति के यहां देवताओं द्वारा जहां अनुष्ठान चल रहा था, वहां स्थापित कर दिया। फिर उन्होंने अपने हाथ में एक बिल्व पत्र लेकर भगवान भोलेनाथ को मन से याद किया, अश्रुपूरित आंखों से उनकी पुकार सुनकर भगवान भोलेनाथ साक्षात दक्ष प्रजापति के यहां प्रकट हो गए। भगवान भोलेनाथ को देख माता सती के मन में उनके प्रति अपार प्रेम उत्पन्न हुआ और यहीं पर माता सती और भगवान भोलेनाथ का पहला मिलन हुआ।