23 मार्च 1931, यही वो दिन था जब अंग्रेजी हुकूमत ने भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था
1 min readरायपुर। श्री रावतपुर सरकार यूनिवर्सिटी, रायपुर के कला संकाय द्वारा “शहीद दिवस” 23 मार्च पर प्रातः 11.30 वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में मुख्य वक्ता यूनिवर्सिटी के प्रति-कुलाधिपति, श्री राजीव माथुर जी, अति विशिष्ट वक्ता अधिष्ठाता, अकादमिक प्रो. कपिल कुमार बंसल जी, विशिष्ट वक्ता अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. (डॉ.) शोभना झा एवं वक्तव्य विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग डॉ. सविता वर्मा, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, शिक्षा विभाग डॉ. राकेश कुमार डेविड, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, अंग्रेजी विभाग सुश्री श्रद्धा उपाध्याय एवं अध्यक्षीय वक्तव्य कुलपति, प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार पाठक जी द्वारा दिया गया। वेबिनार का आरंभ यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री रविशंकर महाराज जी को नमन करते हुए किया गया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रति-कुलाधिपति, श्री राजीव माथुर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 23 मार्च 1931, यही वो दिन था जब अंग्रेजी हुकूमत ने भारत माता के लाड़ले सपूतों, भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। तीनों क्रांतिकारियों की याद में आज के दिन शहीदी दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि भगत सिंह का साहस नई पीढ़ी के लिए आदर्श बना। उनके विचारों का पता, उनके जेल के दिनों में लिखे खत से चलता है। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से देश के युवा उग्र हो जाएंगे। भगतसिंह ने फांसी की सजा सुनाने के बाद भी माफीनामे से साफ इनकार कर दिया था, उनकी शहादत से न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली, बल्कि नव युवकों के लिए भी वे प्रेरणा स्त्रोत बन गए। साथ ही युवाओं को आह्वान करते हुए कहा कि प्रतिस्पर्धा के युग भारत को वैश्विक ताकत बनान चाहते है तो सबसे पहले अपने प्रतिस्पर्धी देशों की भाषा सीखिए जिससे न आप उन्हें प्रतिस्पर्धा दे सकेंगे अपितु वैश्विक शांति एवं सद्भाव को भी स्थापित कर भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव,गाँधी एवं अमर शहीदों के सपनों पूरा कर सकेंगे।
कुलपति, प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार पाठक जी ने कहा कि भारत का युवा जीवंत, ऊर्जावान और गतिशील होने के साथ किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम है, बशर्ते वह सही मार्ग पर चलता रहे। ऐसे में भारतीय युवाओं को सदैव याद रखना चाहिये कि आपकी मान्यताएँ आपके विचार बन जाते हैं, आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कार्य बन जाते हैं, आपके कार्य आपकी आदत बन जाते हैं, आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं, आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती हैं। अधिष्ठाता, अकादमिक प्रो. कपिल कुमार बंसल जी ने भारत के युवाओं को अधिक जीवंत बनाने और राष्ट्र-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु प्रेरित करने के लिये उनमें भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के मूल्यों को विकसित करने की आवश्यकता है।
- अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. (डॉ.) शोभना झा जी ने कहा भगतसिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। आज भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। भारत की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी। विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग डॉ. सविता वर्मा ने अमर शहीदों को नमन करते हुए कहा कि अपने परिवर्तनकारी विचारों व अद्वितीय त्याग से स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने वाले और देश के युवाओं में स्वाधीनता के संकल्प को जागृत करने वाले शहीद भगत सिंह जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन। भगत सिंह जी युगों-युगों तक हम सभी देशवासियों के प्रेरणा के अक्षुण स्त्रोत रहेंगे। एसोसिएट प्रोफ़ेसर, शिक्षा विभाग डॉ. राकेश कुमार डेविड ने बताया कि भगतसिंह ने महज 23 वर्ष की छोटी-सी उम्र में चिन्तन का जो धरातल हासिल कर लिया था वह उनके युगद्रष्टा, युगपुरुष होने का ही प्रमाण था। ऐसे महान चिन्तक ही इतिहास की दिशा बदलने और गति तेज़ करने का माद्दा रखते हैं। भगतसिंह की शहादत भारतीय जनता को आज भी क्षितिज पर अनवरत जलती मशाल की तरह प्रेरणा देती है, पर यह भी सच है कि उनकी फाँसी ने इतिहास की दिशा बदल दी। यह सोचना ग़लत नहीं है कि भगतसिंह को 23 वर्ष की अल्पायु में यदि फाँसी नहीं हुई होती तो राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष का इतिहास और भारतीय सर्वहारा क्रान्ति का इतिहास शायद कुछ अलग ढंग से लिखा जाता।
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, अंग्रेजी विभाग सुश्री श्रद्धा उपाध्याय जी ने कहा कि महान क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह ने सही अर्थों में आजादी का मूल्य समझा था, तभी तो 23 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए। वह चाहते थे कि उनके इस निर्णय से देश के अन्य युवा भी प्रभावित हों और आजादी की लड़ाई में आगे आएं। उक्त वेबिनार का संयोजन अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. डॉ. शोभना झा जी द्वारा किया गया. संचालन डॉ. अवधेश्वरी भगत, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, इतिहास विभाग द्वारा किया गया। अधिष्ठाता,छात्र कल्याण डॉ.कप्तान सिंह जी ने आभार प्रदर्शन करते हुए कहा कि भगत सिंह ने अपने जीवन में झुकना कभी स्वीकार नहीं किया,उनका मानना था कि सच के लिए हमें अगर लड़ना पड़े तो सदैव लड़ना चाहिए। आज भी हम देखते हैं कि भारत जैसा युवा देश कहीं न कहीं भगत सिंह के विचारों से प्रेरणा लेता है। वे कहते थे कि व्यक्ति को मारा जा सकता है, परंतु विचारों को नहीं। वेबिनार में कला संकाय के समस्त प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों की सक्रीय सहभागिता रहीं।