22 मई विश्व जैव विविधता दिवस पर सरीसृप पर बनी किताब का किया गया विमोचन, संस्था को पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया
1 min read- रामकृष्ण ध्रुव गरियाबंद
22 मई हर साल विश्व जैव विविधता दिवस के नाम से मनाया जाता है जिसका उद्देश्य राज्य में जैव विविधता के प्रति लोगों को जागरूक करने का होता है। इस उपलक्ष्य पर नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी संस्था के द्वारा बनाई गई किताब जो पूरे राज्य के सरीसृपों पर आधारित हैं, का विमोचन माननीय मुख्य मंत्री भूपेश बघेल, माननीय वन मंत्री मोहम्मद अकबर, माननीय स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव, प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ, प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी, और सदस्य सचिव छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड अरुण कुमार पांडे द्वारा राज्य के सरीसृप पर बनी किताब स्नेक एंड अदर रेप्टाइल्स ऑफ छत्तीसगढ़ का विमोचन किया गया । इसी के साथ संस्था द्वारा पिछले 16 सालों में 20,000 से ज्यादा सांपों एवं वन्यजीवों के बचाव कार्य के लिए सम्मानित किया गया।
यह किताब राज्य में पाए जाने वाली 75 प्रजाति के सरीसृपों के बारे में है जिनमें 40 साप, 7 कछुए, 1 मगर और छिपकली के 27 प्रजाति शामिल है। इस किताब में सर्पदंश एवं सर्पों के पहचान से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई है ।
इस किताब से राज्य के विशेषज्ञ, संस्थाओं एवं छात्रों को इन्हें समझने में काफी मदद मिलेगी। और यह किताब छत्तीसगढ़ के सरीसृप विविधता के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगी। इस अवसर पर हम कुछ बेहद खास लेकिन दुर्लभ सरीसृप के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा विषैला सर्प
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले मे पाया जाता है दुनिया का सबसे बड़ा विषैला सर्प “किंग कोबरा” जो 15 फीट तक लम्बा होता है और इसमे न्युरोटोक्सिक विष होता हैं। यह बेहद घने वनो मे रहता हैं और फन उठा कर 4 फीट तक खडा हो सक्ता हैं।
उड़ने वाला सांप
क्या सांप भी पक्षियों की तरह उड सकते हैं, जवाब है नही लेकिन कुछ सांप जैसे “ओरनेट फ़्लाइंग स्नके” अपने शरीर को चपटा कर एक पेड से दूसरे पेड़ तक ग्लाइड करते हैं। कयी बार तो देखा गया है की वे 50-100 मीटर तक ग्लाइड कर सकते हैं। यह सांप बेहद दुर्लभ होता है और राज्य मे गरियाबंद, धमतरी, बस्तर आदि मे पाया गया हैं।
बिना पैर वाली छिपकली
कुछ छिपकलियां जैसे सांप सिल्ली या स्किन्क सामान्य तौर पर सभी देख। आज तक छत्तीसगढ़ राज्य के सरीसृपों पे कोई भी दस्तावेज नही बने थे जो इन जीवों को समझने और उनके संरक्षण में मे कारगर साबिित।