योगी सन्त नहीं सामंती चरित्र के नेता, राम की नैया पार लगाने वाले केवट की नैया को डुबाया
1 min read“एससी/एसटी कमीशन के अध्यक्ष बृजलाल बोल रहे झूठ -लौटन राम निषाद”
लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटन राम निषाद ने कहा कि सन्त सत्य वचन बोलता है। वही बोलता है और वही वादा करता है जिसे निभा सके । सन्त अपनी बातों से मुकरता नहीं । जो अपनी कही बात व किये गये वादे से मुकर जाये वह सन्त नहीं,ढ़ोंगी व फ़रेबी है। राम के वंशज क्षत्रिय अपने वचन पर अटल रहते रहे हैं। राम के कुल की मर्यादा रही है कि – ‘‘रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई” ,अजय कुमार सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ श्रीराम के वंशज बनतें हैं, पर आये दिन राम के कुल की मर्यादा को तार-तार कर रहे हैं। निषाद, बिन्द, केवट, कश्यप, धीवर, माँझी, मल्लाह, तुरहा आदि जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रस्ताव को वापस लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम की नैया पार लगवाने वाले निषादराज व पार लगाने वाले केवट के वंशजों के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किये हैं। जिससे सिद्ध होता है कि योगी सन्त नहीं सामंती व जातिवादी चरित्र के नेता हैं। राम की नैया पार लगाने वाले केवट व राम की मुसीबत में मदद करने वाले निषाद राज के वंशजों की नैया को योगी ने डुबा दिया।
निषाद ने कहा कि 7 जून, 2015 को योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि निषाद जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलना ही चाहिए। उनका आन्दोलन व माँग जायज है। 3 जुलाई 2016 को गोरखपुर के निषाद मछुवारा सम्मेलन के मंच से योगी ने एलान किया था कि अब निषादों के आरक्षण , अधिकार व मान सम्मान की लड़ाई भाजपा लड़ेगी। निषाद आरक्षण की लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ने का संकल्प लिये थे। परन्तु भाजपा व योगी आदित्यनाथ ने अपना वादा पूरा न कर निषाद समाज के साथ विश्वास घात किया है। योगी ने 2004 से चले आ रहे 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रस्ताव को वापस लेकर इन जातियों के संघर्ष को मिट्टी में मिला दिया। निषाद ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जाति आयोग उ0प्र0 के अध्यक्ष बृजलाल के बयान को झूठा करार देते हुए कहा कि 1950 से 1978 तक उ0प्र0 में पिछड़ी जातियों को आरक्षण ही नही था तो इन्हें पिछड़ी जाति का 1950 से 1984 तक प्रमाण पत्र कैसे मिलता था। उन्होंनेे बताया कि राष्ट्रपति की 10 अगस्त 1950 की अधिसूचना के आधार पर मझवार,तुरैहा,बेलदार,गोंड़,खरवार जाति को अनुसूचित जाति में रखा गया। बृजलाल की कोरी जाति को भी 1977 तक पूरे प्रदेश में एस0सी0 का दर्जा प्राप्त नहीं था। गोंड़ व खरवार को बोल-चाल की भाषा में कमकर व कहार भी कहा जाता है। जो पेशावाचक शब्द है।सेन्सस-1961 में मल्लाह,केवट,मांझी,गोंड़ मझवार,मुजाविर,राजगोंड आदि को अनुसूचित जाति मझवार का पर्यायवाची व वंशानुगत नाम आरजीआई/जनगणना आयुक्त द्वारा माना गया है। बृजलाल जातिवादी मानसिकता से प्रेरित होकर गोंड़ व खरवार जाति के प्रमाण पत्र को गलत बता रहे हैं।5 सितम्बर,2001 के केंद्रीय मंत्रिपरिषद द्वारा कहार, गोडियन,धुरिया,रैकवार,बाथम,धीमर,राजगोंड आदि को गोंड़ जनजाति की पर्यायवाची माना जा चुका है।भाजपा सरकार ने 2002 में राजपत्र जारी कर सोनभद्र,चंदौली, मिर्ज़ापुर, वाराणसी,ग़ाज़ीपुर, जौनपुर, आज़मगढ़, मऊ,बलिया,देवरिया,गोरखपुर,कुशीनगर आदि जिले में गोंड़ व ग़ाज़ीपुर,बलिया, चंदौली, मऊ,सोनभद्र, मिर्ज़ापुर आदि में खरवार को अनुसूचित जनजाति की मान्यता दिया।राष्ट्रीय निषाद संघ भाजपा सरकार व बृजलाल के जातिवादी मानसिकता के विरुद्ध आन्दोलन करेगा।