पेयजल के लिए पहाड़ी कमार आदिवासी ग्रामों में मचा हाहाकार, झरिया खोदकर ग्रामीण बुझा रहे हैं प्यास
1 min read- शेख हसन खान, गरियाबंद
- नदी नाले सुखने से पालूत मवेेशियों को पहाड़ी के नीचे अपने रिश्तेदारों के घर छोड़ने लगे हैैं
- लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग अब तक कुर्वापानी, ताराझर, भालूडिग्गी में एक हेडपम्प नहीं लगा पाया
मैनपुर – केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा हर घर तक पानी पहुचाने के लिए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के माध्यम से जल मिशन येाजना के तहत करोडों रूपये खर्च किया जा रहा है, लेकिन गरियाबंद जिले के आदिवासी विकासखण्ड मैनपुर के पहाडी के उपर बसे कमार आदिवासी बाहूल्य ग्राम कुर्वापानी, ताराझर, भालूडिग्गी में आज आजादी के सात दशक बाद भी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग एक हेडपम्प भी नहीं लगा पाई है। विभाग के अधिकारियो के द्वारा पहाडी गांव का हवाला देकर हेडपम्प लगाने में असमर्थतथा जाहीर किया जाता है, जबकि इन ग्रामों में ओडिसा के तरफ से बडे वाहनो में अन्य निर्माण कार्यों के लिए निर्माण सामग्री आसानी से पहुंचाई जा सकती है तो यह सवाल लोगों को सोचने को मजबूर करता है कि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग इन ग्रामों में हेडपम्प खनन क्यों नहीं कर सकता।
यदि विभाग चाहे तो हाथ बोर, डग बोर के माध्यम से इन ग्रामों में हेडपम्प खनन करवाकर कमार जनजाति आदिवासियों को शुध्द पेयजल उपलब्ध कराई जा सकती है लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनने के कारण पहाडी के उपर निवास करने वाले कमार जनजाति के लोग झरिया खोदकर पानी पीने विवश हो रहे है। तहसील मुख्यालय मेैनपुर से 18 किलोमीटर दुर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गोद ग्राम कुल्हाडीघाट एंव उसके आश्रित ग्राम जो कुल्हाडीघाट से 20-22 किलोमीटर दुर पहाडी के उपर कुर्वापानी ,ताराझर, भालूडिग्गी ओडिसा सीमा से लगा है। इन ग्रामों की जनसंख्या लगभग 360 की आसपास बताई जाती है और यहा विशेष पिछडी कमार जनजाति के लोग निवास करते है, जिनके विकास और उत्थान के लिए राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा अनेक योजनाए संचालित किया जा रहा है लेकिन आज भी कमार जनजाति के लेागो को पीने के लिए शुध्द पेयजल उपलब्ध नही हो पा रहा है तो अन्य विकास की बाते यहा बहुत दुर की बात है।
कहने को कुर्वापानी और ताराझर मे दो कुए का निर्माण किया गया है लेकिन तेजी से गर्मी और पहाडी होने के कारण कुआं सुखने का कागर पर है साथ ही गांव के नजदीक से झीरन पानी नदी बहती है इस नदी में ग्रामीणाें के द्वारा चार से पांच फीट रेत व पत्थर को हटाकर झरिया खोदा गया है और इस झरिया का पानी ग्रामीण पीने को मजबूर हो रहे हैं। गांव से थोडा दुर होने के कारण झरिया मे अकेला ग्रामीण पानी लेने भी नहीं जा सकता क्योकि जंगल होने के कारण वन्य प्राणी भी अपना प्यास बुझाने झरिया के आसपास विचरण करते रहते है, जिससे ग्रामीणाें पर वन्य प्राणियों द्वारा हमला का अंदेशा बना रहता है। गांव के ग्रामीण महिलाए एक साथ समूह में झरिया का पानी लेने जाते है, साथ मे पुरूष वर्ग अपने पारम्परिक हथियार तीर धनुष सुरक्षा के लिए ले जाते है।
तब कही जाकर ग्रामीणों को पीने के लिए पानी उपलब्ध हो पाता है, ग्रामीण जयलाल कमार, रामेश्वर कमार, सहदेव कमार, राजमन, अनंत राम, लछन्तीन बाई, पे्रमिन बाई ने राशन खरीदने कुल्हाडीघाट पहुंचे थे तो उन्होंने बताया कि गांव में अपे्रल माह मे ही पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है और यहा जो ग्रामीण अपने मवेशी पालकर रखे है। उन्हे पीने के लिए पानी की दिक्कत होने लगी है इसलिए मवेशियों को अपने रिश्तेदार के घर ओडिसा या पहाडी के नीचे कुल्हाडीघाट के आसपास गांव मे अब लाने लगे है। यह मवेशी गर्मी भर उनके रिश्तेदारों के घर रहेंगे, और बारिश में खेती किसानी प्रारंभ होने पर नदी नाले में पानी भर जाने पर वापस ले जायेंगे।
बहरहाल ताराझर कुर्वापानी भालूडिग्गी के ग्रामीण गर्मी लगते ही बुंद बुंद पानी के लिए जदोंजहद करते देखे जा सकते है, पहाड़ी में बसे होने के चलते ग्राम कुर्वापानी, ताराझर, भालूडिग्गी के ग्रामीणों को शिक्षा, सड़क, पेयजल, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं वर्षो से नहीं मिल रही है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है क्या पहाड़ी मे बसे कमार आदिवासी जनजाति के लोगो को बुनियादी सुविधा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
- क्या कहते है सरपंच
ग्राम पंचायत कुल्हाड़ीघाट के सरपंच धनमोतिन सोरी ने बताया ग्राम कुर्वापानी , भालूडिग्गी , ताराझर मे एक भी हेडपम्प नही है , कुंआ है लेकिन गर्मी मे सुख जाता है। झरिया का पानी खोंदकर यहा के ग्रामीण प्यास बुझाते है।
- क्या कहते है पीएचई अधिकारी
पीएचई विभाग के एसडीओं श्री यादव ने बताया कि कुर्वापानी ताराझर, भालूडिग्गी में पेयजल की दिक्कत है। वहां पेयजल उपलब्ध कराने हर संभव प्रयास किया जा रहा है।