मत्स्य पालन से महिला स्व-सहायता समूह ने कमाएं लाखों
1 min readमत्स्य पालन से महिला स्व-सहायता समूह ने कमाएं लाखों रूपए
बना आर्थिक संबलता का आधार
रायपुर 01 जुलाई 2020/ मत्स्य पालन व्यवसाय भी जीविका का एक प्रमुख जरिया बन गया है। इस व्यवसाय से जगदलपुर जिले के मारकेल गांव की 10 आदिवासी महिलाओं की विश्वा महिला स्व-सहायता समूह ने लाखों रूपए की कमाई की है। मछली पालन का व्यवसाय ग्राम मारकेल के आदिवासी महिलाओं के लिए कम खर्च एवं कम मेहनत से अतिरिक्त आय का जरिया बनकर उनके आर्थिक संबलता का आधार बन गया है।
समूह को मत्स्य पालन से वित्तीय वर्ष 2018-19 में 5 लाख 77 हजार और वित्तीय वर्ष 2019-2020 में 6 लाख 51 हजार की आमदनी हुई। विश्वा महिला स्व-सहायता समूह के महिलाओं में अपने इस सफल व्यवसाय के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि समूह गठन के पूर्व वे गरीबी रेखा में जीवन यापन कर रहे थे। स्वयं के पास उपलब्ध भूमि में खेती-किसानी करते थे, प्रति एकड़ 15-20 क्वि. धान का उत्पादन करते थे, इस उत्पादन से वे संतुष्ट नहीं थे। मत्स्य विभाग के मैदानीय अधिकारियों के संपर्क में आने के बाद मारकेल के महिलाओं ने समूह गठन किया। विभाग की योजना अन्तर्गत मछली पालन से संबंधित जानकारी मिलने से प्रभावित होकर ग्राम पंचायत से सिवना तालाब को 10 वर्षीय पट्टे पर लेकर मछली पालन का कार्य करने लगे। मछली पालन कार्य को 2013-14 में प्रारंभ किए थे। सिवना तालाब का जल क्षेत्र 8.53 हेक्टेयर है।
समूह की महिलाओं ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अंतर्गत मत्स्य बीज, परिपूरक आहार, सिफेक्स, मत्स्याखेट उपकरण एवं आईसबाक्स प्रदाय कर समूह को संसाधनों से पूर्ण किया। मछली पालन विभाग द्वारा समय-समय पर आयोजित किये जाने वाले मछुआ प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं तकनीकी उन्नयन प्रशिक्षण प्रदाय कर उन्हे मछली पालन की तकनीकी जानकारी दी गई है। इस समय समूह द्वारा पट्टे पर आबंटित तालाब में गुणवत्तायुक्त मछली बीज का संचयन एवं परिपूरक आहार के प्रयोग से मत्स्योत्पादन में निरंतर वृद्धि कर आर्थिक स्तर में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। प्राप्त आय से समूह के सदस्यों द्वारा अपने घरेलू उपयोग की वस्तुओ का क्रय किया गया है तथा मकानों की मरम्मत की गयी कुछ सदस्यों द्वारा पक्का मकान बनवाया गया है कुछ सदस्यों द्वारा आवश्यकता अनुसार सायकल-मोटर सायकल क्रय किये है सदस्यों द्वारा अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने स्कुल भेजा जा रहा है। इस प्रकार से मत्स्य पालन का यह व्यवसाय गरीब आदिवासी महिलाओं के लिए अत्यंत लाभ का व्यवसाय साबित होकर उनके स्वरोजगार का सशक्त माध्यम बन गया है।