Recent Posts

December 13, 2025

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

अमलीपदर सुखा नदी में तेज बहाव के कारण मोटर साइकिल सवार युवक बहा लेकिन साहसी ग्रामीणों ने मदद कर बचाया

  • बाइक, मोबाइल और पर्स का अता पता नहीं 
  • सुखा तेल नदी पर पुलिया बनेगा 4 साल बाद भी सिर्फ झूठे आश्वासन, आखिर जिम्मेदार कौन
  • शेख हसन खान, गरियाबंद 

गरियाबंद। जर्जर होकर टूट चुके रपटा पर अचानक तेज बहाव आया और एक बाइक सवार बह गया। ग्रामीणों ने मानव श्रृंखला और रस्सी के सहारे उसकी जान तो बचा ली, लेकिन बाइक, मोबाइल और नगदी पानी की धारा में बह गया। यह हादसा कोई पहला नहीं है। सुखा तेल नदी पर अधूरे पड़े पुलिया की वजह से ऐसे खतरे रोज यहां के लोगों को झेलने पड़ रहे हैं।

आजादी के 79 साल बाद भी गरियाबंद जिले के मैनपुर विकासखण्ड के अमलीपदर क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। सुखा तेल नदी पर प्रस्तावित पुलिया इसका ज्वलंत उदाहरण है। 7 करोड़ 40 लाख रुपये की स्वीकृति मिलने के बावजूद एमजी एसोसिएट्स नामक कंपनी चार साल में एक पिलर भी नहीं खड़ा कर पाई। जब जनता की आवाज उठी तो कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया। इसके बाद भी विभाग और सरकार ने केवल आश्वासन ही दिया। पहले कहा गया था कि डेढ़ साल में पुलिया तैयार हो जाएगा, फिर टेंडर प्रक्रिया का हवाला दिया गया और अब हर बार वही बयान सुनने को मिलता हैकृ“बारिश के बाद काम शुरू होगा।” सवाल है कि चार साल से बारिश हर साल आई और चली गई, लेकिन काम क्यों पूरा नहीं हुआ? क्या यह वाक्य सरकारी नाकामी छुपाने का जरिया बन चुका है?

ग्रामीणों का दर्द किसी से छिपा नहीं। अमलीपदर धुरुवागुड़ी मार्ग, जिसे लोग ‘लाइफलाइन’ कहते हैं, बरसात में मौत का रास्ता बन जाता है। मासूम बच्चों को ट्रैक्टर पर बैठाकर या गोद में उठाकर नदी पार कराया जाता है। तीन साल पहले एक ग्रामीण की इसी नदी में डूबकर मौत हो चुकी है।

एक सप्ताह पूर्व हुई बारिश में जर्जर सुख नदी रास्ता के ऊपर पानी चल रहा था पूर्णचंद्र साहू की बाइक, 12 हजार रुपये और मोबाइल नदी में बह गए, हालांकि ग्रामीणों ने उनकी जान बचा ली। कई बार शिक्षक और बच्चे हादसों से बाल-बाल बचे हैं। ऐसे हालात में सवाल उठता है कि क्या यही है वह विकास, जिसकी तस्वीरें नेता मंच से दिखाते हैं? और जब जनता की जान रोज खतरे में है तो अफसर और नेता क्यों चुप बैठे हैं?

  • इस पुलिया को लेकर क्षेत्र में कई बार धरना-प्रदर्शन, भूख हड़ताल और चक्काजाम हो चुके हैं

एसडीएम से लेकर कलेक्टर और मंत्रियों तक आवेदन दिए गए, लेकिन हर बार नतीजा शून्य रहा। छोटे नेता इस मुद्दे को उठाकर बड़े बने, लेकिन बड़े बनने के बाद जनता से मुंह फेर लिए। मैनपुर और देवभोग क्षेत्र में इसी तरह की समस्या पर तुरंत घोषणा हो गई, लेकिन अमलीपदर के लिए आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब जनता पूछ रही है क्या अमलीपदर की जिंदगी चुनावी गणित में उलझकर रह गई है? क्या बच्चों की जान और ग्रामीणों का खून-पसीना सिर्फ चुनावी वादों के लिए इस्तेमाल होगा?

आज हालात यह हैं कि पुलिया न होने के कारण आपात स्थिति में ग्रामीणों को 16 किलोमीटर लंबा चक्कर काटकर रायपुर मार्ग से गुजरना पड़ता है। मरीज हो या गर्भवती महिला हर किसी की जिंदगी रोज खतरे में डाली जा रही है। इस बीच सरकार और विभाग केवल चेतावनी बोर्ड लगाकर पल्ला झाड़ रहे हैं। सवाल सीधा है कि 7 करोड़ 40 लाख रुपये कहां गए? चार साल में काम क्यों नहीं हुआ? क्या अमलीपदर को पुलिया मिलेगा या फिर हर बार की तरह “बारिश के बाद काम शुरू होगा” का झूठा आश्वासन?

यह पुलिया सिर्फ एक अधूरा निर्माण नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी और जनता के साथ किया गया सबसे बड़ा विश्वासघात है। अब वक्त है कि सरकार जवाब दे क्या अमलीपदर को पुलिया मिलेगा या फिर एक और वादाखिलाफी?

क्या कहते हैं SDM

मैनपुर एसडीएम तुलसीदास मरकाम ने बताया टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। आने वाले वर्ष तक पुल निर्माण हो जायेगा।