दिल्ली व प.बंगाल का मल्लाह, केवट , बिन्द, राजभर एससी तो यूपी का क्यों नहीं ?
1 min readकम्पलीट सर्वे ऑफ ट्राइबल लाइफ एंड सिस्टम
लखनऊ। साइमन कमीशन की सिफारिश पर 1931 में पूरे देश में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया जे.एच. हट्टन द्वारा अछूत जातियों का सर्वे हुआ, जिसमें कुल 68 जातियां पायी गयीं।
गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत 68 जातियों का 1935 में विशेष आरक्षण के लिए नोटिफिकेशन जारी हो गया।उसके बाद भारत सरकार के सचिव ने एक आदेश जारी किया कि ऐसी जातियों की तलाश की जाये, जो कि अछूत तो नहीं हैं परन्तु मुख्यधारा से दूर हैं। इसमें उत्तर प्रदेश की दर्जन भर जातियां पायी गयीं।
1957 तक इन्हें भी अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया, परंतु अछूत अनुसूचित जातियों के विरोध के कारण 1957 से इनको प्रमाण पत्र जारी करना बंद कर दिया गया।
इन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना गया।परम्परागत पेशेवर होने के कारण ये जातियाँ शिक्षा से लगभग वंचित रहीं।मल्लाह,मांझी,केवट आदि को मझवार के नाम से प्रमाण पत्र मिल जा रहा था।जनगणना रिपोर्ट-1961 में मल्लाह,मांझी,केवट,राजगौड़ आदि को मझवार का पर्यायवाची व वंशानुगत जातिनाम माना गया है।12 मई,1961 को उत्तर प्रदेश की विमुक्त व घुमन्तु जनजातियों की एक सूची प्रकाशित हुई,जिसमे मल्लाह,केवट,कहार, भर/राजभर को कई जिलों में रखा गया।जनता पार्टी की सरकार ने 1978 में पिछडेवर्ग की जो सूची जारी किया,उसमें मल्लाह,केवट,बिन्द, धीवर,कहार, राजभर,कुम्हार आदि को रख दिया गया जिससे भ्रामकता की स्थिति पैदा हुई।नव सवर्ण दलितवर्ग के अधिकारियों व नेताओं ने भी अड़चन पैदा करने लगे।
मण्डल कमीशन(1978-80) की सिफारिश में भी इन्हें पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया। लगभग दस वर्ष में इन जातियों की स्थिति देखी गयी तो ये ओबीसी वर्ग में प्रतिस्पर्द्धा न कर सके थे और इनकी हालत अनुसूचित जाति से भी बदतर हो गयी थी। वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 14 जिलों में सर्वेक्षण कराकर इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव भेजकर केंद्र सरकार से निवेदन किया। केंद्र सरकार उसपर फैसला लेती तब तक मायावती सरकार ने वर्ष 2007 में केंद्र से प्रस्ताव वापस मंगा लिया।
फरवरी 2013 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुनः केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा परंतु 14 मार्च 2014 को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के इशारे पर प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया।
वर्ष 2016 में अखिलेश यादव ने बगैर केंद्र की सहमति से ही 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया। बसपा समर्थित डॉ.बी.आर. आंबेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति गोरखपुर नाम के एक संगठन ने अखिलेश सरकार के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, तो उच्च न्यायालय ने अखिलेश सरकार के फैसले पर रोक लगा दी, परंतु अगली सुनवाई में 29 मार्च,2017 को स्टे वैकेट करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि इन जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया तो वह प्रमाण पत्र उच्च न्यायालय के फैसले के आधीन होगा।
24 जून 2019 को योगी सरकार ने उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर 17 जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने का सभी मंडलायुक्त और जिलाधिकारी को आदेश कर दिया। मगर एक सवाल लोगों के जेहन में कौंधता रहा कि क्या इस प्रमाण पत्र से ये जातियां अनुसूचित जाति के कोटे में नौकरी हेतु आवेदन कर सकेंगी। यदि करेंगी तो चयन हो जाने के बाद यदि न्यायालय का फैसला सरकार के विरुद्ध आया तो फिर इन लोगों की नौकरी चली जायेगी। जबकि यह सर्वविदित है कि देश में अनुसूचित जाति कौन है इसका फैसला केंद्र सरकार और संसद ही कर सकती है। पूर्व से विद्यमान अनुसूचित जातियां जिनको कि जे.एच.हट्टन ने अछूत माना है वे किसी भी तरह से नयी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं होने देंगी।
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 2 जुलाई को राज्यसभा में बताया कि 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करना राज्य सरकार का असंवैधानिक फैसला है। इस तरह से पूर्व से ही मुख्य धारा से बाहर रही जातियां मात्र सवर्णों द्वारा अछूत न रहने के कारण संघर्ष कर रही हैं।
आरक्षण व सामाजिक न्याय के सरोकारों से जुड़े इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए व मझवार,गोंड़, तुरैहा जाति को चमार,धोबी,भोई,वाल्मीकि आदि की भाँति परिभाषित करने की लड़ाई लड़ते आ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद छूआछूत के मुद्दे से इत्तेफाक रखते हैं।उनका कहना है कि देश की राजधानी दिल्ली का मल्लाह,प.बंगाल का मल्लाह,केवट,बिन्द, कैवर्त,चाई, तियर,राजभर आदि व मध्यप्रदेश का कुम्हार अनुसूचित जाति में है,तो उत्तर प्रदेश का क्यों नहीं?उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की सूची में शामिल बेलदार(कुआँ खोदने वाला),खरवार(कत्था बनाने वाला),गोंड़(पालकी ढोने वाला),कोल,मुसहर(पत्तल बनाने वाला),कोरी(कपड़ा बुनने वाला) आदि किस आधार पर अछूत हैं? सुअर पालने व ताड़ी उतारने वाला पासी,तड़माली, दुसाध,चिड़ियां पकड़ने वाले बहेलिया,मीट-मछली बेचने वाला खटिक व कपड़ा धोने वाला धोबी अछूत है,तो मछली पकड़ने,मारने,पालने व काटकर भड़कने वाला मल्लाह,केवट,बिन्द, धीमर, धीवर, तुराहा,गोड़िया, कहार,रैकवार नोनिया,राजभर आदि पवित्र व सछूत कैसे?
निषाद का कहना है कि अस्पृश्यता(अपराध) निवारण अधिनियम-1955 बनने के बाद एवं संविधान के अनुच्छेद-17 के अंतर्गत छुआछूत को संज्ञेय अपराध घोषित किये जाने के बाद किसी जाति में अस्पृश्यता का लक्षण खोजा जाना खुद संज्ञेय अपराध है।उक्त 17 अतिपिछड़ी जातियाँ अनुसूचित जाति में शामिल करने के सभी मानकों को पूरी करती हैं।17 में 173 अतिपिछड़ी जातियाँ निषाद मछुआ समूह की ही हैं,जो 1950 से अनुसूचित जाति में शामिल मझवार,तुरैहा,गोंड़ की पर्यायवाची व उप