कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संशोधन अध्यादेश लागू न करने की माँग
1 min readShikha Das, Mahasamund
केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि उपज मंडियों के अस्तित्व को ही समाप्त करने वाली कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संशोधन अध्यादेश 2020 को छत्तीसगढ़ में लागू न करने की माँग को लेकर प्रबंध संचालक छ ग राज्य कृषि विपणन बोर्ड रायपुर के हाथों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम ज्ञापन दिया गया है।
उक्त आशय की जानकारी देते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष मदन लाल साहू और राज्य सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि कृषि उपज का क्रय करने वाले व्यापारियों को राज्य के बाहर या भीतर कहीं पर भी किसानों की उपज खरीदने का अधिकार प्राप्त होने से कृषि उपज मंडी समिति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा यह केवल एक ढांचा ही रह जाएगा। कृषि उपज मंडियों में काम करने वाले रेजा, तुलैय्या हमाल, कटैया हमाल, आढ़तिया एवं मंडी कर्मचारी अपने रोजगार से वंचित हो जाएंगे। ऐसे कर्मचारी जो संविदा या दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्यरत हैं उनके ऊपर विपरीत असर होगा साथ ही सीधी खरीदी होने से किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्य और भुगतान की कोई गारंटी नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ मुख्यतः कृषि प्रधान राज्य है जहाँ लोग कृषि कार्य अथवा कृषि आधारित रोजगार व दिनचर्या से जुड़े हुए हैं जिससे सभी का संबंध एक जैसा है भले ही कार्य की प्रकृति अलग अलग क्यों न हो। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संशोधन अध्यादेश 2020 विशेषकर बड़े व्यापारिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए है। अब तक किसानों को उनके उपज का मूल्य निर्धारण करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। ऐसे में जब मंडियों की प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाएगी तो किसानों को लाभप्रद मूल्य देने की बात महज एक दिवा स्वप्न साबित होगा। बल्कि इस अध्यादेश से केंद्र सरकार द्वारा कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण करने की जिम्मेदारी से सरकार अलग हो जाएगा और ऐसा होने से जो देशभर में किसानों द्वारा मांग की जा रही है कि ” एम एस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और कृषि उपजों का लागत से डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाये” का मूल ध्येय समाप्त हो जाएगा।
कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 के प्रावधानों के अनुरूप छ ग राज्य कृषि विपणन बोर्ड संचालित हो रही है उनके प्रावधानों के अनुरूप ईमानदारी से पालन किया जाए तो इस संशोधित अध्यादेश की आवश्यकता ही नहीं है। यह तो रोग लगे अंग को बिना किसी ईलाज के काट देने की ही प्रक्रिया है। इसलिए संशोधित अध्यादेश को लागू नहीं किया जाना चाहिए।