भगवताचार्य आचार्य पंडित युवराज पांडेय के मुख से श्री कृष्ण जन्म की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालुगण, जयकारों से गूंजा अमलीपदर
1 min read- शेख हसन खान, गरियाबंद
- श्री जगन्नाथ मंदिर अमलीपदर में मनाया गया श्री कृष्ण जन्माष्टमी
गरियाबंद । मैनपुर विकासखंड अंतर्गत नवीन तहसील अमलीपदर में हर वर्ष कि भांति इस वर्ष भी गांव के हृदय स्थल श्री जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में बड़े धूमधाम से श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव मनाया गया । श्रीमंदिर के मुख्य पुजारी भगवताचार्य आचार्य पंडित युवराज पांडेय जी ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर पर बताया कि कंस के अत्याचार से पृथ्वी कंपीत हो गई जिसके कारण पृथ्वी स्त्री रूप धारण कर देवताओं के साथ ब्रह्म लोक गई जहां सारे देवताओं को लेकर के ब्रह्मा जी क्षीसागर पहुंचे और भगवान की स्तुति करने पर श्रीमन नारायण प्रसन्न होकर के जल्द ही भूभारण हरण हेतु पृथ्वी पर अवतरित होने का घोषणा की तब जाकर देवताओं को संतुष्टि हुई। कंस की एक बहन थी जिसका नाम था देवकी जिसका विवाह वसुदेव के साथ हुआ । अपने बहन से अत्यधिक प्रेम होने के कारण कंस स्वयं अपनी बहन देवकी एवं जमाता वासुदेव को रथ पर बिठा करके छोड़ने जा रहा था जिस पर आकाशवाणी हुई की हे कंस देवकी के गर्भ से आठवे संतान तेरा काल होगा। इस प्रकार आकाशवाणी सुनने पश्चात कंस देवकी को मारने का प्रयास किया किंतु वासुदेव सत्यवादी थे जिन्होंने शपथ ली की हर संतान को कंस के हवाले कर देगा यह सुनकर के कंस ने बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया, क्योंकि वासुदेव सत्यवादी थे उन्होंने हर संतान को एक-एक कर कंस के हवाले छोड़ दिया जिसे निर्दय कंस ने शीला में पटक करके देवकी के 6 पुत्रों की हत्या कर दी। सातवें गर्भ में भगवान शेष नागजी आए जिसे भगवान के योग माया से वासुदेव की पत्नी रोहणी के गर्भ में स्थापित किया गया जो की बलराम के रूप में अवतरित हुए।
भादो मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में फिर आठवें रूप में स्वयं नारायण गर्भ में आए और चतुर्भुज स्वरूप में देवकी और वासुदेव के समीप प्रकट हुए तत्पश्चात शिशु के रूप में भगवान अवतरित हुए भगवान कृष्ण के प्रकट होने पर वासुदेव के बेडी़ टूट गए कारागार के दरवाजे खुल गये। पहरी निद्रा समाधि में चले गए नन्हे से बालक को टोकरी में लेकर वासुदेव जी ने भादो मास के घनघोर वर्षा ऋतु में यमुना नदी को पार कर नंद बाबा के घर पहुंचे और यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया जो स्वयं भगवान की शक्ति योग माया थी वासुदेव ने नन्हे बालक को यशोदा के पास रखकर करके कन्या को उठाकर के वापस कारागार में ले आया। यह सब योग माया के प्रभाव में था। इसके चलते किसी को भी मालूम नहीं चला तत्पश्चात कारागार में कंस आया और नन्हीं कन्या को देखकर के आश्चर्य हो गया। किंतु काल के डर से कन्या को शीला में पटक कर करने के लिए जैसे ही आकाश में फेंका वह कन्या अष्टभुजा सिंह पर सवार भगवती स्वरूप में आकर के कंस को कहा तुम मुझे क्या मारेगा तेरे काल कब का पैदा हो चुका है । इस प्रकार भगवती भगवान के आदेश पर विंध्याचल पर्वत पर स्थापित हुई ।जहां सारे भक्त मां को विंध्यवासिनी के रुप में पूजा अर्चना करते हैं। इस प्रकार कंस भयभीत होकर के कारागार से वापस आ गया। उधर नंद गांव में नंद बाबा यशोदा मैया के यहां नन्हे से बालक का जन्म सुन करके नंद गांव के सभी नर नारी प्रसन्न होकर के सोहर गीत गाने लगे। जो यह कथा भक्ति के साथ श्रवण करता है वह जीव भव बंधन मुक्त हो कर ऐश्वर्य , भक्ति, काम इस लोक में सुख भोग कर भगवान के परम धाम बैकुंठ में स्थान पाता है। इस प्रकार पं युवराज पांडेय जी के मुखारविंद से कथा श्रवण करने के पश्चात श्री कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया एवं श्री कृष्णा भजनों के माध्यम से भक्त भक्ति में डूब गये और महा आरती के प्रसाद पंजरी वितरण किया गया । इस कार्यक्रम में आदर्श रामायण मंडली के समस्त पदाधिकारी सदस्य एवं अमलीपदर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।