कोरोना पर भारी आस्था… महिलाओं ने पति की लंबी आयु के लिए की वट वृक्ष की परिक्रमा
1 min read- न्यूज रिपोर्टर, रामकृष्ण ध्रुव
- पति के प्राण यमराज से वापस लेने वाली देवी सावित्री भारतीय संस्कृति में संकल्प और साहस का प्रतीक हैं
- यमराज के सामने खड़े होने का साहस करने वाली सावित्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। सावित्री के दृढ़ संकल्प का ही उत्सव है वट सावित्री व्रत
- नगर समेत ग्रामीण इलाकों में सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए रखा गया वट सावित्री का व्रत धूमधाम के साथ मनाया गया
गरियाबंद. कोरोना संक्रमण का असर बुधवार को महिलाओं के प्रमुख व्रत वट सावित्री में भी नजर आया। नगर समेत ग्रामीण इलाकों में सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए रखा गया वट सावित्री का व्रत मनाया गया। भीषण गर्मी के बावजूद व्रती महिलाओं ने मास्क का उपयोग कर तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन करते हुए वट यानि बरगद के वृक्ष की पूजा कर अखंड सुहाग की कामना की।
विदित हो कि वट सावित्री का पर्व हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन परंपरा अनुसार सुहागिनें स्त्री पुराने वट (बरगद) वृक्ष की पूजा कर उसे पीले धागे से बांधकर उसका फेरा लगाती हैं। पुराणों के अनुसार वट सावित्री के ही दिन सती ने यमराज से अपने पति के प्राण बचाकर लाए थे। वट सावित्री का त्यौहार सुहागिन स्त्रीयों के द्वारा काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कोरोना संक्रमण के देखते हुए पूजन के दौरान पूरी तरह से सावधानी रखी गई। महिलाओं ने वट वृक्ष में भीड़ लगाने की बजाए सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन किया और अधिकांश महिलाओं ने मास्क लगाकर पूजा की।
वट सावित्री के पर्व के लिए नगर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक महिलाओं में उत्साह रहा। नगर के काली मंदिर , गौरव पथ, दशहरा मैदान, शनि मंदिर, बालक शाला के पास, पुरानी बस्ती समेत कई पुराने बरगद के पेड़ों के पास सुबह से महिलाओं ने पहुंचकर वट वृक्ष में कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा की अखंड सुहाग की कामना की। पारंपरिक व्रत को पूरे विधि विधान-लगन के साथ करने के साथ ही साथ कोरोना संक्रमण का भी पूरी तरह से ध्यान रखने को लेकर नगरवासियों ने महिलाओं की प्रशंसा की। कोरोना संक्रमण को देखते हुए सुरक्षा के लिहाज से नगर की कई महिलाओं ने घरों पर ही पूजा करना श्रेष्ठ समझा। महिलाओं ने अपने घरों पर गमले में लगाकर रखे वट वृक्ष की ही पूजा की।
श्यामकली तिवारी ने बतलाया, क्या हैं व्रत का महत्व
अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेने वाली देवी सावित्री भारतीय संस्कृति में संकल्प और साहस का प्रतीक हैं> यमराज के सामने खड़े होने का साहस करने वाली सावित्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। सावित्री के दृढ़ संकल्प का ही उत्सव है वट सावित्री व्रत। इस व्रत की उत्तर भारत में बहुत मान्यता है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग,पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्य वर्धक, पापहारक, दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र-पौत्र-धन आदि पदार्थों को प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा,तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है। इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है।इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
श्यामकली तिवारी, सुमन लता केल, संध्या सोनी, रेणुका सिन्हा, भारती सिन्हा, वर्षा तिवारी, मिलेश्वरी साहू, किरण सिन्हा, पूनम सोनी, लालिमा ठाकुर, मंजु निर्मलकर, रूपाली सोनी सहित और अन्य महिलायें उपस्थित रही।