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November 24, 2024

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प्रदेश के सैकड़ों किसान-आदिवासियों ने दिल्ली कूच किया

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Hundreds of farmers and tribals traveled to Delhi

बेदखली के आदेश के खिलाफ 21 को संसद पर करेंगे प्रदर्शन
राजातालाब, रायपुर । कल वन स्वराज आंदोलन द्वारा आयोजित प्रदेश स्तरीय आदिवासी हुंकार रैली के बाद आज पूरे प्रदेश से सैकड़ों आदिवासियों और किसानों ने छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा के बैनर तले दिल्ली कूच किया।पूरे देश से जुटे एक लाख से ज्यादा आदिवासी 21 नवम्बर को संसद पर प्रदर्शन करेंगे और सुप्रीम कोर्ट द्वारा वन भूमि से आदिवासियों को बेदखल किये जाने के आदेश और मोदी सरकार द्वारा आदिवासियों के पक्ष में हस्तक्षेप न किये जाने के रवैये के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करेंगे। इस आदेश के कारण पूरे देश से सवा करोड़ और छत्तीसगढ़ से 25 लाख आदिवासियों को बेदखल किये जाने का खतरा पैदा हो गया है। संसद पर यह प्रदर्शन अखिल भारतीय किसान सभा और आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच सहित देश के 200 किसानों, आदिवासियों और दलितों के संगठनों के संयुक्त मंच भूमि और वन अधिकार आंदोलन तथा अ. भा. किसान संघर्ष समन्वय समिति की ओर से आयोजित किया जा रहा है, जिसमें वन स्वराज अभियान और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के कई घटक संगठन शामिल हैं।
Hundreds of farmers and tribals traveled to Delhi
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि किसानों और आदिवासियों के देशव्यापी प्रतिरोध आंदोलन का नतीजा ही है कि वन कानून में प्रस्तावित खतरनाक आदिवासी विरोधी और वनाधिकार कानून विरोधी संशोधनों को मोदी सरकार को वापस लेना पड़ा है। लेकिन पर्यावरण के नाम पर आदिवासियों को जंगलों से विस्थापित करने और जल-जंगल-जमीन-खनिज को कॉर्पोरेटों को सौंपने की उसकी मंशा में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया है। इसीलिए, वनाधिकार कानून, पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को पूरी तरह सही मायनों में लागू करने और ग्राम सभा की सर्वोच्चता को स्वीकृति देने के लिए आदिवासी समुदाय का संघर्ष जारी रहेगा। किसान सभा नेताओं ने हुंकार रैली के बाद वन भूमि पर काबिज आदिवासियों को बेदखल न करने की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा का स्वागत किया है तथा मांग की है कि इस घोषणा के अनुरूप स्पष्ट आदेश जारी किए जाए और हसदेव अरण्य और बैलाडीला की पहाड़ियों को अडानी को देने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि वनाधिकार कानून पर अमल के लिए गठित समिति को पुनः सक्रिय किया जाए और इसके नियमों पर प्रदेश के सभी आदिवासी व किसान संगठनों से सलाह-मशविरा किया जाए। उन्होंने कहा कि जल-जंगल-जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार की इस देश के आदिवासियों की लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक कि उन पर सदियों से जारी ‘ऐतिहासिक अन्याय’ को खत्म नहीं किया जाता और सरकार अपनी कारपोरेटपरस्त नीतियों में बदलाव नहीं करती। वह छत्तीसगढ़ और पूरे देश में इस संघर्ष को जारी रखेगी।

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