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October 17, 2024

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बीहड़ पहाड़ी के उपर बसे ग्रामों के सैकड़ों कमार जनजाति के लोगों को राशन के लिए 40 किलोमीटर पैदल आना पड़ता है

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  • सड़क नहीं होेने के कारण घोड़ा में लादकर ले जाते है राशन
  • आजादी के 74 वर्षो बाद भी बीमार होने पर मरीजों को खाट व कांवर के सहारे लाते हैं ईलाज कराने
  • यह बदहाल स्थिति और कही नही बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वः राजीव गांधी के गोद ग्राम कुल्हाडीघाट के आश्रित ग्रामों की है
  • रामकृष्ण ध्रुव, मैनपुर

मैनपुर – एक एक कर आजादी के सात दशक बीत गए लेकिन गरियाबंद जिला के आदिवासी विकासखण्ड मैनपुर क्षेत्र के पहाड़ी ईलाकों के गांवों की बदहाल स्थिति में सुधार नहीं आ पाया| छत्तीसगढ राज्य निर्माण के 20 वर्ष बाद भी देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वः राजीव गांधी के गोद ग्राम कुल्हाडीघाट के आश्रित ग्रामों जो पहाडी के उपर बसा है| भालूडिग्गी, ताराझर, कुर्वापानी, मटाल, इन ग्रामों में पहुचने के लिए सड़क निर्माण नहीं होेने के कारण आज भी यहा के विशेष पिछडी कमार जनजाति के लोगो को राशन सामग्री चांवल, दाल, शक्कर, मिटटी तेल लेने के लिए महिना में एक दिन लगभग 40 किलोमीटर पैदल दुरी तय कर पहाड़ी के नीचे बसे पंचायत मुख्यालय कुल्हाडीघाट ग्राम आना पडता है तब कही जाकर इन ग्रामों के लोगों को राशन सामग्री उपलब्ध हो पाती है|

सड़क नहीं होने के कारण सायकल, मोटर सायकल, तो दुर पैदल बमुश्किल पेडों गढढों खाई नदी नालो को पार कर आना जाना करना पड़ता है|इन ग्रामों में निवास करने वाले लोग राशन सामग्री ले जाने के लिए, बकायदा घोडा पाले हुए है और महिना में एक दिन पुरा गांव के ग्रामीण एक साथ राशन सामग्री लेने घोडा के साथ कुल्हाडीघाट पहुंचते हैं|घोडा में राशन सामग्री को लाद कर वापस अपने ग्राम जाते हैं| राशन सामग्री लाने ले जाने में ही पूरा एक दिन का समय लग जाता है सबसे तकलीफ तब होती है जब इन ग्रामों में अचानक किसी की तबियत बिगड़ जाए या कोई घटना दुर्घटना हो जाए तो कांवर और खाट लाद कर मरीज को मिलों पैदल पहाडी रास्तों को तय कर अस्पताल तक पहुचाना पडता है|

यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है, अब तक इन ग्रामों में निवास करने वाले लोगो के लिए मोबाईल, टीवी, फ्रीज कुलर इलेक्ट्रानिक सुविधाओं की समान किसी सवप्न से कम नही है। एक तरफ हमारे बडे शहर विकास के वह सौपान तय कर रहा है जंहा जिंदगी काफी रफ्तारो में चल रही है, और देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सवप्न देखा था जब गांव विकास करेगा तब देश विकास करेगा लेकिन गरियाबंद जिले के मैनपुर विकासखण्ड के पहाडियों के उपर बसे इन ग्रामों में विकास तो काफी दुर इन्हे दो वक्त की भोजन के जुगांड के लिए काफी मशक्कत करना पडता है| क्योंकि पहाडी ईलाका पथरीला होना के कारण यहा खेती किसानी भी सही नही हो पाती और जंगल से मिलने वाले कंद मूल आज भी इनके भोजन के अहम हिस्सा है|

ज्ञात हो कि तहसील मुख्यालय मैनपुर से 18 कि.मी.दूर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गोद ग्राम कुल्हाड़ीघाट के आश्रित ग्राम ताराझर, कुरूवापानी,भालुडिग्गी,मटाल,कुल्हाड़ीघाट से लगभग 20-22 कि.मी. दूर बिहड़ जंगल व पहाड़ी के उपर बसा हुआ है|इन ग्रामों में आज तक शासन द्वारा कोई भी शासकीय योजनाएं नही पहुचाई जा सकी है और तो और इन ग्रामों में पहुचने के लिए सड़क का भी निर्माण नहीं किया जा सका है|यहा के ग्रामीण अमरसिंह, मन्नुराम, लखमू,रूपधर ,मंशाराम, बुधराम,राजमन,सुकालु, जयसिंह,रामप्रसाद ने बताया कि प्रतिमाह उन्हे राशन लेने पैदल 20-22 कि.मी. दूर कुल्हाड़ीघाट पैदल जाना पड़ता है और पैदल वापस आना पड़ता है| इस तरह 40 कि.मी. पैदल चलने के बाद चावल मिट्टी तेल नसीब हो पाती है। इन ग्रामों में पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा सौर उर्जा की बदहाल स्थिति किसी से छिपा नही है।

क्या कहते है

ग्राम पंचायत कुल्हाड़ीघाट के पूर्व सरपंच बनसिंह सोरी ने बताया कि ताराझर,कुरूवापानी, मटाल,ग्रामो में पहुचने के लिए अबतक सड़क का निर्माण नही किया गया है यहां सभी मूलभूत समस्या से लोग जुझ रहे हैं| कई बार प्रस्ताव बनाकर शासन स्तर पर भेजा जा चूका है| सरंपच ने बातया 40-50 कि.मी. पैदल आने जाने के बाद इन ग्रामो के लोगो को राशन समाग्री सहकारी दुकानो से उपलब्ध होती है।

बनसिंह सोरी पूर्व सरंपच कुल्हाड़ीघाट

शासकी राशन दुकान कुल्हाड़ीघाट के सेल्समेन मनधर नागेश ने बताया कुरूवापानी,ताराझर,मटाल भालूडिग्गी, जो पहाड़ी के उपर बसा ग्राम है वहां के ग्रामीण पैदल राशन लेने पहुचते है और उन्हे दो माह का राशन एक साथ दिया जाता है। कुल्हाड़ीघाट के इन ग्रामो की दूरी 24-25 कि.मी. है।
मनधर नागेश सेल्समेन राशन दुकान कुल्हाड़ीघाट

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