महाराजा अग्रसेन के आदर्श व नीति पांच हजार साल बाद भी प्रासंगिक: प. विजय
भगवान अग्रसेन जयंती समारोह के तीन दिवसीय अग्र भागवत की पूणाहूति
राउरकेला। महाराजा अग्रसेन सेवा संघ की ओर से अग्रसेन भवन में भगवान अग्रसेन जयंती समारोह के पांचवे दिन तीन दिवसीय अग्र भागवत की पूणाहूति हुई। कथा वाचक व प्रख्यात जीवन प्रबंधन गुरु प. विजय शंकर जी मेहता ने महाराजा अग्रसेन जी के बचपन से लेकर यौवन काल व अंतिम दिन उनके शासन काल से लेकर बैराग्य जीवन की कथी सुनायी और कहा कि पांच हजार साल बाद भी महाराजा अग्रसेन के आदर्श व नीति ना केवल प्रासंगिक है बल्कि उनके जीवन चरित्र को अपना कर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। महाराजा अग्रसेन के जीवन वृतांत सुना कर कथा वाचक पंडित विजय शंकर ने सफल दांपत्य व जीवन के अंंतिम पड़ाव की सफलता के गुर बताये। अग्रसेन भवन में तीन दिवसीय अग्रभागवत कथा में कथा वाचक पंडिता विजय शंकर मेहता ने इतिहास का हवाला दे कर अग्रबंधुओं के भगवान राम चंद्र का वंशज बताया। उन्होंने कहा कि पांच परमात्मा का महाराज अग्रसेन जी के जीवन पर प्रभाव था।भगवान रामचंद्र के वंशजभगवान श्री कृष्ण के समकालीन, हनुमानजी, शिवजी व मां लक्ष्मी का प्रभाव महाराज अग्रसेन के जीवन पर पड़ा है।
कथा के प्रथम दिन महाराजा अग्रसेन के बचपन, दूसरे दिन बुधवार को उनकी जवानी व तीसरे व समापन दिन उनके बुढापा के पड़ाव कथा सुनायी।कथा वाचक ने कहा कि हरेक के जीवन मे पांच रास्ते से समस्या व दुख आ रहे हैं। संसार, संपति, संबंध व संतान आदि, लेकिन इससे परे था महाराज अग्रसेन जी का जीवन। श्रीमद अग्र भागवत के तीसरे दिन महाराज अग्रसेन के शासन काल व अंतिम दिनों की कथा सुनाई। निकल पड़े राजमहल से शीर्षक गीत के बीच कथा वाचक पं विजय शंकर ने कहा अग्रसेन जी एक पड़ाव बुढापा आया है, उनके बैराग्य जीवन को उद्धृत करते हुए कहा इंसान को बुढापे में सब कुछ यानी संसार के प्रति आशक्ति छोड़ देना चाहिए और जो अर्जित किये हैं, वह देश व समाज को देना चाहिए। महाराज अग्रसेन ने संसार से अर्जित ज्ञान को बांटने का काम किया। बचपन व जवानी के बाद उन्होंने बुढ़ापे की तैयारी श्री अग्रसेन महाराज ने कर ली थी,उनके जीवन आदर्श की सीख देते हुए कहा कि बुढ़ापे में मेहमान की भावना से घर मे रहना सीख लेना चाहिए। महाराज ने बच्चों को राजपाट सौप कर ज्ञान बांटने के लिए राजमहल से निकल पड़े बंजारे बन कर और पूरे संसार को ज्ञान बांटा। पं विजय शंकर ने जैन मुनि ने राजा जन्मजेय को महाराज अग्रसेन की कथा सुनाई जिसमें बताया गया कि महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण के सानिध्य प्राप्त कर लौटने के बाद महाराजा अग्रसेन ने अग्रोहा धाम बसाया,उन्होंने कहा कि सत्ता कोई भी हो धर्म से जुड़ा होना चाहिए, उनके गुरु ऋषि गार्गी ने महाराजा अग्रसेन को बताया कि गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है और उन्हें भी अपनी गृहस्थी बसानी चाहिए। गुरु ऋषि गार्गी के आदेश पर गृहस्थ जीवन के नागलोक की राजकुमारी मांडवी से विवाह किया।बुद्धि बल से राजकुमारी मांडवी से उनका विवाह हुआ। उन्होंने आदर्श पति पत्नी की व्याख्या करते हुए कहा जिस पति पत्नी का एकांत व प्रेम अच्छा हो, उनका दाम्पत्य जीवन श्रेष्ठ है। भगवान शिव व पावर्ती जी के दाम्पत्य जीवन श्रष्ठ था, उनका एकांत का जीवन बहुत ही अच्छा था।
एकांत में काम कथा नहीं राम कथा बताई, जो कथा को आज भी हम सुनते हैं। नागलोक में राजकुमारी मांडवी से विवाह के पूर्व महाराज अग्रसेन ने भगवान शिव की अर्ध नारीश्वर की पूजा की,उन्होंने शिव कथा व पूजन के महत्व की महत्ता कथावाचक ने बताई।सफल गृहस्थ्य जीवन के टिप्स दिए और बताया कि भगवान शिव की अर्ध नारेश्वर को समझ लेने से दापंत्य जीवन सफल हो जाता है,हर पुरूष व नारी कें भीतर से क्रमश आधा पुरुष व आधा नारी है, जब भीतर अतृतप्त होता है तो मन मुटाव व अशांति होती है, जो पति अपनी पत्नी के भीतर के पुरूष और जो पत्नी अपने पति के भीतर के नारी को तृप्त कर दे उन्हें असीम शान्ति मिलती है, जो आत्मा स्पर्श कर लेता है उसका दाम्पत्य जीवन और सफल है। गुरुवार को को कथा व अन्य कार्यक्रमों के संचालन में महाराजा अग्रसेन सेवा संघ के अध्यक्ष हरिओम बंसल, ब्रीज मोहन अग्रवाल, सीताराम बेरलिया, अशोक अग्रवाल, सुरेश केजरिवाल, प्रभात टिबडेवाल, हर्ष खेदड़िया, विजय गोयल, दौलत अग्रवाल, प्रदीप मोदी, रमेश अग्रवाल,सुरेश जिंदल, आलोक बगडिया, शंभू भाजिका, बंदना टिबडेवाल, केदार केडिया, चंद्रा बंसल, उत्तम अग्रवाल समेत दर्जनो सेवाभावी सदस्यों का सहयोग रहा।