छत्तीसगढ़ में कश्मीर के नाम से मशहूर ओढ़ -आमामोरा की बालिकाएं कक्षा 8 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर, वर्षों से हाईस्कूल खोलने की मांग
1 min read- दुर्गम पहाड़ी के उपर बसे ओढ़ आमामोरा के ग्रामीणों को पेयजल, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही
- स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, इलाज के लिए मैनपुर गरियाबंद या फिर ओडिशा जाना पड़ता है
- ओढ़ आमामोरा से लौटकर शेख हसन खान की विशेष रिपोर्ट
गरियाबंद । दुर्गम पहाड़ी के उपर बसे विशेष पिछड़ी कमार जनजाति आदिवासी बाहूल्य ग्राम पंचायत ओढ़ एवं आमामोरा के ग्रामीण आजादी के 75 वर्षो बाद भी पीने के पानी के लिए मीलों पैदल दूरी तय करते हैं और झरिया खोदकर पानी लाते है तब कही जाकर उनकी प्यास बुझती है। स्वास्थ्य सुविधा का हाल बेहाल है आज भी यहां के ग्रामीणों को इलाज के लिए मैनपुर गरियाबंद या तो ओड़िशा के सोनाबेड़ा जाना पड़ता है। अभी तक गांव में बिजली की रौशनी नही पहुंची है सौर उर्जा लगया गया है लेकिन वह महज घंटा दो घंटा जलने के बाद पूरी रात ग्रामीणों को अंधेरे में जीवन यापन करना पड़ रहा है। तहसील मुख्यालय मैनपुर से महज 36 कि.मी. दूर ग्राम पंचायत ओढ़ स्थित है। ग्राम पंचायत ओढ़ के आश्रित ग्राम हथौड़ाडीह अमलोर, नगराल, सरईपारा एवं यहां से 8 कि.मी. दूर पहाड़ी के उपर एक दूसरे ग्राम पंचायत आमामौरा है जिसके आश्रित ग्राम जोकपारा, कुकराल है।
दोनों ग्राम पंचायत ओढ़ एवं आमामोरा की जनसंख्या लगभग 2000 के आसपास है और यहां विशेष पिछड़ी कमार जन जाति के साथ आदिवासी बाहूल्य ग्राम पंचायत है। इन दोनों ग्राम पंचायतों में सबसे बड़ी समस्या यह है कि आजादी के सात दशक बाद भी बिजली की रौशनी नही पहुंची है गांव में सौर-ऊर्जा प्लांट लगाया गया है लेकिन वह जर्जर हो गया है। इसके देख रेख करने वाला क्रेड़ा विभाग द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता जिसके कारण महज शाम के समय दो घंटा जलने के बाद पूरी रात ग्रामीणों को लालटेन चिमनी एवं लकड़ी के अलाव जलाकर गुजारा करना पड़ता है जबकि यहां क्षेत्र घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के साथ ही हाथी प्रभावित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है और यहां अनेक प्रकार के हिंसक वन्यप्राणी भी पाया जाता है।
- नहीं है स्वास्थ्य की सुविधा, इलाज के लिए ओड़िशा जाने मजबूर
पहाड़ी के उपर ओढ़ आमामोरा ग्राम पंचायत एवं आश्रित ग्रामों के लोगो के द्वारा वर्षो से यहां एक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने की मांग किया जा रहा है और स्वास्थ्य केन्द्र भवन निर्माण के लिए एक वर्ष पहले लाखों रूपये राशि स्वीकृत होने की बात बताई जाती है लेकिन अब तक भवन निर्माण नहीं हुआ है । यहां गंभीर घटना दुर्घटना और अत्य़धिक बीमार होने पर ग्रामीण मरीज मैनपुर या जिला मुख्यालय गरियाबंद ले जाते है यहां से महज 15 कि.मी. दूर ओड़िशा के सोनाबेड़ा गांव लगा है जहां इलाज के लिए जाना मजबूरी है। वैसे तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा यहां दो स्वास्थ्य कार्यकर्ता की नियुक्ति किया गया है जो सप्ताह में दो दिन जाते हैं लेकिन यह प्रर्याप्त नहीं है यहां स्थाई रूप से उपस्वास्थ्य केन्द्र खोलकर स्वास्थ्य सुविधाए उपलब्ध कराने की मांग ग्रामीणों ने किया है। मितानीन बहने इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा की बागडोर सम्भाले हुए हैं उनके द्वारा गांव पारा टोला तक पहुंचकर ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश किया जाता है।
- झरिया खोदकर प्यास बुझाते ग्रामीण महिलाओं को दूर से लाना पड़ता है पानी
पहाड़ी के उपर बसे आमामोरा, ओढ़ एवं आश्रित ग्रामों में हैंडपंप लगाया गया है लेकिन हैंडपंप का पानी आयरन युक्त लाल होने के कारण इसका उपयोग ग्रामीण नहीं कर पाते क्योंकि इस पानी से दाल, चावल चाय नहीं बन पाता। मजबूरन ग्रामीण महिलाएं मिलों पैदल दूरी तय कर झरीया खोदकर पानी लाकर प्यास बुझाते हैं। कई गांव में पानी की टंकी लगाया गया है जो खराब पड़ा हुआ है और तो और कुए का भी पानी का उपयोग ग्रामीण करने मजबूर हो रहे हैं।
- बालिकाएं चाह कर भी आगे पढ़ाई नहीं कर पाती, बालिका आश्रम खोलने की मांग
ओढ़ आमामोरा में कक्षा 8वीं तक बालक आश्रम है और इसके आश्रित ग्रामों में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। इस क्षेत्र के बालिकाओं के लिए आश्रम छात्रावास की सुविधा नही होने के कारण मजबूर छात्राओं को कक्षा 5वी या 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ाना पड़ जाता है। यहां लम्बे समय से बालिका आश्रम छात्रावास खोलने की मांग ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है ताकि बालिकाओं को बेहतर शिक्षा हासिल हो सके।
- 30 वर्ष पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अचानक हेलीकाप्टर से ओढ़ पहुंचकर ग्रामीणों के बीच रात बिताई थी
छत्तसीगढ़ के कश्मीर के नाम से पहचाने जाने वाला ओढ़ आमामोरा जमीन सतह से लगभग 2000 मीटर की उंचाई पर बसा है और यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है जिसके कारण ठंड के दिनो में बड़े शहरो से पर्यटक अनेक परेशानियों को झेलते हुए यहां पहुंचते है और तापमान एकदम कम हो जाता है और घास पैरावट में सुबह के समय बर्फ की चादर के जैसे परत जम जाती है। ज्ञात हो कि आज से लगभग 30 वर्ष पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जनवरी 1994 में कड़ाके के ठंड के बीच अचानक हेलीकाप्टर से ओढ़ आमामोरा पहुंचा था जिसकी जानकारी लगते ही रायपुर के कलेक्टर एसपी एवं पूरा जिला प्रशासन अनेक परेशानियों को झेलते हुए पथरीले रास्ते से आमामोरा रात में पहुंचे थे यहां पूर्व मुख्यंमत्री दिग्विजय सिंह ने गांव में रात के समय अलाव जलाकर चौपाल लगाकर ग्रामीणों की समस्या को सूना था। विशेष पिछड़ी कमार भुंजिया जनजाति के जीवन शैली को नजदीक से देखा था दूसरे दिन सुबह 8 कि.मी. पैदल ओढ़ से आमामोरा गए थे। तब पहाड़ी के उपर बसे ओढ़ आमामोरा देश के सुर्खियों में आ गया था और वहीं दूसरी ओर वर्ष 2008-09 में जब आन्द्रशोत उल्टी दस्त से एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी तो छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रथम मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी नदी नालो को पार कर बारिश के दिनों में आमामौरा तक पहुंचे थे। यह दिन ग्रामीणों को आज भी याद है।
- सरपंच एवं ग्रामीणों ने मूलभूत सुविधा उपलबध कराने की मांग
ग्राम पंचायत ओढ़ की सरपंच रामसिंह सोरी एवं आमामोरा सरपंच मैना बाई, विष्णुराम, नर्मदा बाई, जयराम, बाबूलाल, सुखराम, कृष्ण कुमार, रामबती सवेत्री, लखन यादव, अघनतो, पुनीत राम,कंवल सिंह पतिराम, गंभीर सिंह, पुरन मरकाम ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय गरियाबंद के कलेक्टर दीपक अग्रवाल एवं पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा से मांग किया है कि ग्राम आमामोरा ओढ़ तक पक्की सड़क, बिजली, स्वास्थ्य सुविधा, उपस्वास्थ्य केन्द्र, बालिका आश्रम, हाईस्कूल, खोलने के साथ ही मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की है।