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October 16, 2024

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माता सीता की खोज करते कांदाडोगर पहुंचे थे भगवान श्रीराम और लक्ष्मण, लंका विजय के बाद देवी देवताओं ने मनाया था विजयदशमी का पर्व तब से अब तक लगातार जारी

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  • शेख हसन खान, गरियाबंद 
  • कांदाडोंगर पहाड़ी में विराजी है देवी माता कुलेश्वरी, दशहरा पर हजारों श्रद्धालु पहुंचते आशीर्वाद लेने

गरियाबंद । विजयदशमी के अवसर पर कांदाडोंगर में 84 गांव के देवी देवताओं के ध्वज पताका गाजे बाजे के साथ धुमधाम से पहुंचती है और यहां परम्परा अनुसार देव दशहरा का पर्व मनाया जायेगा। भगवान श्रीराम जब लंका में विजय प्राप्त किए तो कांदाडोंगर में विराजमान देवी माता कुलेश्वरी एवं 84 गांव के देवी देवताओं ने इस पहाड़ी में एकत्र होकर विजय दशमी का पर्व धुमधाम के साथ मनाया था तब से लेकर आज तक यहां देव दशहरा का पर्व मनाते आ रहे हैं। और यहां देव दशहरा के पर्व में शामिल होने छत्तीसगढ़ सहित ओड़िसा प्रदेश से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। गरियाबंद जिले के मैनपुर विकासखण्ड कांदाडोंगर पहाड़ी पर विराजे माता कुलेश्वरी देवी एवं माता खम्बेश्वरी देवी स्थल क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक आस्था का केन्द्र है। माता के दरबार मे जो भी मुरादे मांगी जाती है मां उसे अवश्य पूरा करती है कांदाडोंगर के विशाल पहाड़ी के चोटी पर मां का प्राचीन मंदिर है और यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु पूरे श्रध्दा के साथ माता के दरबार मे पहुंचते हैं यहां दशहरा के दिन 84 गढ के देवी देवताओं का विशेष पूजा अर्चना किया जाता है साथ ही विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। दशहरा पर्व मे लगभग 30 हजार से भी ज्यादा लोगो की भीड़ यहां एकत्र होता है। तहसील मुख्यालय मैनपुर से लगभग 68 किमी दूर मैनपुर विकासखण्ड अंतर्गत क्षेत्र के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल कांदाडोंगर क्षेत्र के लोगो का आस्था का प्रमुख केन्द्र है यहां जो भी सच्चे दिल से मन्नत मांगी जाती है उसे माता अवश्य पूरा करती है। खाली हाथ कभी श्रद्धालु नही लौटते जिसके चलते खासकर दशहरा के पर्व में यहां जन सैलाब उमड़ पड़ता है पूरा पहाड़ी क्षेत्र में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है और देवी -देवताओं की पूजा अर्चना कर यहां दशहरा का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

मैनपुर विकासखण्ड के ग्राम गुढ़ियारी स्थित कांदाडोंगर पहाड़ी जहां एक ओर अपनी धार्मिक मान्यता के लिए जाना जाता है। वही दूसरी ओर अपनी प्राकृतिक खुबसुरती के लिए प्रसिद्ध है चारों तरफ घने जंगल हरा भरा क्षेत्र पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है कांदाडोंगर की पहाड़ी में ऊंचा शिखर पर 84 गढ़ की देवी मां कुलेश्वरी का मंदिर है। वही इस पहाड़ पर देवशक्ति से उत्पन्न जलकुंड है जहां का पानी कभी नहीं सुखता।

 

*भगवान श्रीराम भाई लक्ष्मण के साथ कांदाडोंगर पहुंचे थे*

क्षेत्रीय मान्यता के अनुसार यहां के ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाएं प्रचलित है क्षेत्र के बुजुर्गजनों के बताएं अनुसार त्रेतायुग में जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण दोनो भाई माता सीता की खोज करते कांदाडोंगर आये थे यहां कुछ समय बिताये थे। इस पर्वत में ऐसी कई गुफाएं है जिसे लोग लक्ष्मण झुला, हनुमान झुला एवं ऋषियों का तप स्थली के नाम से जानते है। बताया जाता है। जब भगवान श्रीराम ने जब लंका विजय किया तो इसकी सूचना मिलते ही कांदाडोंगर में विराजमान देवी मां कुलेश्वरी, मां खम्बेश्वरी देवी एवं 84 गढ़ के देवी -देवता, ठाकुरदेव अपने -अपने ध्वज पताका के साथ एकत्र होकर यहां विजयदशमी का पर्व धुमधाम से मनाया था तब से आज तक कांदाडोंगर में दशहरा का पर्व धुमाधाम के साथ मनाया जाता है। कांदाडोंगर की पहाड़ी में कई स्थानों पर देवी -देवताओं का स्थल है जहां क्षेत्र के लोग विशेष पूजा अर्चना करते है। कांदाडोंगर क्षेत्र की शान है और यहां देवी -देवताओं से आशीर्वाद लेने तथा पूजा अर्चना करने बड़ी संख्या में प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों ओड़िसा से लोग पहुंचते हैं।

  • आदिवासी परंपरा अनुसार होती है दशहरा पर पूजा

दशहरा के पर्व पर यहां 84 गढ़ के देवी देवताओं के पहुंचने पर मां कुलेश्वरी, मां खम्बेश्वरी व सभी देवी देवताओं का विधि विधान के साथ आदिवासी परंपरा अनुसार पूजा अर्चना किया जाता है जहां क्षेत्र के विधायक से लेकर सभी जनप्रतिनिधि शामिल होते है साथ ही देवी माता से क्षेत्र में सुख शांति समृध्दि खुशहाली के लिये कामना किया जाता है।

कांदाडोंगर में पहाड़ी के नीचे भगवान राधा कृष्ण के साथ अन्य देवी देवताओं का मंदिर निर्माण किया गया है। पूर्व संसदीय सचिव गोवर्धन मांझी, पूर्व विधायक डमरूधर पुजारी,सरपंच सेवन पुजारी, टीकम पुजारी,जयमल यादव,तिरेश प्रधान,सेवक दीवान,मुकेश यादव, बनसिंग यादव,गौकरण,मधु सुर्यवंशी,अमरलाल पटेल,भुनेश्वर व क्षेत्र के वरिष्ठजनों ने बताया वर्षो से कांदाडोंगर में देव दशहरा पर्व मनाने की पर्व मनाने की परम्परा मनाने की चली आ रही है। इस धार्मिक कार्यक्रम में 84 गांव के देवी देवताओं के साथ झांकर, पुजारी,बैगा,सिरहा एवं क्षेत्रभर के लोग शामिल होकर विजय दशमी का पर्व धुमधाम के साथ मनाते हैं।