जन्मवेदी से रत्नवेदी में लौटे महाप्रभु, आज बड़दांड, सुनाबेश में देंगे दर्शन
1 min readलाखों भक्तों के बीच महाप्रभु पहुंचे सिंहद्वार
पुरी। जगन्नाथ महाप्रभु की विश्व प्रसिद्ध बाहुड़ा यात्रा शुक्रवार को शांतिपूर्वक सपंन्न हो गई। सभी पारंपरिक रीति-नीति पूर्ण करने बाद तय वक्त से पहले तीनों देवताओं का रथ सिंहद्वार के लिए प्रस्थान किया। जय जगन्नाथ की जयघोष और लाखों भक्तों की भीड़ के बीच शुरू हुई बाहुड़ा यात्रा 5 बजकर 20 मिनट पर खत्म हुई।
बलभद्र और देवी सुभद्रा के बाद महाप्रभु भगवान जगन्नाथ का रथ आकर सिंहद्वार के सामने लगा। 9 दिनों तक मौसी मां के मंदिर में रहने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा वापस पुरी के श्रीमंदिर लौट आए। इसी को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है। भीड़ के बावजूद भी भक्तों का उत्साह जरा भी कम नहीं हुआ। बाहुड़ा यात्रा से पहले ही लाखों भक्त गुंडिचा मंदिर से लेकर पुरी के श्रीमंदिर तक जमा हो गए। इन लाखों भक्तों के बीच से रथयात्रा निकली।
- सुबह से ही शुरू हो गई थी रीति-नीति
बाहुड़ यात्रा की तैयार शुक्रवार की सुबह से ही शुरू हो गई थी। सुबह साढ़े छह बजे मंगल आरती, मइलम, तड़पलागी विधान को पूरा किया गया। उसके बाद सुबह साढ़े आठ बजे गोपालभोग एवं सकाल धूप में खिचड़ी भोग लगाया गया। इसके बाद दइतापति सेवकों ने सेनापटी (देवता की मूर्ति की पीठ में बांधी जाने वाली लकड़ी की पट्टी) लगाई। उसके बाद पूजा पंडा पति महापात्र और मुदी रथ सेवकों ने तीनों दिवारों पर मंगलार्पण किया एवं पुष्पांजली नीति का समापन किया। उसके बाद 9 बजे आड़प मंडप से तीनों महाप्रभु की पहंडी (आगे-पीछे करते हुए झुलाते हुए आगे ले जाने की धार्मिक रीति) शुरू कर दी गई। पहंडी में महाप्रभु जगमोहन द्वार के सामने पहुंचने के बाद राघव दास मठ से लाया गया टाहिआ (भगवान के सिर पर लगाया जाने वाला मुकुट) लगाया गया। इसके बाद धाड़ी (कतार) पहंडी में पहले चक्रराज सुदर्शन को पारंपरिक पहंडी में रथ में विराजमान कराया गया। उसके बाद महाप्रभु बलभद्र की पहंडी शुरू हुई। फिर देवी सुभद्रा की ओर अंत में महाबाहु श्री जगन्नाथ क ी पहंडी शुरू हुई। घंट, घंटा, मर्द्दन, नृत्य, हुलहुली , शंख शद्द के बीच ठाकुरों को रथ पर बिराजमान कराया गया। उसके बाद रथ पर विभिन्न रीति को संपन्न किया गया।