भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले संपादक सुशील शर्मा की गिरफ्तारी के पीछे आखिर कौन ? शिखा दास
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Mahasamund- विगत 20 मई को छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के प्रवेश द्वार उत्तर बस्तर (कांकेर ) ज़िले से निकलने वाले एकमात्र अखबार बस्तर बन्धुु के संपादक तथा चार दशक से भी अधिक समय के पत्रकार सुशील शर्मा को अचानक रायपुर से आई हुई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन पर आरोप है कि उन्होंने रायपुर पर्यटन मंडल की एक महिला जन सम्पर्क अधिकारी के भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया था जिसकी भाषा शैलि से स्त्री लज्जा बिगाड़ने व एक समुदाय विशेष को भड़काने वाली सामग्री उसमें छापी गई है, यह आरोप अपने आप में हास्यास्पद इसलिए है कि यह सुशील शर्मा जी पर एकतरफा, बिना उनका पक्ष सुने लगाया गया है, जबकि महिला के भ्रष्टाचार के खिलाफ दस्तावेजी सबूत होने के बावजूद उससे कोई प्रश्न ही नहीं किया गया और सीधे-सीधे उसकी ओर से एफ आई आर लिखकर सुशील शर्मा जी पर इतनी तत्परता से कार्यवाही कर दी गई जितनी किसी स॔ज्ञेय अपराध के अपराधी पर की जाती है।
यहां तक कि किसी पत्रकार की गिरफ्तारी से पहले जो सामान्य शिष्टाचार की परिपाटी होती है अर्थात राज्य के जनसंपर्क विभाग द्वारा गठित एक सशक्त कमेटी के समक्ष पत्रकार द्वारा दिए गए समाचार व उन पर लगाये गये आरोपों पर बाकायदा विचार किया जाता है और कमेटी ही तय करती है कि इस पर कोई कार्यवाही की जावे अथवा नहीं, लेकिन रायपुर के सिविल लाइंस थाना में दर्ज कराई गई रिपोर्ट पर जिस फुर्ती से जीरो में अपराध कायम कर उसे रायपुर के ही खम्हारडिह थाना भेज दिया गया। जबकि घटना स्थल व बस्तर बन्धु का पंजीयन, संपादन, लेखन, प्रकाशन सब कांकेर है। इस थाने की पुलिस ने जाने किस दबाब में शर्मा जी को गिरफ्तार करने में आश्चर्यजनक तत्परता दिखायी और सारे नियम कानून, शिष्टाचार आदि को ताक पर रख कर संपादक सुशील शर्मा की गिरफ्तारी कांकेर जाकर की। इस नियम का भी पालन नहीं किया गया कि बस्तर बन्धुु समाचार पत्र कांकेर अदालती क्षेत्र के तहत होने के कारण उस पर रिपोर्ट अथवा कार्यवाही कांकेर न्याय क्षेत्र में होनी चाहिए, लेकिन रायपुर में कार्यवाही हो गई और वहीं एफ आई आर दर्ज की गई ऐसा किसी पत्रकार के साथ पहली बार हुआ है जो कि सरासर गलत और निंदनीय है। कांकेर के पत्रकारों ने तथा बुद्धिजीवी आम जनता ने इस गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की है और प्रदेश शासन से आशा की है कि भ्रष्टाचार की आरोपी महिला पर पूर्व व वर्तमान दोनों ही सरकार में वे किस तरह छल कपट से अपना उल्लू सीधा करती रहीं, नियम विरुद्ध पर्यटन मण्डल में पर्यटन अधिकारी बन सालों मजे करते, देश विदेश की सैर करते घर भरती रहीं और अवैधानिक नियुक्ति की शिकायत पर की गयी जांच में इन्हें जब बर्खास्त कर दिया गया, तो सरकार बदलते ही इनकी फिर लाटरी खुल गई, भूपेश सरकार ने आश्चर्यजनक रूप से अनुराधा दुबे पर भाजपा सरकार के कार्यकाल से अधिक कृपा बरसाई और जिस पर्यटन मण्डल से मोहतरमा बर्खास्त की गयी थीं उसी संस्था में पुरानी नियुक्ति व सेवा समाप्ति को बगैर जांचे परखे, कैबिनेट बैठक दिनांक को कोई पद रिक्त न होते हुए भी जाने कैसे पुरी कैबिनेट बिछ बिछ सी गयी और आपराधिक ढंग से नौकरी पाने पर निकाली गयी इस महिला व इसके नियोक्ता अधिकारियों पर कार्रवाई की जगह इसे विशेष प्रकरण बता नियुक्त करने का निर्णय लिया। बाद में जनसंपर्क अधिकारी का नया एक गैर जरूरी पद अनुराधा दुबे के पुनर्वास के लिए ही बनाया गया। बस्तर बन्धु में प्रकाशित इन तथ्यात्मक खबर पर पहले कार्यवाही होनी चाहिए थी, पर सरकार ने एक कांग्रेसी विचार धारा व पृष्ठभूमि वाले एक ऐसे सम्पादक/ पत्रकार को ही प्रताड़ित कर आतंकित करने की कोशिश की है जिनकी लेखनी की प्रदेश के ताजा तख्तापलट में बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह राजनीति से जुड़े लोग अच्छी तरह से जानते हैं। अपने सूत्रों से जब हमने पड़ताल शुरू की तो पता चला की अनुराधा दुबे के पति राजेश दुबे के संबध भूपेश सरकार में आयुक्त स्तर का दर्जा देकर बिठाये गये दो सज्जनों एक तो मीडिया सलाहकार रूचिर गर्ग एवं राजनैतिक सलाहकार विनोद वर्मा से दैनिक देशबंधु रायपुर के कोइ एक दशक तक सहकर्मी के रप में कार्यरत रहने के दौर से हैं, सरकार में पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े दो- दो लोगों के रहते एक बेदाग छबि के पत्रकार के खिलाफ ऐसा षडयंत्र शर्मनाक है, भाजपा सरकार के दौरान अनेक मंत्रियों नौकरशाहों, मुख्य सचिवों अरूण कुमार, शिवराज सिंह सुनील कुमार, विवेक ढांड जैसे मुख्य सचिवों के खिलाफ सुशील जी ने जमकर लिखा, पुष्प स्टील, भैंसाकन्हार लौह अयस्क खदान घोटाला, वन विभाग का बायोमास चूल्हा – फेन्सिंग पोल घोटाला, पी सी सी एफ बोवाज की पदोन्नति में हुए फर्जीवाडे पर, अनूप भल्ला आई एफ एस के साथ किये गये अन्यायपूर्ण सरकारी बर्ताव, धमतरी कलेक्टर भीम सींह द्वारा अपनी पत्नी को स्वच्छता समन्वयक बनाने का मामला हो, पूर्व मंत्री अजय चन्द्राकर, मेघाराम साहू के मामले, ब्रजमोहन अग्रवाल जी के राजिम कुंभ की बात हो, अजीत जोगी सरकार में राजेश तिवारी की षड़यंत्र पूर्वक गिरफ्तारी की घटना हो, सिविल जजों की भर्ती में गड़बड़ी के मामलों के अलावे उनकी उपलब्धियों की बहुत लम्बी सूची है, पर उस दौरान न जोगी सरकार ने, न ही डाॅ रमन सिंह की सरकार ने जिसमें मीडिया क्षेत्र का हमारा कोई प्रतिनिधि नहीं था फिर भी सरकार विरोधी तथ्योत्घाटन, चुभने वाले वाक्य विन्यास के बाद भी ऐसी कारवाई उन पर कभी करने की बात तो दूर सोची तक नहीं गयी थी । जिस पत्रकार की सेवाओं के लिए उन्हें पुरस्कृत/सम्मानित करने की अपेक्षा सरकार से थी, उन्हें उनकी नि:स्वार्थ सेवाओं का अच्छा ईनाम भूपेश सरकार ने दिया है।
इस मामले से सरकार के खिलाफ बहुत ही गलत संदेश गया है, सरकार की छबि विकृत हुई है, जबकि सुशील शर्मा की ख्याति और भी बढ़ गयी है। ईमानदारी से बात की जाये तो एक पत्रकार के रूप में कांग्रेस पार्टी की जितनी सेवा सुशील शर्मा ने की है उसके सामने रूचिर गर्ग व विनोद वर्मा कहीं नहीं ठहरते, बस उनका दुर्भाग्य यह है कि वे बस्तरिया हैं, स्वभाव से भी।
ज्ञातव्य है कि सुशील शर्मा सन् 1975 से ही विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं से लगातार जुड़े हुए हैं और सन् 1995 से वे स्वयं का अखबार बस्तर बन्धुु निकाल रहे हैं जोकि बिना किसी भेदभाव के किसी भी पार्टी के नेता अथवा कितने ही बड़े अफसर मंत्री मुख्यमंत्री तथा देश के किसी भी बड़े व्यक्ति के खिलाफ वन मैन आर्मी होने के बावजूद निडरता से भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने के लिए जाने जाते हैं। इसीलिए इस अखबार को बस्तर का ब्लिट्ज कहा जाता है। सुशील शर्मा पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने विशिष्ट योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार सम्मान प्राप्त कर चुके हैं जिसमें प्रदेश स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी शामिल हैं। उन्होंने बस्तर के कुख्यात मालिक मकबूजा कांड पर महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी है। आशा है कि शर्मा जी को प्रदेश के समस्त संगठनों, पत्रकारों, राजनैतिक दलों, नागरिकों का समर्थन मिलेगा और सरकार को उनके खिलाफ दायर किया गया झूठा एफ आई आर निरस्त करना ही होगा। वैश्विक्र बीमारी कोरोना काल तथा कांकेर में कोरोना पाजिटिव मरीज पाये जाने से लाक डाउन की कडाई के कारण किंचित विलंब से 28 मई को वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा की अचानक एवं एक तरफा गिरफ्तारी का विरोध करते हुए उनके गॄह नगर कांकेर के प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारगणों ने कांकेर कलेक्टर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम एक महत्वपूर्ण ज्ञापन सौपा है। जिसमें उल्लेख किया गया है कि सुशील शर्मा छत्तीसगढ़ के वरिष्ठतम पत्रकारों में से एक हैं । उनका स्वयं का साप्ताहिक अखबार बस्तर बन्धुु कांकेर से विगत 25 वर्षों से निरंतर प्रकाशित होता आ रहा है।
सुशील शर्मा प्रगतिशील दृष्टिकोण के पत्रकार हैं तथा निष्पक्षता के चलते किसी भी जातिवाद, धर्मवाद, अथवा पार्टीवाद से ऊपर उठकर पत्रकारिता करने में विश्वास करते हैं। उनके लिए पत्रकारिता एक मिशन है।
3, भाजपा के 15 वर्षीय शासन में भी उन्होंने भ्रष्टाचार संबंधी अनेक भंडाफोड़ किए हैं जो बहुचर्चित एवं प्रशंसनीय हुए हैं।
सुशील शर्मा ने अनेक उच्च स्तरीय पत्रकारिता पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए हैं क्योंकि उन्होंने निडरता पूर्वक बस्तर के सुदूर नक्सल प्रभावित अंचलों में भी जाकर जमीनी रिपोर्ट तैयार करने एवं सत्य तथ्य प्रकाशित करने हेतु कई बार प्राणों की बाजी भी लगाई है। झीरम घाटी हत्याकांड तथा ताड़मेटला कांड तो इसके मात्र दो उदाहरण हैं।
पत्रकार सुशील शर्मा को रायपुर की पुलिस ने बिना किसी आचार संहिता का पालन किए एक भ्रष्टाचार की आरोपी महिला अधिकारी की फर्जी आरोपों वाली शिकायत पर आनन-फानन में एफ आई आर दर्ज कर सीधे कांकेर स्थित उनके निवास पर थाना खमारडीह रायपुर से कोरोना काल के बावजूद पुलिस पार्टी भेजकर गिरफ्तारी कर 5000 रूपए के मुचलके पर रिहा किया गया है।
बस्तर बन्धुु का कार्य तथा न्याय क्षेत्र कांकेर होने के बावजूद रायपुर में रिपोर्ट लिखी गई और कांकेर के किसी भी पुलिस अधिकारी अथवा पत्रकार अथवा जनप्रतिनिधि को सूचित किए बिना, शासन के दिशा-निर्देशों/आचार संहिता को ताक में रखकर सीधे घर आकर गिरफ्तारी कर दी जिसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। और इसे प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला ही माना जाएगा। जबकि भ्रष्टाचार की आरोपी महिला पर सुशील शर्मा के अखबार बस्तर बन्धुु में जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें से किसी पर भी उनसे आज तक कोई प्रश्न भी नहीं पूछा गया है ।
अतः हम सब पत्रकार गण इस एकतरफा तथा तानाशाही गिरफ्तारी का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री से मांग करते हैं कि मामले की सूक्ष्म जांच करवाते हुए भ्रष्टाचार की आरोपी महिला अफसर के कारनामों की भी जांच की जाए और गलत ढंग से एफ आई आर दर्ज कर गिरफ्तारी किए जाने के दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए सुशील शर्मा पर दर्ज धारा 504 व 509 के प्रकरण को समाप्त करने के निर्देश दिये जाने चाहिए । फरियादी महिला व प्रकाशन से प्रभावित अन्य सभी लोगों के लिए मानहानि का दावा करने का विकल्प सदा उपलब्ध है। पेपर छापे जाने पर समाचार से प्रभावित व्यक्तियों के इसी तरह थानों में सीधे संपादकों/पत्रकारों पर एफ आई आर दर्ज करने की नई परम्परा शुरू की जायेगी तब तो हो चुकी अभिव्यक्ति के अधिकारों व पत्रकारिता की रक्षा। सुशील शर्मा जी द्वारा बस्तर बन्धु में अनुराधा दुबे के खिलाफ जो स्पष्ट आरोप लगाये गये हैं की उन्होंने तथ्यों को छुपा कर कैबिनेट को अधेरे में रखकर अनुकूल फैसले करा लिए, उनकी पर्यटन मण्डल में निजी संगीत विद्यालय से पर्यटन अधिकारी के पद पर नियम विरुद्ध प्रतिनियुक्ति, फिर बर्खास्तगी के तथ्य छुपा कर पद न होते हुए भी उसी पर्यटन मंडल में केबीनेट से विशेष प्रकरण बतला निर्णय कराना बाद में जन सम्पर्क अधिकारी का पद बनाया गया, इन सारे आरोपों की न्यायिक जांच करा सरकार कार्रवाई करेगी हम सब ऐसी अपेक्षा रखते हैं।
ज्ञापन सौंपने वाले पत्रकार शारीरिक दूरी बनाये रखते हुए कलेक्टोरेट पहुंचे थे, कलेक्टर कक्ष में महज तीन पत्रकार दाखिल हुए। ज्ञापन में राजेश शर्मा, टिनकेश्वर तिवारी, कमल शुक्ला, अमित चौबे, खालिद अख्तर, नरेश भीमगज, रूपेश नागे, नीरज तिवारी, गौरव श्रीवास्तव, सुशील सलाम, एस के खान, टोकेस्वर साहू, चंद्रजीत यादव, विनोद साहू, हिरेश्वर साहू, निपेन्द्र सिंह ठाकुर, तामेश्वर सिन्हा, राजेश सिन्हा, डाकेश्वर सोनी, सुनील ठाकुर, हबीब राज, दीपक पुड़ो, मोहनीश सोनी, प्रांजल झा, आशु शुक्ला आदि के हस्ताक्षर हैं।