विशेष आलेख – मंडल कमीशन के सूत्रधार बी.पी. मंडल
1 min readनब्बे के दशक में जिस एक घटना ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भारी उथल पुथल मचायी थी, वह थी तत्कालीन केंद्रकी जनता दल सरकार की ओर से मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाना। इस कमीशन के सूत्रधार थे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल। आइए उनकी 101वीं जयंती पर उन्हें याद करें।आज से 101 साल पहले 25 अगस्त, 1918 को मधेपुरा के मुरहो गांव के जमींदार परिवार में जन्मे बी.पी. मंडल अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री बने़ 1979 में। मोरारजी देसाई की सरकार ने उन्हें बैकवर्ड क्लास कमीशन का अध्यक्ष नियुक्त किया था। 1980 में इंदिरा गांधी के केंद्र की सत्ता में दोबारा आने के बाद उनके कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंपी गयी।दस साल बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया था।वर्तमान मधेपुरा जिले के मुरहो गांव के बड़े जमींदार रास बिहारी मंडल के बेटे बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल 31 दिनों तक अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके पौत्र और जदयू के नेता निखिल मंडल बताते हैं कि बी.पी. मंडल के पिता रासबिहारी मंडल जब काशी में सपरिवार स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, तब वहीं उनका जन्म हुआ।शोषित दल नाम की उनकी पार्टी जितने दिन सरकार में रही, किसी के सामने झुकने को राजी नहीं हुई।बिहार विधानसभा के दस्तावेजों के मुताबिक विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के दौरान मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने रामायण की एक चौपाई, ‘मन मलीन तन सुंदर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे’ को उद्धृत करते हुए कहा था, जब तक मैं मुख्यमंत्री रहूंगा और मेरा मंत्रिमंडल रहेगा, हमारा वही ध्येय होगा कि हम पर किसी तरह की अंगुली नहीं उठे। भगवान को साक्षी रख कर बिहार की जनता की सेवा करना ही शोषित दल की सरकार का एकमात्र ध्येय है। बिहार विधानसभा में उन्होंने कहा :-शोषित दल की मेरी सरकार में जितने आदिवासी और दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व हुआ है, शायद बिहार के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ हो और न भविष्य में होगा। डॉ.राममनोहर लोहिया साठ और चालीस की बात करते थे, (संसोपा ने बाँधी गाँठ, पिछड़े पावें सौ में साठ-डॉ. लोहिया) लेकिन इस सरकार में 85 प्रतिशत बैकवर्ड मंत्री हैं।हमारी पार्टी में फारवर्ड भी हैं और बैकवर्ड भी़, राजपूत हैं, ब्राह्मण भी हैं और भूमिहार आदि सभी जाति के लोग हैं।85 प्रतिशत बैकवर्ड हैं। सदन में विश्वास मत पर मतदान की प्रक्रिया आरंभ हुई़ ।उस दिन सदन में कुल सदस्यों की संख्या 319 थी। पांच सदस्यों ने मतदान नहीं किया था। सरकार के पक्ष में 165 वोट पड़े और विपक्ष में 148 सदस्यों ने मतदान किया।कांग्रेस के ललितेश्वर प्रसाद शाही तटस्थ रहे, उन्होंने अपने मत पत्र पर हां और ना कुछ भी अंकित नहीं किया था।बिहार की राजनीति में बी.पी. मंडल अपने समकालीन नेताओं में खास थे।शुरुआती दिनों में वे कांग्रेस में सक्रिय रहे। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के टिकट पर ही विधायक निर्वाचित हुए थे। बाद में केबी सहाय की सरकार में मंत्री बने। लेकिन, राजनीतिक मतभेदों के चलते उन्होंने 1965 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और डॉ. लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गये। -आसान नहीं था मंडल कमीशन को लागू करना-
बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में गठित बैकवर्ड क्लास कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर पाना इतना आसान नहीं था।इंदिरा गांधी जैसी ताकतवर राजनीतिक हस्ती भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पायी़।असलियत यह थी इंदिरा गाँधी सवर्ण जातिवाद से ग्रसित थी। नब्बे का दशक आरंभ होने वाला था।विश्वनाथ प्रताप सिंह की गठबंधन सरकार देश में चल रही थी।कांग्रेस विरोध में इस सरकार को भाजपा और भाकपा का भी समर्थन हासिल था।इसके बावजूद गैर कांग्रेसी हुकूमत के जो साइड इफेक्ट होते हैं, वह भी साफ दिखने लगा था।राष्ट्रीय स्तर पर हालात ऐसे बने कि वी.पी. सिंह की सरकार ने बड़ा दांव खेलते हुए मंडल कमीशन की अनुशंसाओं को कुछ सुधार के साथ लागू करने का फैसला कर लिया।13 अगस्त, 1990 को आयोग की सिफारिशों के आधार पर पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की अधिसूचना जारी हुई़। आरक्षण को लेकर देश भर में सवर्ण आंदोलन हुए। इसके पक्ष-विपक्ष की ताकतें सड़कों पर उतर आयीं।कई छात्रों ने आत्मदाह की कोशिशें की।उसी दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा का रथ देशव्यापी दौरे पर निकल पड़ा। बिहार में समस्तीपुर में उनकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गयी।भाजपा को तो बस ज़मर्थं वापसी का बहाना चाहिए था।आरक्षण का मामला अदालत पहुंचा।जिसे इंदिरा साहनी व अन्य वनाम भारत सरकार के रूप में जाना जाता है। भारी अंतर्विरोध के बीच 16 नवंबर,1992 को सुप्रीम कोर्ट ने मंडल कमीशन को लागू करने के फैसले को सही ठहराया।
( सात दिनों की सरकार बी.पी.मंडल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बिहार में सतीश प्रसाद सिंह के नेतृत्व में महज सात दिन की सरकार बनी थी। उसका काम सिर्फ बी.पी. मंडल का विधान परिषद में मनोनयन था। उसके बाद सतीश प्रसाद सिंह ने इस्तीफा दे दिया।यह सरकार इसलिए बनी क्योंकि तब बी.पी. मंडल सांसद थे, विधायक नहीं। उन्हें सी.एम. बनाने के लिए तब उन्हें विधान मण्डल का सदस्य बनाना जरूरी था।)
16 नवंबर,1992 को सुप्रीम कोर्ट ने मंडल कमीशन को लागू करने के फैसले को सही ठहराया। 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग गठित हुआ था। सज-संवर गया बीपी मंडल का गांव मधेपुरा- मंडल कमीशन के मसीहा और राज्य सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का पैतृक गांव मुरहो जिला मुख्यालय से महज दस किमी की दूरी पर स्थित है।विगत वर्ष 25 अगस्त,2018 को यहां उनकी 100वीं जयंती मनायी गयी, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई समाजवादी नेताओं का आगमन हुआ। इस समारोह को लेकर पूरे गांव में उमंग और उत्साह का माहौल रहा।प्रशासनिक महकमा गांव को सजाने-संवारने में जुटा रहा। सदर प्रखंड के मानिकपुर से निहालपट्टी तक नयी सड़क बना दी गयी । घर के ठीक सामने बन रहा प्रार्थना स्थल बी.पी. मंडल के पुराने घर व परिसर को देख आप अंदाजा लगा सकते हैं कि संपन्न परिवेश में पले-बढ़े मंडल ने किस प्रकार समृद्ध गांव का सपना देखा था।उनके घर के पश्चिम दिशा में गर्ल्स स्कूल और उत्तर दिशा में सड़क पार करते ही कमलेश्वरी यादव मध्य विद्यालय स्थित है. कमलेश्वरी बाबू बी.पी. मंडल के भाई व विधान परिषद के सदस्य रहे थे. फिलहाल इस मध्य विद्यालय को सीएम के कैंप आवास व कार्यालय का रूप दिया गया था। स्व. मंडल के पैतृक आवास परिसर में अब सभी पांच पुत्रों का अपना मकान बना हुआ है।
बाबू बी.पी. मंडल के पुत्र पूर्व विधायक मणींद्र कुमार मंडल उर्फ ओम बाबू घर के बरामदे पर बैठे हुए चाय की चुस्की के बीच बीते समय को याद करते ओम बाबू कहते हैं कि अब सियासत ही नहीं सियासतदां भी बदल गये हैं।पहले पिताजी के समय में मूल्यों की राजनीति होती थी।अब जाति व धन के बढ़ते प्रभाव ने माहौल को संक्रमित कर दिया है।निखिल मंडल स्व. बी.पी. मंडल के पौत्र हैं, राजनीति में परिवार की तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं।
गंगा यादव बताते हैं कि बिंदेश्वरी बाबू के मुख्यमंत्री काल में मुरहो को मुख्य सड़क से जुड़ने का सौभाग्य मिला था। मो. इंसान कहते हैं कि बड़े लोग गांव में रहते हैं या कभी-कभार आते हैं तो विकास की तस्वीर देखने को मिलती हैं।उन्होंने गांव के लोगों को स्वाभिमान से जीना सिखाया था। आजकल संपन्न लोग कमजोर तबके को कुछ रुपये देकर धौंस जमाते हैं। लेकिन बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल इससे अलग थे। कोई जरुरतमंद पहुंच जाए तो पहले उसके रोजगार की बात कर उसे काम करने के लिए प्रेरित करते थे।ताकि गांव के लोग स्वाभिमान के साथ जिंदगी व्यतीत करें। आज है कि 28 साल में मंडल आयोग की वजह से कितना बदला देश । आरक्षण का मुद्दा फिर से बहस में दाखिल हो रहा है। एक तरफ बी.पी. मंडल की जन्म शताब्दी के बहाने पिछड़े की राजनीति को गरमाने की कोशिश हो रही है, तो दूसरी तरफ आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिये घड़ियाली आंसू बहाने का अभ्यास किया जा रहा है।
वैसे सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में दी। विभिन्न राज्यों में भी कई आयोग गठित हुये।बिहार में भी 1971 में मुंगेरीलाल की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था। राष्ट्रीय स्तर पर बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में 1 जनवरी 1979 को गठित दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग ने दिसम्बर, 1980 में अपनी रिपोर्ट दी और अगस्त 1990 में इसे लागू किया गया।
इस रिपोर्ट का स्थूलतः चार संदर्भ बिंदु थेः-
1. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग को परिभाषित करने के मानदंडों का निर्धारण।
2. चिह्नित सामाजिक शैक्षणिक पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिये अनुशंसा करना।
3. सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग के ऐसे नागरिकों को जिनका केन्द्र या राज्य के सार्वजनिक सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, उनकी नियुक्ति और प्रोन्नति में आरक्षण की वांछनीयता की पड़ताल करना।
4. तथ्यों के आधार पर सम्यक अनुशंसा महामहिम राष्ट्रपति को सौंपना।
यह रिपोर्ट सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन के तीन मानदंडों को जाति/वर्ग के सामाजिक चार संकेतकों में –
क. जिन्हें दूसरे लोग पिछड़े मानते हैं। ख. जो मुख्यतः शारीरिक श्रम पर अपनी जीविका के लिये निर्भर हैं।
ग. ग्रामीण इलाके में जिनके 25 प्रतिशत स्त्री और 10 प्रतिशत पुरूष और शहर में 10 प्रतिशत महिलायें और 5 प्रतिशत पुरूष 17 साल से कम उम्र में शादी करते हैं।
घ. महिलाओं की काम में भागीदारी राज्य के औसत से 25 प्रतिशत अधिक है.
जाति/वर्ग के शैक्षणिक 3 संकेतकों में
क. स्कूल नहीं जाने वाले 5-15 आयु समूह का राज्य औसत से 25 प्रतिशत अधिक हो,
ख. छात्रों का छीजन दर राज्य औसत से 20 प्रतिशत अधिक हो,
ग. मैट्रिक उत्तीर्ण राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम हो.
जाति/वर्ग के आर्थिक 4 संकेतकों में
क. पारिवारिक सम्पत्ति का औसत मूल्य राज्य औसत मूल्य से 25 प्रतिशत कम,
ख. कच्चा घर में रहने वाले का औसत संख्या राज्य औसत से 25 प्रतिशत अधिक,
ग. 50 प्रतिशत से अघिक परिवार के लिये पेय जल का स्रोत आधा किलोमीटर से अधिक हो, और घ. उपभोग ऋण राज्य औसत से कम सम कम 25 प्रतिशत अधिक हो। प्रत्येक सामाजिक मानकों के लिये 3 अंक, शैक्षिक मानकों के लिये 2 और आर्थिक मानकों के लिये 1 अंक निर्धारित किया गया। इस प्रकार कुल 22 अंकों के 50 प्रतिशत अर्थात 11 या उससे अधिक अंक वाले जाति को राज्य सापेक्ष पिछड़ा माना गया।
मण्डल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 52 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों की आबादी थी, किंतु 22.5 फीसदी अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षित है।चुंकि संविधान की धारा 15(4) और 16(4) के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय के अनेक निर्णयों के आाधार पर आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है, नियुक्ति और प्रोन्नति हेतु मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की गयी। इसमें मेधा के आधार पर चयनित व्यक्ति को आरक्षण में नहीं गिनने और अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति की तरह उम्र सीमा की छूट और रोस्टर अनुपालन की अनुशंसा थी। इसी तरह शिक्षा और वित्तीय सहायता और ढांचागत बदलाव के लिये प्रगतिशील भूमि कानून एवं वितरण, और केंद्रीय सहायता की अनेक अनुशंसा भी थीं।अंत में दो दशक बाद इन सभी परियोजनाओं की समीक्षा करने की अनुशंसा की गयी थी। इसके कारण हिंदुस्तान के समाज और राजनीति में युगांतकारी बदलाव आये हैं। इससे राजनीति और सेवा के क्षेत्र में प्रतिनिधित्व बढ़ा है और शिक्षा के क्षेत्र में भागीदारी में महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं।नामांकन दर बढ़ा है और छीजन दर में भी कमी आयी है। यह बात दीगर है कि सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों की दशा बड़े दावे के बीच आज भी दयनीय है। इसी बीच सामाजिक आर्थिक जनगणना 2011 कराया गया, जिसे सार्वजनिक होना था।पर,भाजपा सरकार ने ओबीसी की जनगणना को घोषित नहीं किया। यह जनगणना 1931 के बाद पहली बार हुई।उम्मीद थी कि लगभग दो दशक बाद नये आंकड़े आ जाने से मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार फिर से पड़ताल होगी और प्रभावी रूप से कार्य करने में सफलता मिलेगी।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख बीच-बीच में आरक्षण समीक्षा की चर्चा करते रहे हैं,तो प्रतिपक्ष के दबाव में सत्तापक्ष आरक्षण को यथावत् रखने की सफाई भी पेश करती रही है।पिछले मानसून सत्र में केंद्र में पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो गया है। शायद अब मंडल आयोग के अनुशंसा के अनुसार अद्यतन तथ्यों के आधार पर प्रभावी समीक्षा कर सकेगी।
आज की राजनीति डा. लोहिया और बी.पी.मंडल को स्वयं भी यह अनुमान नहीं रहा होगा कि उनकी अनुशंसा लागू होने के बाद देश के सामाजिक और राजनैतिक मानचित्र में इतना उथल-पुथल, सशक्तीकरण और दूरगामी परिणाम सामने आयेगा़। बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्य इसके उदाहरण हैं।
मंडल आयोग का गठन जनता पार्टी की सरकार ने किया था़।इसकी रिपोर्ट आयी कांग्रेस की सरकार के समय़। कांग्रेस इस रिपोर्ट को दबा कर बैठ गयी़। बाद में वी.पी. सिंह की सरकार के समय मुलायम सिंह यादव,शरद यादव,लालू प्रसाद यादव के प्रयास से इसे लागू किया गया़।
बी.पी. मंडल पिछड़ों के मसीहा थे़। इन्ही की देन है कि आज लाखों की संख्या में पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी मिली और मिल रही है़। इनके जीवन के बारे में लोगों को बताने की जरूरत है़। मंडल कमीशन की अधिकतर अनुशंसाओं को आज भी लागू नहीं किया गया है़।जब तक पूरी अनुशंसाओं को लागू नहीं किया जाता पिछड़ों और शोषित वर्ग के लोगों को उनका वास्तविक हक नहीं मिल पायेगा़।अत्यंत खेद का विषय है कि खुद वह वर्ग जिससे संबंधित यह कमीशन है,वही मण्डल व मण्डल कमीशन के बारे में नहीं जानता।
बी.पी.मंडल सोशल साइंटिस्ट थे़। इन्होंने मंडल आयोग के माध्यम से देश भर में साढ़े तीन हजार से अधिक जातियों व वर्गों की खोज की़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन्हें भारत रत्न घोषित करना चाहिये़।देश के लोग मंडल कमीशन को जानते हैं, लेकिन बी.पी. मंडल को नहीं जानते़, यह दुर्भाग्य है़। बी.पी. मंडल ने पिछड़ों के हित में व्यापक कार्य किया़ ।उनकी अध्यक्षता में बनी रिपोर्ट एक ऐतिहासिक दस्तावेज है़। 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट को लागू किया़।कैटेगरी के हिसाब से पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण का लाभ मिला़।आज इस रिपोर्ट के लागू होने से देश में बड़ा बदलाव आया है।नरेंद्र मोदी,कल्याण सिंह,उमा भारती,बाबूलाल गौर,शिवराज 2सिंह चौहान, नीतीश कुमार आदि मण्डल की ही उपज हैं।
जब मण्डल के परोक्ष विरोध में सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राममंदिर निर्माण का मुद्दा लेकर कमण्डल के साथ रामरथ पर सवार हुए तो मण्डल का मजा लेने वाले मोदी,उमा,कल्याण, शिवराज,बाबूलाल, विनय कटियार आदि आवभगत व अगुआनी में जुटे थे।
आज उत्तर प्रदेश में पिछड़े अतिपिछड़े,दलित,वंचित,अकलियत और महिलाएं जो ग्राम प्रधान,ब्लॉक प्रमुख,पार्षद,चैयरमैन, मेयर,जिला पंचायत अध्यक्ष आदि बन रहे हैं,मण्डल व नेताजी मुलायम सिंह यादव की ही देन है।
जय मण्डल! जय सामाजिक न्याय!!
चौ.लौटनराम निषाद
राष्ट्रीय सचिव-राष्ट्रीय निषाद संघ