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November 24, 2024

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छोटी प्रशासनिक इकाइयां शासन की योजनाओं और कार्यक्रमों को अधिक सटीक तरीके से क्रियान्वयन के लिए बेहतर

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संदर्भ- गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले का शुभारंभ

लेखक- तारन प्रकाश सिन्हा (आयुक्त, छतीसगढ़ जनसंपर्क)

मनीष शर्मा,7400566000

सन् 1902 में चुनौतियों से जूझता हुआ छत्तीसगढ़ का पहला समाचार-पत्र जब बंद हुआ था तब इसके संपादक माधवराव सप्रे जी ने लिखा था- “परमात्मा के अनुग्रह से जब छत्तीसगढ़-मित्र स्वयं सामर्थ्यवान होगा, तब वह फिर कभी लोकसेवा के लिए जन्मधारण करेगा। पेंड्रा की धरती से की गई उनकी यह भविष्यवाणी आज सच हो रही है। अधिक सामार्थ्यवान होकर लोकसेवा का स्वप्न आज देह धारण कर रहा है।…और सपने का यह पुनर्जन्म एक नये आदिवासी जिले के रूप में हो रहा है- गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के रूप में।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को इस नये जिले के गठन की घोषणा की थी। उसी के अनुरूप यह आज से प्रदेश के 28वें जिले के रूप में अस्तित्व में आ जाएगा। बिलासपुर जिले से गौरेला, पेंड्रा और मरवाही तहसीलों से अलग कर इस नये जिले का गठन किया गया है। ये तीनों ही तहसीलें आदिवासी बहुल हैं। विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति के लोग इस नये जिले में बड़ी संख्या में निवास करते हैं। इस तरह यह जिला पूरी तरह एक अधिसूचित क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आ रहा है।

मध्यप्रदेश के विशाल भूभाग से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना था, फिर छत्तीसगढ़ के बड़े जिलों को विभाजित कर 27 जिले बने। इस पूरी प्रक्रिया में हमने पाया कि बड़ी प्रशासनिक इकाइयों की तुलना में छोटी प्रशासनिक इकाइयां शासन की योजनाओं और कार्यक्रमों को अधिक सटीक तरीके से क्रियान्वित करती हैं। छोटे प्रशासनिक क्षेत्रों का विकास स्थानीय आवश्यकताओं, अपेक्षाओं और विशेषताओं के अनुरूप अधिक तेजी से होता है। इसी क्रम में अब 28वें जिले के रूप में अस्तित्व में आते ही पेंड्रागौरेला-मरवाही में भी संभावनाओं के अनेक दरवाजे खुल गए हैं।

इस क्षेत्र को जिला बनाने की मांग बहुत पुरानी है। यह उचित भी थी, क्योंकि इस क्षेत्र की तासीर सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से शेष बिलासपुर से अलग ही रही। इस तरह इसकी जरूरतें भी अलग ही तरह की रहीं, जिनकी पूर्ति के लिए अलग ही तरह की प्रशासनिक रणनीति की आवश्यकता हमेशा महसूस की जाती रही।

वर्तमान सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं के केंद्र में आदिवासियों और किसानों को रखा है। राज्य के विकास के लिए जो नया आर्थिक मॉडल अपनाया गया है, उसके केंद्र में खेत और जंगल हैं। शासन की नयी उद्योग नीति भी कृषि और वन आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करती है। नये जिले में जंगल भी भरपूर हैं और खेत भी। जिले में जहां वनौषधियों की प्रचुरता है, वहीं यहां के खेत विष्णुभोग जैसा बेहतरीन खूशबूदार चावल उपजाते हैं। इस तरह यह जिला अपने गठन के साथ ही शासन की प्राथमिकताओं के केंद्र में खुद-ब-खुद आ खड़ा हुआ है। किसानों और आदिवासियों के हित में जो योजनाएं बनाई गई हैं, नये जिले में अब उनका क्रियान्वयन ज्यादा प्रभावी तरीके से हो पाएगा। इस जिले में निवास करने वाले विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति के कल्याण के लिए ज्यादा कारगर तरीके से काम हो पाएगा।

यह नया जिला, मध्यप्रदेश की सीमा से सटा हुआ। प्रसिद्ध पर्यटन स्थल अमरकंटक बिलकुल लगा हआ है। वैसा ही प्राकृतिक सौंदर्य पूरे जिले में बिखरा पड़ा है। यहीं पर अरपा नदी का उद्गम है। धनपुर जैसे पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थान यहां पर हैं। इन प्राचीन स्थलों की अपनी कहानियां हैं, जिनमें बहुत सी अनकही-अनसुनी रह गई है। ये कहानियां पांडवों, बौधों, जैनों से लेकर कल्चुरियों तक से हमें जोड़ती हैं। अब इस नये जिले के सौंदर्य को भी निहारा जाएगा, इसकी कहानियों को भी सुना जाएगा। छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों में से एक पेंड्रागढ़ को फिर से गढ़ने का काम आज से शुरु हो गया है।

सबकी तरह मेरा भी उस शहर से जज्बाती रिश्ता है, जहां मेरा जन्म हुआ, जहां मेरा बचपन बीता। सबकी तरह मेरे सपनों में भी मेरा वह शहर आता-जाता रहा है। मेरे सपने उस शहर में आते-जाते रहे हैं। उस शहर में बसे लोग, उसके गिर्द बसे गांव, गांवों के गिर्द खेत, खेतों की खुशबू, खुशबूदार जंगल, जंगलों की नम हवाएं, हवाओं में तैरते परिंदे, सबके सब मेरे सपनों में आकर बतियाया करते हैं हमेशा। हम बातें करते थे कि सबकुछ होते हुए भी यह पूरा क्षेत्र पीछे क्यों रह गया। अपने अद्भुत सौंदर्य के बावजूद अनचिन्हा क्यों रह गया। पुरखों की आवाजें अनसुनी क्यों रह गईं। यह पेंड्रा शहर था, जिसे पेंड्रा रोड भी कहते हैं। मध्यप्रदेश के अमरकंटक से सटी हुई वैसी ही दिलकश जगह। दिल छू लेने वाली वहां की बोली, वहां के गीत, वहां के तीज त्योहार। वहां के लोगों की बहुत पुरानी चाहत थी कि पेंड्रा जिला बने, ताकि उसको उसकी वास्तविक पहचान मिले, विकास का वास्तविक अधिकार मिले। वहां के लोगों की इस चाहत में मेरी भी जज्बाती साझेदारी थी। इसीलिए आज जब छत्तीसगढ़ के 28 वें जिले के रूप में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला अस्तित्व में आ रहा है, तब सबके साथ मेरी भी चाहत पूरी हो रही है।

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