भारतीय संस्कृति व सभ्यता के विकास में निषाद जातियों की अहम भूमिका रही
1 min readउत्तर भारत में नदियाँ व निषाद विषय पर हुई व्यापक चर्चा
शिमला। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा शिमला अवस्थित राष्ट्रपति भवन में उत्तर भारत में नदियों व निषाद विषय पर विद्वानों,समाजशास्त्रियों,पुरातत्वविदों, अर्थशास्त्रियों व मंवविज्ञानियों की एक संगोष्ठी 4 चरणों में सम्पन्न हुई।प्रथम चरण में प्रो.एम.पी.सिंह की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी के प्रतिभागियों के परिचय डॉ. रामशंकर सिंह ने कराया।जी.बी.पन्त समाजविज्ञान अध्ययन केंद्र के प्राध्यापक प्रो.बद्रीनारायण जी ने निषाद समुदाय के स्मृतिलोक और नदी विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय समाज व्यवस्था व संस्कृति के विकास में निषाद जातियों का अहम योगदान है,पर आज यह समाज संकट का शिकार है साथ ही तमाम नदियोँ के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।निषाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी थे,पर आज ये खुद अपनी रोजी रोटी व व्यवसाय की रक्षा के लिए परेशान हैं।इनके परम्परागत पेशों पर पूंजीपतियों व माफियाओं के कब्जे हो गया है।जबकि कभी यह समाज नदी व्यवसाय पर अपना अधिकार समझता था,वही ज़माज आज लाचारी व बिबसता का शिकार है।
द्वितीय चरण की अध्यक्षता प्रो.सुजाता पटेल व ‘पवित्र नदी प्रदूषित नदी:कुछ विचार गंगा नदी के संदर्भ में’ प्रो.अवधेन्द्र शरण ने चर्चा करते हुए कहा कि नदियों के प्रदूषण से मानव सभ्यता के साथ नदी पेशे से जुड़े समुदायों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।निषाद जातियों का अस्तित्व किसी न किसी रूप में नदी से जुड़ा है।नदी,राष्ट्र और इतिहास:भारतीय नदियां और आधुनिक भारत का निर्माण विषय पर डॉ. शुभनीत कौशिक ने अपना शोधपरक अध्ययन पढ़ा और कहा कि आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य नदी व नदी से जुड़ी जातियों के लिए खतरा उत्पन्न करता जा रहा है।तृतीय चरण में नदियाँ व लोग विषय पर आधारित परिचर्चा में प्रो.सुश्री विजय रामास्वामी की अध्यक्षता में गंगा घाटी में मानव सभ्यताएं एवं मध्यकालीन असम में कैवर्त के नव व्यवहार जीवन की स्थिति विषय पर डॉ. महेंद्र पाठक व प्रो. सुचन्द्रा घोष ने विस्तार से चर्चा करते हुए असम व बंगाल के निषाद, धीवर व कैवर्त समाज की स्थिति पर प्रकाश डाला।
वही चतुर्थ चरण की परिचर्चा जो प्रो.एम.पी.सिंह की अध्यक्षता में आहूत की गई,जिसका विषय था-“साहित्यिक परिकल्पना, नदियाँ व नदी से जुड़े समुदायों के संदर्भ में थी,के प्रतिभागी प्रो.आशीष त्रिपाठी(गंगा और उसका तटवर्ती समाज:हिंदी साहित्य में निषाद-बनारस के संदर्भ),धीरेंद्र सिंह( पूर्व औपनिवेशिक भारत में नदी,निषाद और परिधीय समुदायों की चेतना) तथा जगन्नाथ दुबे(लोकसंस्कृति में जलस्रोतों की भूमिका:स्थिति और भविष्य) पर परिचर्चा हुई।जिसमें चौ.लौटनराम राम निषाद, हरिश्चंद्र बिन्द, प्रो.महेंद्र पाठक,अजय कुमार,डॉ. अश्विन पारिजात,प्रो.बद्रीनारायण आदि ने प्रतिभाग किया।