निषादराज के बचपन का नाम राहुल था
1 min readमहाराज गुहराज निषाद
रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नेयोsनयः।
वीर:शक्तिमता श्रेष्ठो धर्मो धर्मविदुत्तम:।।56।।
उद्भव:क्षोभणो देव:श्रीगर्भ: परमेश्वर:।
करणम् कारणम् कर्ता विकर्ता गहनो गुह:।।54।।
(महाभारत अनुशासन पर्व-149)
महाराज गुहराज निषाद का जन्म चैत्र शुक्ल पंचमी को श्रृंगबेरपुर (प्रयाग) में हुआ था।आपके पिता महाराज तीर्थराज निषाद व माताश्री सुकेत निषाद थीं।आपके मां सुमन्त्र जी दशरथ के सचिव ,मित्र व सारथी थे।आपका विवाह राजा शुद्धोक की पुत्री शाहाजी निषाद के साथ हुआ था। आपकी शिक्षा-दीक्षा ननिहाल में गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सुतपा,प्रदर्पन, कृशाश्व, अनिकेत आदि के साथ हुई थी। निषादराज के बचपन का नाम राहुल था। एक बार राम अपने अनुजों व मित्रों के साथ जंगल मे शिकार करने गए थे।उन्होंने कहा-शेर का आखेट में ही करूँगा,दूसरा हस्तक्षेप करेगा तो राजदण्ड का भागीदार होगा।अभी ये बातें चल ही रही थीं कि जंगल से बाहर आता हुआ एक खतरनाक शेर दिखाई दिया।राम ने धनुष बाण साधा।उन्होंने प्रत्यंचा पर बाण चढ़ाकर ज्यों ही शेर पर चलाने को उद्दत हुए तभी अपने बचाव में शेर ने शीघ्रता से छलांग लगाकर राम को अपने पंजे में दबोच लिया।राम की आज्ञानुसार सभी राजकुमार ,गुरुमित्र व गुरुपुत्र हतप्रभ नजरों से देखने लगे,उन्हें काठ से मार गया।लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न, सुतपा,प्रदर्पन, कृशाश्व, अनिकेत आदि के होश उड़ गए।परन्तु,गुजराज ने धनुष बाण साधा और एक बाण शेर को लक्ष्य कर मार दिया।शेर एक ही बाण में धराशायी हो जमीन पर गिर पड़ा।
गुह निषाद द्वारा शेर को मारने पर सभी मित्र व भाई चिल्लाने लगे कि-गुह ने राम की आज्ञा का उल्लंघन किया है,इसे मृत्युदंड मिलना चाहिए।जब यह बात राजा दशरथ के दरबार मे गयी तो दशरथ ने गुह निषाद से पूछा कि तूने राम की आज्ञा का उल्लंघन कर शेर को क्यों मारा?क्यों न तुम्हे प्राणदण्ड की सजा दी जाय?
गुह निषाद ने दशरथ से प्रश्न किया-मित्र किसे कहते हैं और एक मित्र का मित्र के प्रति कर्तव्य क्या होता है?
दशरथ निरुत्तर हो गुह निषाद से कहा-वत्स गुह निषाद!तुम ही बताओ।
तब गुह निषाद ने कहा-महाराज!जो मुसीबत में काम आए, साथ दे वही मित्र होता है।और एक मित्र का कर्तव्य है कि दूसरे मित्र के सामने आई विपत्ति को अपनी विपत्ति समझकर साथ दे और उसे दूर करने का काम करे, वही मित्र होता है।जो मित्र पर आई विपदा को देखकर भाग जाए वह मित्र नहीं होता।मैं राम का मित्र हूँ।मैंने शेर को मारकर अपने प्रिय मित्र राम की जान बचाया हूँ,इसके बदले हमे प्राणदण्ड भी मिले तो कोई चिंता नहीं।हमने मित्रधर्म का पालन किया है।
महाराज! मैं शेर को नहीं मारता तो शायद शेर मेरे मित्र राम को मार डालता।मेरे मित्र की जान बच गयी,इसके बदले हमे जो भी सजा मिले, स्वीकार है।
दशरथ ने कहा-वत्स गुह निषाद!हमे क्षमा करना।वास्तव में तुम राम के सच्चे मित्र हो।चिरंजीवी भवः वत्स,तुम्हारी जय हो,वास्तव में तुमने जो किया है,वह एक सच्चे मित्र का मित्र के प्रति कर्तव्य है। शाबाश वत्स शाबाश।तुम मेरे पांचवे पुत्र के समान हो।
*तत्र राजा गुहोनाम रामस्यात्म समः सखा।*
*निषाद जात्यो बलवान स्थपतिष्चेति विश्रुत:।।*
(वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड, पंचाश:सर्ग: 33)
श्रृंगबेरपुर में गुहराज नाम के राजा राज करते थे।वे श्रीराम के प्राणों के समान प्रिय मित्र थे।उनका जन्म निषाद कुल में हुआ था।वे शारीरिक शकव सैनिक दृष्टि भी बलवान थे।वे निषाद जाति के सुविख्यात राजा थे। जब निषादराज को अपने मंत्रियों व सेवकों द्वारा ज्ञात हुआ कि पुरुष सिंह श्रीराम मेरे राज्य में पधारे हैं,तो वे अपने विद्वान मंत्रियों और बन्धु-बांधवों से घिरे हुए वहां गए।
*ततो निषादाधिपतिं दृष्ट्वा दूरदुपस्थितम्।*
*सह सौमित्रिया राम:समगच्छद गुहेन स:।।35।।*
महाराज गुहराज निषाद ने अपने बालसखा श्रीराम के आग्रह पर उन्हें गंगा पार कराने के लिए अपने सेवक नाविकों से एक सुंदर सुसज्जित नाव मंगाकर गंगा पार कराकर भारद्वाज आश्रम लिवा गए।चित्रकूट में उनके लिए पर्णकुटी का निर्माण कराकर राम के आग्रह पर अपने राजधानी वापस आये। राम के अनुज भरत जब श्रृंगबेरपुर राज्य में आये तो निषादराज ने राम का शत्रु समझकर अपनी शक्तिशाली सेना को सतर्क कर दिया।उन्होंने अपने गुप्तचरों को भेजकर पता लगाने का आदेश देते हुए कहा- जाओ पता करो कि यह मेरे मित्र राम को मारने तो नहीं आया है।अगर ऐसा होगा तो उसकी विशाल सेना धराशायी कर नदी तट को रुंड मुंड कर दूंगा। लेकिन जब उन्हें मालूम कि भरत राम को वापस लिवा आने आये है तो वे भरत से सप्रेम मिलने आये और भरत ने उन्हें दण्डवत परतम किया। जब राम लंका विजय प्राप्ति के बाद 14 वर्षोपरान्त पुष्पक विमान से भारद्वाज मुनि के आश्रम आये।उन्होंने हनुमान को अपना कुशल क्षेम बताने के श्रृंगबेरपुर भेजा।उन्होंने कहा कि निषादराज मेरा सकुशल,निरोग व चिंतारहित जानकर उनको अति प्रशन्नता होगी क्योंकि वे मेरे परमप्रिय मित्र हैं ।मेरे लिए आत्मा के समान प्रिय हैं।वे अयोध्या जाने का मार्ग व भरत का समाचार बताएंगे।
श्रीराम का आदेश प्राप्त कर हनुमान मनुष्य का रूप धारण करके तीब्र गति से अयोध्या की ओर चल दिये।अपने पिता वायु के अंतरिक्ष को, जो पक्षीराज गरुड़ का सुंदर गृह है,लांघकर गंगा व यमुना के वेगशाली संगम को पर करके श्रृंगबेर पुर म् पहुंचकर हनुमान निषादराज से मिले और बड़े हर्ष के साथ सन्दर वाणी में बोले-
आपके मित्र काकुत्स्थ कुलभूषण, सत्य पराक्रमी श्रीराम सीता व लक्ष्मण के साथ आ रहे हैं और उन्होंने आपको अपना कुशल समाचार कहलाया है।वे प्रयाग में हैं और भारद्वाज मुनि के कहने पर उन्ही के आश्रम में आज पंचमी की रात बिताकर कल उनकी आज्ञा ले ,वहां से चलेंगे।आपको यहीं श्रीराम जी मिलेंगे।हनुमान निषादराज भरत का समाचार जान व अयोध्या जाने का मार्ग पूछकर उड़ चले।
जब श्रीराम का राज्याभिषेक चल रहा था,उस समय निषादराज अयोध्या में उपस्थित थे।जब यह बात आई कि राम के बगल में कौन बैठेगा तो मुनि वशिष्ठ ने कहा कि एकमात्र निषाद राज ही राम की बगल की कुर्सी पर बैठने के पात्र हैं,क्योंकि इनकी राम से निःस्वार्थ मित्रता है।
राज्याभिषेक के बाद श्रीराम ने सभी राजाओं व अतिथियों को अंगवस्त्र, आभूषण आदि देकर विदा किये।उन्होंने निषादराज को विदा करते समय कहा-हे मित्र!आप सदा आते जाते रहिएगा।रामचरितमानस के अनुसार-
*तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता।*
*सदा रहेहु पुर आवत जाता।।*
*बचन सुनत उपजा सुख भारी।*
*परेउ चरन भरि लोचन वारी।।*
श्रीराम ने विदा करते समय निषादराज के अलावा अन्य किसी राजा व अतिथि को अयोध्या आते जाते रहने की बात नहीं की।इससे सिद्ध होता है कि श्रीराम व निषादराज में घनिष्ठ मित्रता थी।वाल्मीकि रामायण में “आत्मसम: सखा” शब्द आया है।सी.राजागोपालाचारी ने कम्ब रामायण के आधार पर “किंग ऑफ जंगल” में लिखे हैं- Nishadraj Guha was the bosom or fast or closed freind of Lord Rama.
उक्त लेख वाल्मीकि रामायण,कृतबास रामायण, राधेश्याम रामायण,कम्ब रामायण,रामचरितमानस, भक्तिमाल पर आधारित है।