जल्द लॉन्च होगा उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व का रिमोट सेंसिंग एवं ड्रोन मैपिंग पोर्टल
1 min read- शेख हसन खान, गरियाबंद
- छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा जंगल और वन्य प्राणियों की गतिविधियों पर नजर रखने बेहतर पहल
- जंगल में अवैध कटाई और अतिक्रमण की डेटा आसानी से उपलब्ध हो पायेगा
- 400 किलोमीटर लम्बे इन्द्रावती-सीतानदी-उदंती-सोनाबेडा टाइगर कॉरिडोर में वन एवं जल आवरण में आये परिवर्तन को देख सकेंगे
गरियाबंद। उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व जंगल क्षेत्र धीरे धीरे हाईटेक होता जा रहा है, जंहा एक ओर सेटेलाईट माध्यम से जंगल में आगजनी की घटना की जानकारी राजधानी में बैठे विभाग के अफसरो तक पहुची है, जंगली हाथियों के आगमन पर ऐलीफेंट ऐप भी यहा संचालित किया जा रहा है जिसके माध्यम से हाथियों के आगमन की जानकारी पहले ही मिल जाती है अब उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में इसी माह जून 2024 में लांच होगा उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व का रिमोट सेसिंग एंव ड्रोन मैपिंग पोर्टल और यह बहुत की कम लागत की खर्च में पुरे जंगल क्षेत्र का पल पल की जानकारी विभाग को मिलती रहेगी इस सबंध में उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के उपनिदेशक वरूण जैन ने बताया कि क्लाउड कंप्यूटिंग एवं एआई आधारित गूगल अर्थ इंजन बताएगा टाइगर कॉरिडोर में वन एवं जल आवरण बदलाव, ड्रोन मैपिंग पोर्टल से आमजन सूक्ष्मता से देख सकेंगे वानिकी कार्य- कुल खर्च मात्र 2.85 लाख रूपये, 400 किलोमीटर लम्बे इन्द्रावती-सीतानदी-उदंती-सोनाबेडा टाइगर कॉरिडोर में वर्ष 2010-2023 तक वन एवं जल आवरण में आये परिवर्तन को देख सकेंगे, कॉरिडोर में डिस्टर्बेस की वजह से महाराष्ट्र के अतिरिक्त बाघों (जो नयी टेरिटरी की खोज में विचरण करते है) की छत्तीसगढ़ और ओडिशा में आवाजाही लगभग बंद,टाइगर कॉरिडोर में आये नकारात्मक वन एवं जल आवरण बदलाव वाले क्षेत्रो को चिन्हांकित कर अवैध वृक्ष कटाई विरोधी अभियान एवं शिकारियों के विरुद्ध एन्टी पोचिंग ऑपरेशन चलाये जा सकेंगे।
ओडिशा सीमा के भी 10 किलोमीटर अन्दर तक वन आवरण परिवर्तन को देख सकेंगे, क्योंकि उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व की 125 किलोमीटर सीमा ओडिशा से लगी हुई है जो अतिक्रमण और अवैध कटाई के दृष्टिकोण से अति संवेदनशील है, इसके अतिरिक्त हर पांच दिवस में सेंटॅलाइट डाटा के माध्यम से वन आवरण और जल आवरण की तुलना कर सकेंगे, जल संसाधन विभाग भी कर सकता है पोर्टल का उपयोग ।
- ड्रोन मैपिंग पोर्टल – जंगल में मोर नाचा सबने देखा -ड्रोन पोर्टल के माध्यम से आमजन
वानिकी कार्यों के ड्रोन से मैपिंग करने उपरांत हाई रिसोलूशन इमेजरी आमजन को उपलब्ध रहेगी जिसे 5 सेंटीमीटर तक जूम कर एक बार में ही पूरे 50-250 हेक्टेयर क्षेत्र को देख सकेंगे (गूगल अर्थ में भी यह सुविधा 65 सेंटीमीटर रिसोलूशन तक ही है जिससे अधिक जूम करने पर तस्वीर धुंधली हो जाती है)। वृक्षारोपण क्षेत्र में पौधा संख्या, गड्डा संख्या, सालाना पौधे का विकास देख और माप सकेंगे। वृक्षारोपण के पूर्व और पश्चात की इमेजरी/लेयर को एक के ऊपर एक सुपर इम्पोस कर लेयर को ऑन-ऑफ कर आंकलन कर सकते है। उदाहरण के तौर पर 2022 में हुए वृक्षारोपण क्षेत्र की 2022, 2023 एवं 2024 की इमेजरी ड्रोन पोर्टल पर देख सकेंगे और तुलना कर सकेंगे। पोर्टल पर ही अपनी शिकायत या सुझाव साझा कर सकेंगे । इसी प्रकार भू-जल संरक्षण क्षेत्र (वाटरशेड विकास कार्य) में बनाई गयी संरचनाओं जैसे स्टॉप डैम, गेबियन, तालाब, कंटूर ट्रेंच को देख और माप सकेंगे। इसके अतिरिक्त भू-जल विकास कार्य के पूर्व और पश्चात की स्थिति ज्ञात कर सकेंगे ताकि कार्य की प्रभावशीलता का आंकलन (कुछ हद तक) हो सके।
- अन्य फायदे
1. पब्लिक रिलेशन वन विभाग द्वारा दुर्गम, नक्सली एवं अतिक्रमण मुक्त क्षेत्रो में कराये जा रहे वानिकी कार्यों को आमजन देख कर सराहना कर सकेंगे। स्कूली बच्चो के लिए जागरूकता का काम
2. कार्बन क्रेडिट अभ्यारण्य क्षेत्र के कड़े नियम-कानून एवं ग्राम सभाओ एवं वन विभाग के प्रयास से वन क्षेत्र अच्छी स्तिथि में है जिसके एवज में ग्राम सभाओ को कार्बन एमिशन अवॉयडएंस के रूप में कुछ आर्थिक लाभ देने पर विचार किया जा सकता है। अर्थ इंजन के माध्यम से बेहतर वन आवरण वाली ग्राम सभाओ को रैंकिंग दी जा सकती है।
3. पारदर्शिता – वानिकी कार्यों को आमजन देख पायेंगे और अपने सुझाव दे सकेंगे । वन आवरण बदलाव वाले वन क्षेत्रो में विभाग द्वारा कार्ययोजना बनाकर नियंत्रण किया जा सकता है।
4. जवाबदारी किस अधिकारी के कार्यकाल में वृक्षारोपण की स्थिति, वन आवरण की स्थिति कैसी थी यह पता कर जवाबदारी तय की जा सकती है।
5. ड्रोन मैपिंग पोर्टल एवं अर्थ इंजन आधारित रिमोट सेंसिंग पोर्टल संभवतः देश भर में छत्तीसगढ़ वन विभाग के द्वारा प्रथम पहल होगी।
- जानिये कैसे होती है ड्रोन से मैपिंग
1. जिस क्षेत्र की मैपिंग करनी होती है उस क्षेत्र का फ्लाइट प्लान (के. एम.एल फाइल) बनाकर ड्रोन में फीड किया जाता है
2. फ्लाइट प्लान के अनुसार ड्रोन उस क्षेत्र के ऊपर से गुजरते हुए हज़ारो जिओ-टैग्ड (जीपीएस सहित) फोटो खींचता है
3. वर्कस्टेशन एवं क्लाउड कंप्यूटिंग की मदद से इन हज़ारो फोटो को प्रोसेसिंग कर /स्टिच कर 1 बड़ा मानचित्र तैयार किया जाता है जिसे ओर्थाेमोसाइक फोटो कहते है । इस प्रोसेसिंग कार्य में 1 से दो दिन लग जाते है और इसके लिए अत्याधुनिक कंप्यूटर/वर्कस्टेशन आवश्यक होते है।
4. इस बड़े मानचित्र को ड्रोन पोर्टल पर आमजन के लिए अपलोड किया जाता है।
- जानिये कैसे काम करता है अर्थ इंजन
1. अर्थ इंजन गूगल द्वारा उपलब्ध करवाया एक ताकतवर क्लाउड कंप्यूटिंग पोर्टल है जिसपर पूरे विश्व की विगत 20 वर्षों की सॅटेलाइट इमेजरी मुफ्त में उपलब्ध है।
2. सेंटिनल सॅटेलाइट हर 5वे दिवस में और लैंडसैट सॅटेलाइट हर 16वे दिवस में एक क्षेत्र के ऊपर से गुजरती है जिससे हर 5 दिन /16 दिनकी सॅटेलाइट इमेज उपलब्ध रहती है।
3. किसी भी क्षेत्र में वन आवरण या जल आवरण बदलाव को कोडिंग के जरिये देखा जा सकता है। वन आवरण में कमी पता चलने पर उस क्षेत्र को लाल रंग के पिक्सल से दर्शाया जाता है। कोर्डिंग के लिए जीआईएस वैज्ञानिक हानसेन एट आल मॉडल का उपयोग किया गया है।