Recent Posts

December 24, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

सोनभद्र की जमीन गुंडों की जागीर नहीं, आदिवासियों की मातृभूमि है

1 min read
Sonbhadra news

जिम्मेदार अधिकारियों को कठोर सजा व भूमि सुधार कानून 2006 लागू हो-लौटनराम निषाद

लखनऊ । सोनभद्र जिले के ग्राम पंचायत मुर्तिया के उम्भा गांव में 17 जुलाई को एक दबंग माफिया,अजगर मुखिया यज्ञदत्त ने अपने 200 गुंडों के साथ 10 गोंड आदिवासियों ( जिनमें तीन महिलाएं भी हैं ) की खुले आम गोली मारकर निर्मम हत्या कर दिया । इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए हुए राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव लौटनराम निषाद ने त्वरित कार्यवाही करते हुए वहां के जिम्मेदार जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक, एसएसपी व फोरेस्टर को निलंबित करते हुए घटना में शामिल सभी 200 दबंग गुंडों समेत अधिकारियों की गिरफ्तारी और कड़ी सजा की मांग किया है ।मुख्य आरोपियों पर तत्काल रासुका व गैंगेस्टर लगाया जाना आवश्यक है।

Sonbhadra news
सोनभद्र में आदिवासियों की हत्या मध्ययुग की दो रियासतों के बीच वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा नहीं है, बल्कि आज के “मजबूत” भारत की हक़ीक़त है । उप्र के सोनभद्र जिले में दिन दहाड़े गोंड़-माँझी आदिवासियों की जमीन पर जबरन कब्जा करने के लिए 10 बेकसूर आदिवासियों का नरसंहार कर दिया गया । पहले उनकी जमीन को एक नौकरशाह ने हड़पा और फिर उसने उस जमीन को स्थानीय दबंगों व माफियाओं को बेच भी दिया । अब उन दबंगों ने कब्जा करने के लिए बारिश के मौसम में गोलियों की बरसात कर 10 आदिवासियों की हत्या की और सैकड़ों को घायल किया । विडम्बना है कि जिस घटना पर राष्ट्रीय शर्म होना चाहिए उस पर कोई मामूली बहस भी नहीं है।प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा द्वारा इस नरसंहार को मामूली घटना बताये जाने की निषाद ने कटु शब्दों में भर्त्सना करते हुए कहा कि उपमुख्यमंत्री का बयान बेहद अफसोसजनक, गैरजिम्मेदाराना व शर्मनाक है।प्रदेश की सत्ता पर जब से योगी का कब्जा हुआ है,गुंडों,अपराधियों, माफियाओं। के कब्जा हो गया है।हत्या,डकैती,राहजनी,अपहरण,बलात्कार की घटनाएं आम हो गईं है।जंगलराज से जनता दहशत में है।कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है।
निषाद ने कहा कि ये कोई “जमीन विवाद में दो पक्षों में हिंसा” जैसी चीज नहीं है, बल्कि आदिवासियों की जमीन को हड़पने के लिए किया गया उनका नरसंहार है , और इस नरसंहार की कीमत उन दबंगों और सामंतवादी भाजपा सरकार को भारी पड़ेगी, उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी । भूमि सुधार कानून 2006 जल्द से जल्द लागू किया जाए ।
आदिवासियों को मिले 90 बीघा जमीन पर जबरन कब्जा करने आये दबंग मुखिया के लगभग 200 गुंडे जमीन को जब ट्रैक्टर से जोतने लगे, तब आदिवासियों ने विरोध किया । लेकिन दबंग फायरिंग करते हुए गोलियां चलाने लगे और 10 बेकसूर, कमजोर व निहत्थे आदिवासियों की निर्मम हत्या कर दी । अफरा-तफरी के बीच जान बचाने के लिए लोग चीखते हुए भागने लगे । जो भागने में अक्षम थे,उन्हें लाठी से पीटकर भीभत्स तरीके से उनकी हत्या की गई। दिल दहलाने वाली घटना से अगल-बगल गांवों में भय और सन्नाटा पसरा है। इन दबंग हत्यारों और माफियाओं को संरक्षण और साहस कहा से मिलती है। जिनके आगे कानून और अदालत लाचार हो जाती हैं और बेखौफ होकर नरसंहार जैसे भीभत्स घटना को अंजाम देते हैं। वहां के हालात ऐसे हैं कि प्रत्यक्षदर्शियों से बात करने से उनकी जबान लड़खड़ा रही है । वे डरे और सहमे हुए हैं। देश में आदिवासियों की जान कितनी सस्ती है,उम्भा में देखा जा सकता है। 25 से ज्यादा लोग गम्भीर रूप से घायल हैं जो जिला अस्पताल (राबर्ट्सगंज)और वाराणसी ट्रामा सेंटर में भर्ती हैं।
इस क्रूर व अत्याचारी घटने से आहत निषाद कहते हैं कि जल,जंगल,जमीन से बेदखल आदिवासी किस आधार पर इसे अपना देश कहें ? बाजार और सत्ता के गठजोड़ से आदिवासी अधिक संख्या में पलायन कर चुके चुके हैं।जो जंगलों में बचे हैं,उनकी स्थिति बिना जड़ के पेड़ जैसी हो गयी है।आदिवासी सरकार और कॉरपोरेट की दोहरी हिंसा की मार झेल रहा हैं। नदियों, जंगलों और पहाड़ों से उनकी पहचान को समाप्त करने के साथ उनकी हत्या आम बात हो गयी है , कभी नक्सली के नाम पर तो कभी फर्जी एनकाउंटर के नाम पर हत्याएं जानबूझकर करवाई जा रही हैं। आदिवासियों की जान की कीमत कितनी सस्ती है, इसका असर मीडिया और आंदोलनों की सक्रियता में भी दिखती है।
जिन आदिवासियों की हत्या हुई है ,उनमें तीन महिलाओं के साथ कुछ शादीशुदा नौजवान हैं, जिनके बच्चे भी हैं ,जो डरे हुये हैं ,उनके भविष्य का क्या होगा?योगी सरकार की तरफ से पांच लाख की औपचारिकता पूरी हो गयी है।आदिवासियों के नरसंहार से क्या सोनभद्र के जमीनी विवाद को जमींदार माफियाओं के कब्जे से छुटकारा के लिए सरकार कोई ठोस कार्रवाई करेगी ? प्रसाशनिक अधिकरियों और सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए ,हम जानते हैं कि वो तो नहीं ही लेंगे, फिर भी इस लोकतंत्र में हमारा विश्वास है और हम मांग करते हैं कि जिलाधिकारी समेत जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों पर ठोस त्वरित कार्रवाई हो,हत्यारा मुखिया यज्ञदत्त समेत उनके गुर्गों पर रासुका लगाया जाए,प्रत्येक आदिवासी मृतक परिवारों को सरकारी नौकरी दी जाय,आदिवासीयों के जमीनों से जमींदार माफियाओं का जबरन कब्जा हटाया जाय।
निषाद ने विरोधी पार्टियों व संगठनों को मूर्तियां उम्भा गांव जाने से रोके जाने व धारा-144 लगाने को अलोकतांत्रिक कदम बताते हुए कहा की योगी व भाजपा सरकार तानाशाही अपना रही है।जो बेहद शर्मनाक व निंदनीय कदम है।भाजपा कितनी निर्मम है कि उम्भा में दस गोंड़ माँझी आदिवासियों का नरसंहार हो गया और इतनी बड़ी घटना को उपमुख्यमंत्री मामूली घटना बता रहा है।उत्तर प्रदेश में सामंतवाद व जंगलराज कायम हो गया है।योगी सरकार जिस तरह पिछ्डों-दलितों-आदिवासियों के साथ जिस तरह जातिवाद कर जुल्म व अत्याचार करा रही है,उससे एक बार फिर नक्सलवाद पैदा होने का भय है।नक्सलवाद के लिए योगी जैसी संवेदनहीन हठधर्मी सरकारें ही दोषी होती हैं।
*चौ.लौटनराम निषाद*

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *