विशेष खबर… उदंती मैनपुर का माहुल दोना-पत्तल की मांग ओडिसा, महाराष्ट्र, बिहार और आंध्र प्रदेश समेत देश के कई राज्यों तक
- सैकड़ों लड़कियों और महिलाओं को कोरोना काल में मिला स्थाई रोजगार
- अब रोजगार के लिए नहीं भटकना पड़ता महिलाओं को
- न्यूज रिपोर्टर, शेख हसन खान
मैनपुर – एक बार फिर देश सहित प्रदेश में कोरोना की तीसरी लहर ने दस्तक दे दिया है। पिछले कोरोना का संक्रमण काल लगभग प्रत्येक परिवार के लिए मुश्किल का दौर रहा है। ऐसे विकट परिस्थितियों में गरियाबंद वन मण्डल द्वारा तहसील मुख्यालय मैनपुर के 20 साल से बंद पड़े विशेष प्रकार के जंगल से मिलने वाले माहुल पत्ता से निर्माण किए जाने वाले दोना पत्तल केंद्र को फरवरी 2020 में प्रारंभ किया गया। यहां दोना पत्तल केंद्र जहां एक ओर सैकड़ो क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने में तथा उन्हें स्थाई रूप से रोजगार देने में सफल साबित हुआ, वहीं दूरी ओर जंगल से मिलने वाले माहुल पत्ता से निर्मित इस दोना पत्ता की मांग छत्तीसगढ़ के ओडिसा, महाराष्ट्र, बिहार और आंध्र प्रदेश सहित कई बड़े राज्यों में है।
आज हमारे हरिभूमि की टीम ने दोना पत्तल केंद्र की वस्तु स्थिति की जानकारी लेने पहुंचे तो वहां काम करने वाली गौरी बाई पटेल ने बताया कि पहले उन्हें रोजगार और मजदूरी के लिए भटकना पड़ता था। खासकर कोरोना काल में वनांचल क्षेत्र होने के कारण यहां बड़े उद्योग और रोजगार के साधन नही होने से उन्हें मजदूरी के लिए भटकना पड़ता था। लेकिन इस दोना पत्तल केंद्र से प्रतिदिन 300 रुपये से ज्यादा की मजदूरी उन्हें प्राप्त हो रही है और इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया। अब उन्हें मजदूरी के लिए नहीं भटकना पड़ता और उन्हें एक स्थान पर ही माह में 8 से 9 हजार रुपये मिल रहे हैं। इसी तरह की बात विशाखा पटेल ने भी बताया कि दोना पत्तल का यह केंद्र उनके रोजगार का मुख्य साधन बन गया है। दोना पत्तल केंद्र में कार्य करने वाली कविता यादव, रोहणी कश्यप, रोशनी कश्यप, अख्तरी बानो, ममता कश्यप, पार्वती , रमा, रितेश, गायत्री पटेल, रेणु निषाद, डोमेश्वरी निषाद, नंदनी एवं ग्राम भाटिगढ़, हल्दीभाटा, नहानबिरि, भटगांव, सालेभाट से दोना पत्तल में कार्य करने वाली लगभग 130 महिलाओं ने बताया कि उन्हें दोना पत्तल केंद्र से स्थाई रूप से रोजगार उपलब्ध हो रही है। इस दोना पत्तल केंद्र से 350 से 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है और अब वन विभाग द्वारा दोना पत्तल केंद्र में अधिक मोल्डिंग मशीनों को स्थापित करने से आसानी से एक महिला प्रति दिन हजारों की संख्या में दोना पत्तल का निर्माण कर रही है।
बीस हजार मास्क का भी सिलाई किया
मैनपुर दोना पत्तल केंद्र में कोरोना संक्रमण काल के दौरान इन महिलाओं ने लगभग 20 हजार मास्क का निर्माण कर अतिरिक्त आय अर्जित किया। इससे इन्होंने ने एक मिसाल कायम किया। साथ ही वर्तमान में 12 से 13 इंच माहुल पत्तल से दोना और पत्तल का निर्माण किया जा रहा है। इसकी बिक्री स्थानीय स्तर पर है लेकिन रायपुर, दुर्ग के माध्यम से या देश के विभिन्न राज्यों में पहुंच रहा है और विशेष प्रकार के माहुल पत्तल से बनने वाले इस दोना और पत्तल की मांग दूसरे राज्यों में बढ़ गई है।
बीस साल बाद दोना पत्तल केंद्र का गरियाबंद डीएफओ मयंक अग्रवाल के विशेष पहल से प्रारंभ किया गया। इससे पहले लगभग 2 दशक पूर्व मैनपुर दोना पत्तल केंद्र संचालित हो रहा था लेकिन एक दर्जन महिलाओ को ही काम मिल पाता था लेकिन गरियाबंद में जब से नए वन मंडल अधिकारी मयंक अग्रवाल ने जब से पदभार संभाला तब से उन्होंने क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार देने दोना पत्तल केंद्र को विस्तार दिया और 20 साल बाद इसे पुनः प्रांरभ किया और गरियाबंद कलेक्टर निलेश क्षीरसागर की उपस्थिति में डीएफओ के प्रयास से 50 से अधिक ग्रामीण महिलाओ को मुफ्त में दोना पत्तल सिलाई मशीन का वितरण किया गया है जो अपने घरेलू कार्यों के साथ घर बैठे अब दोना पत्तल का निर्माण कर रहे हैं। दोना पत्तल केंद्र के प्रभारी रोहणी धु्रव ने हरिभूमि को बताया कि अभी वनधन के तहत बड़े स्तर पर इस कार्य को करने के लिए भवन निर्माण कार्य जारी है। आने वाले दिनों में हजारों महिलाओं को दोना पत्तल का कार्य मिलने की बात कही।
भविष्य में महिलाओं को और बड़ी संख्या में कार्य उपलब्ध कराने के लिए दोना पत्तल केंद्र में विस्तार किया जाएगा। हमारा उद्देश्य वन एवं वन्यजीवों के सुरक्षा के साथ क्षेत्र के लोगों को अधिक आमदनी वाले रोजगार उपलब्ध कराना भी है।
मयंक अग्रवाल, डीएफओ, गरियाबंद