झमाझम बारिश के बीच गरियाबंद में हजारों आदिवासियों ने जंगी रैली निकाल जमकर किया नारेबाजी
- शेख हसन खान, गरियाबंद
- वन अधिकार नियमो में बदलाव के खिलाफ झमाझम बारिश के बीच हजारों आदिवासियों ने गरियाबंद में रैली निकाल मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन
- आदिवासी समाज ने वन अधिकार नियमों में बदलाव का किया कड़ा विरोध़
गरियाबंद । जिला मुख्यालय गरियाबंद में आज हजारो की संख्या में आदिवासी समाज के लोग वन अधिकार नियमो में बदलाव के खिलाफ झमाझम बारिश के बीच जंगी रैली निकाल नारेबाजी करते हुए जमकर प्रदर्शन किया बारिश के बावजूद रैली में हजारो की संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए और वन अधिकार नियमों में बदलाव का कड़ा विरोध किया। आदिवासी विकास परिषद, ग्राम सभा फेडरेशन, एकता परिषद के बैनर तले जिला पंचायत गरियाबंद के सदस्य श्रीमति लोकेश्वरी नेताम एवं संजय नेताम के नेतृत्व में रैली निकाली। मजरकट्टा स्थित परिषद भवन से कलेक्टोरेट तक 04 किमी आदिवासियों ने बरसते पानी में पैदल यात्रा किया। कलेक्टोरेट पहुंच मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप वन अधिकार से जुड़े नियमों में हुए परिवर्तन को हटाते हुए यथावत रखने की मांग किया है।

- आदिवासियों पर शोषण और अत्याचार बढ़ेगा – लोकेश्वरी नेताम
जिला पंचायत सदस्य एवं आदिवासी महिला जिला अध्यक्ष श्रीमति लोकेश्वरी नेताम ने कहा कि नए प्रावधान कर केवल वन के हित को ध्यान में रखा गया। वन क्षेत्र में रहने वाले मूलनिवासी की चिंता वन विभाग के अफसर नहीं कर सकते। वन अधिकार कानून में आदिवासी और वनवासियों के जिस हित का ध्यान रखा गया था, उसे अब छेड़छाड़ किया गया है। हम सवाल पूछते हैं कि कानून में छेड़छाड़ का अधिकार किसने दिया? अधिकारियों के लिए न्यायालय के अलावा जंगी लड़ाई लड़ने हम तैयार हैं। सप्ताह भर के भीतर हमारी मांगे नहीं मानी गई, तो सड़क की लड़ाई लड़ेंगे, जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी। श्रीमति नेताम ने कहा समुदायिक वन संसाधन की नोडल आदिम जाति कल्याण विभाग कमिश्नर के पास होना चाहिए यदि नोडल वन विभाग को बनाया जाता है तो यह ग्रामसभा अधिकार खुला उलंघ्घन है। काॅर्पोरेट के लिए बेरोकटोक खनिज एवं वन संपदा की लूट होगी आदिवासियो पर शोषण अत्याचार बढ़ेगा, बेदखली विस्थापन होगी जिससे आदिवासियो का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने कहा -“आज का यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध नहीं बल्कि हमारी अस्मिता की लड़ाई है। जो अधिकार हमें संविधान और कानून से मिले हैं, उन्हें दबाने की कोशिश की जा रही है। वन विभाग द्वारा ग्रामसभाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप सीधे हमारे स्वशासन और जीवन-शैली पर हमला है। हम इसके खिलाफ हर लोकतांत्रिक मंच पर लड़ेंगे।
- इसलिए हो रहा विरोध
15 मई 2025 को वन मंत्रालय ने एक आदेश पारित किया है, जिसमें वन अधिकार मान्यता देने अथवा सामुदायिक वन संसाधन के उपयोग से जुड़े फैसले लेने का अधिकार वन विभाग को होगा। जबकि इससे पहले 2006 में पारित वन अधिकार कानून के मुताबिक, इसकी सुनवाई का अधिकार ग्राम सभा में आदिवासी विकास विभाग की देखरेख में होने का प्रावधान किया गया था।
