उदंती के जंगल में अब नहीं दिखते टाईगर, कभी इनके खौफ के गूंज राजधानी तक होती थी
1 min read- शेख हसन खान, गरियाबंद
- तीन दशक पहले मैनपुर के जंगल में मादा बाघिन व उसके शावक ने मचा रखा था आंतक, 17 ग्रामीणों का किया था शिकार
- बाघ को पकड़ने में असम प्रदेश के माझबाट निवासी बाघ प्रेमी जियाउल रहमान ने पाई थी सफलता
गरियाबंद। विश्व में अंत्तराष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को हर साल मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य बाघो के सरंक्षण व संवर्धन हेतु लोगों को जन-जागरूकता करना होता है। गरियाबद जिले के मैनपुर क्षेत्र के घने जंगलो में दो दशक पूर्व तक आसानी से बाघ दिखाई देता था लेकिन अब क्षेत्र के जंगल में बाघ नजर ही नहीं आता है। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार अब क्षेत्र के जंगल में बाघ दिखाई ही नही देता लेकिन दो दशक पूर्व आसानी से मैनपुर गरियाबंद मार्ग में बाघ आने जाने वाले लोगो को दिख जाता था जिसकी चर्चाएं उस समय आम थी।
- 30 साल पहले मैनपुर क्षेत्र के दर्जनों ग्रामों में नरभक्षी बाघिन व उसके शावक का था आंतक
30 साल पहले मैनपुर क्षेत्र के दर्जन भर से ज्यादा ग्रामों के लोगो को भी नरभक्षी बाघिन और उसके शावक के दहशत के बीच जीवन यापन करना पड रहा था। तहसील मुख्यालय मैनपुर नजदीक भाठीगढ पहाडी क्षेत्र में सन् 1990 में नरभक्षी बाघिन मायावती और उसके शावक रूपक (राजा) के आंतक से ग्रामीण थर्रा उठे थे। इस नरभक्षी बाघिन और उसके शावक ने उस समय 17 ग्रामीणों को अपना शिकार बनाया था। उन दिनों को याद करते हुए क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक भाठीगढ़ निवासी हेमसिंह नेगी, नाथूराम ध्रुर्वा, नकछेडाराम , आशाराम यादव न बुजूर्ग ग्रामीणों ने बताया कि आज से 30 साल पहले भाठीगढ, गोबरा, हरदीभाठा, पथर्री, ठेमली, काटीपारा क्षेत्र के लगभग एक दर्जन ग्रामों में लोग रात तो दुर दिन को भी घरों से निकलने के लोग डरते थे। ग्रामीणों ने बताया कि इस नरभक्षी बाघिन और उसके शावक ने 17 ग्रामीणो को अपना शिकार बनाया था जो आज भी वन विभाग के सरकारी रिकार्ड में दर्ज है।
- बाघ की गूंज राजधानी भोपाल तक पहुंची तो असम से बाघ को पकड़ाने जियाउल रहमान पहुंचे
मैनपुर क्षेत्र में 17 ग्रामीणों को शिकार करने के बाद बाघिन और उसके शावक के आतंक की गुंज राजधानी भोपाल तक गुंजी तो उस समय आविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन सरकार ने इस क्षेत्र के लोगों को इस नरभक्षी बाघिन और उसके शावक के आंतक से मुक्ति दिलाने के लिए क्षेत्र में कई प्रयास किए थे। असम प्रदेश के जियाउल रहमान ने इस नरभक्षी बाघिन मायावती और उसके शावक रूपक को पिंजरे में कैद करने में सफलता प्राप्त किया था। इन दोनों बाघिन और उसके शावक को मैत्रीगार्डन में रखा गया था तब यह क्षेत्र के लोगो को बाघ के आंतक से मुक्ति मिली थी।
भाठीगढ़ के पहाड़ी क्षेत्र में ही दो दशक पहले काला शेर (ब्लैक पैंथर) पिंजरे में कैद हो गया था
जब दोनों नर और मादा बाघ को पकड़ा गया उसके बाद महज पांच साल के भीतर जो पिंजरा जंगल में छोड़ दिया गया था उसमें अचानक ब्लैक पैंथर कैद हो गया जिसे देखने भारी भींड उमडी थी और यहा ब्लैक पैंथर को वन विभाग द्वारा उस समय नही बचाया जा सकता अपने सिर को पिंजड़े में ठोक ठोककर उसकी मृत्यू हो गई थी ।