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October 18, 2024

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देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हुआ करते थे निषाद

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Used to be spinal cord

निषाद होते आ रहे राजनीतिक साजिश के शिकार, समझे जा रहे सिर्फ वोटबैंक
शिमला। नदी और निषाद विषय पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान(आईआईएएस) राष्ट्रपति निवास शिमला में आयोजित 3 दिवसीय परिचर्चा के तीसरे दिन भारतीय समाज में नदियों का महत्व व निषाद समुदाय की स्थिति पर गहन परिचर्चा सम्पन्न हुई, जिसमे देश के कई विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, फेलो व शोधार्थी परिचर्चा में भाग लिए। प्रो.हितेंद्र पटेल व प्रो. शेखर पाठक की अध्यक्षता, डॉ. रमाशंकर सिंह के संयोजन व डॉ. अजय कुमार की देखरेख में हुई दो चरणीय परिचर्चा में नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे व निषाद समुदाय की जातियों की बिगड़ती स्थिति पर गम्भीर चर्चा हुई।

Used to be spinal cord

विशेष रूप से आमंत्रित राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव सामाजिक चिंतक चौ.लौटनराम निषाद परिचर्चा में प्रतिभाग करते हुए निषाद समुदाय के ऐतिहासिक व पौराणिक तथ्यों पर तार्थिक बात रखते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति निषाद संस्कृति की सन्तति है और भारतीय संस्कृति में निषाद संस्कृति, द्रविड़ संस्कृति, किरात संस्कृति व आर्य संस्कृति का सम्मिलित रूप है।भारतीयता का प्रपितामह निषाद ही हैं।अंतरराष्ट्रीय व्यापार व आपसी सम्बन्धों की स्थापना में निषादों की अहम भूमिका रही है।निषाद देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी तो थे ही,आवागमन में इन्ही का मुख्य योगदान रहा है।पर,नवउदारवाद व नवउपनिवेशवाद के साथ आधुनिकीकरण के कारण निषाद समुदाय अपने पेशे से वंचित हो गया और सरकारों द्वारा इनके पुनर्वासन की ईमानदारी से कार्य नहीं किया गया।प्रदूषण व अतिक्रमण के कारण नदियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।जिन नदी व जलस्रोतों पर निषादों का एकाधिकार था,उसे सरकारों ने ठेका प्रणाली/नीलामी प्रथा के अंतर्गत लाकर निषाद समुदाय के वंशागत अधिकारों व परम्परागत पुश्तैनी पेशों को छीनकर पूंजीपतियों व माफियाओं के हाथों सौप दिया है और बंधुआ मजदूर बन गए हैं।
निषाद ने निषाद समाज के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि यदि भारतीय इतिहास से निषाद समुदाय के इतिहास को निकाल दिया जाय तो वह विधवा सरीखा हो जाएगा।देश की आज़ादी में निषाद जातियों का सबसे बड़ा योगदान रहा है।निषादों की देशभक्ति से चिढ़कर ब्रिटिश सरकार ने 1971 में क्रिमिनल ट्राइब्स घोषित कर दिया।प्रीवी काउंसिल के सुझाव पर निषाद जातियों की रोज़ी रोटी से सम्बंधित पेशों को छिनने के लिए 1878 में चार काले कानून-नॉर्दर्न इंडिया फेरीज एक्ट,नॉर्दर्न इंडिया माइनिंग एक्ट,नॉर्दर्न इंडिया फॉरेस्ट एक्ट व नॉर्दर्न इंडिया फिशरीज एक्ट बनाया।उत्तर भारत व मध्य भारत में नदियों व जलस्रोतों का प्रचुर भंडार है।यदि इनका सही ढंग से रखरखाव व संरक्षण किया जाय तो मछुआरों को रोजगार के साथ मत्स्य,सिंगाड़ा व तेलमखाना के उत्पादन में अव्वल बनाया जा तो सकता है,जल व पर्यावरणीय पारिस्थितिकीय के संकट को दूर किया जा सकता है।नीली क्रांति के कागजों पर सिमट कर सिर्फ लूट का जरिया बन गया है।गंगा की सफाई व नदियों के संरक्षण के नाम पर सिर्फ लूट मची है।बिना निषादों के नदी व गंगा की सफाई,प्रवाहमयता को नया रूप नहीं दिया जा सकता।
जी.वी.पन्त समाज विज्ञान संस्थान के समाजविज्ञानी प्रो.बद्रीनारायण तिवारी ने निषाद समुदाय की दिनोदिन बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि निषाद अपने परम्परागत पेशे-मत्स्याखेट,शिकारमाही,बालू मौरंग खनन,नदी कछार में खेती के अधिकारों से लगभग वंचित हो गए हैं।जिनके अधिकारों पर सामन्तियों व माफियाओं के एकाधिकार हो गया है।निषाद राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ वोटबैंक के रूप में दिख रहे हैं।उत्तर प्रदेश, बिहार में इनकी बहुत बड़ी आबादी होने के बाद भी यह वर्ग कार्यपालिका, विधायिका व लोकतंत्र के अन्य क्षेत्रों में अभी सही प्रतिनिधित्व नहीं पा सका है।पिछले दो तीन दशकों में इनके अंदर चेतना का प्रस्फुटन तो हुआ है,पर वह या तो दिशाहीन है या राजनीतिक साजिश का शिकार है।पिछले दो दशकों से निषाद विमर्श पर चर्चा तो शुरू हुई है,पर इनके उत्थान व प्रतिनिधित्व के लिए कारगर कदम न उठाकर सिर्फ मुखौटा राजनीति का हिस्सा बना दिया जाता है।जिनमे पैदा नेतृत्व कैप्टन जयनारायण निषाद व मदन सिंह के ही राह पर जाकर समाज को जहां का तहाँ छोड़ दे रहा है।निषाद समाज को सही मुकाम देने के लिए इनके नेतृत्व को डॉ. अम्बेडकर व मान्यवर कांसीराम जी से हटकर सकारात्मक दिशा में भी कम करने की जरूरत है।

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प्रो.बद्रीनारायण ने कहा कि यह सुखद है कि पिछले कुछ दशकों में इनमें सामाजिक राजनीतिक चेतना आयी है। मल्लाह, केवट, बिन्द, धीवर, कहार,चाई, सोरहिया, बनपर, गोड़िया, कामत, गोढ़ी, तियर, रैकवार आदि का जो भेदभाव था, वह कमतर हुआ है, जो सुखद है। पर, सामाजिक परिवर्तन के लिए सही दिशा में ले जाने के लिए दुलरा दयाल,बाबा अमर सिंह के रूप नए नायक की आवश्यकता है।प्रधानमंत्री द्वारा प्रयागराज आगमन पर कई बार अपने भाषण में निषादराज की धरती को नमन करने व बनारस में अपने को गंगापुत्र व माँ गंगा ने बुलाया है जैसी बात करना राजनीति का ही हिस्सा है।
परिचर्चा में प्रो. शेखर पाठक ने कहा कि निषादों पर अभी तक सही ध्यान नहीं दिया गया,जिसके कारण ये पलायन की स्थिति में पहुंच गए हैं।इनमें कुछ नेतृत्व तो उभरे पर राजनीतिक बिचौलियों के शिकार हो गए।जिनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए ईमानदारी से सही कदम उठाने की जरूरत है।डॉ. आशीष त्रिपाठी, प्रो.सुजाता पटेल,प्रो.अवधेन्द्र शरण, डॉ. सुचन्द्रा घोष,डॉ. बलराम शुक्ला,प्रो.हितेंद्र पटेल,प्रो.आर.सी. प्रधान व प्रो.अश्विन पारिजात ने प्रस्ताव रखा कि लौटनराम निषाद द्वारा लिखित निषाद समाज के वृहद इतिहास को छपवाने की जिम्मेदारी संस्थान व अकादमी उठाये अन्यथा हम सब मिलकर सहयोग कर प्रकाशित कराएं।
अजय कुमार ने सेमिनार में सहभागिता के लिए प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रमाशंकर सिंह ने आभार प्रकाश किया।परिचर्चा में प्रो.एम.पी. सिंह, डॉ. राकेश तिवारी,मिस अर्चना सिंह, मिस नेहा राय, मिस रागिनी कपूर,डॉ. खुशबू, हरिश्चन्द्र बिन्द, डॉ. रमेशचंद्र प्रधान, ज्योति सिन्हा, प्रो. महेंद्र पाठक, कु.सीमा यादव, प्रो.कपिल कपूर, प्रो.विजया रामास्वामी, प्रो.सुचन्द्रा घोष,धीरेंद्र सिंह,जगन्नाथ दुबे,गोविंद निषाद, मिस श्रुति मीमांसा,प्रो.एम.वी.नारायणन, डॉ. देबजानी हलदर,अंकित पाठक,पुष्यमित्र, डॉ. रुचिश्री, मिस गुंजन राजवंशी, डॉ. अभिषेक कुमार यादव,सन्तोष कुमार निषाद हर्ष, डॉ. खुश्बू सिंह, कमलेश कुमारी भटोइया, डॉ. सतेंद्र कुमार, डॉ. अर्चना सिंह आदि नदी व नदी तटवासी समुदाय/निषाद समाज के इतिहास, संस्कृति, महत्व पर चर्चा व शोधवृत्त प्रस्तुत किया।

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