प्रतियोगी परीक्षाओं में उच्च मेंरिटधारी आरक्षित वर्ग का समायोजन अनारक्षित में हो
1 min readजब केन्द्र सरकार 50 प्रतिशत की आरक्षण की सीमा पार कर गई तो ओबीसी को समानुपाती आरक्षण क्यों नहीं ?
लखनऊ। माननीय उच्चतम न्यायालय ने पूर्व में व्यवस्था दिया था कि आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, जिसको आधार मानते हुए जनता दल की सरकार ने 13 अगस्त, 1990 को मण्डल कमीशन की सिफारिश के अनुसार ओबीसी की 52 प्रतिशत आबादी को 27 प्रतिशत आरक्षण कोटा देने की अधिसूचना जारी किया था। 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को सवर्ण संगठनों ने न्यायालय में चुनौती दिया। मा. उच्चतम न्यायालय ने 16 नवम्बर, 1992 को इन्दिरा साहनी व अन्य बनाम भारत सरकार के अपने निर्णय में ओबीसी आरक्षण को वैधता प्रदान किया।
राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटन राम निषाद ने केन्द्र सरकार से ओबीसी को जनसंख्यानुपात में आरक्षण कोटा देने की मांग करते हुए कहा कि जब 72 घण्टे के अन्दर सविधान से परे जाते हुए केन्द्र सरकार ने सामान्य वर्ग की जातियों को ई.डब्ल्यू.एस. के नाम से 10 प्रतिशत आरक्षण कोटा देकर मा. उच्चतम न्यायालय के निर्देश को संविधान संशोधन के माध्यम से निष्प्रभावी कर दिया, तो ओबीसी को समानुपाती आरक्षण देने में क्या हर्ज है? उन्होने केन्द्र सरकार से ओबीसी की जातियों को कार्यपालिका के साथ-साथ विधायिका, पदोन्नति, न्यायपालिका, केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों व सरकारी सहायता प्राप्त निजी क्षेत्र के उपक्रमों में एससी, एसटी की भाँति समानुपाती आरक्षण देने की मांग किया है।जब सवर्ण जातियों के आरक्षण के लिए संविधान संशोधन हो गया तो ओबीसी के लिए संविधान संशोधन क्यों नहीं?ओबीसी को क्रीमीलेयर के प्रतिबन्ध से भी एससी/एसटी की भांति मुक्त करने के साथ त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू की जाय।
निषाद ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-15 के अनुसार आरक्षण मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद-16 (4) व 16(4-ए) के अनुसार आरक्षण प्रतिनिधित्व सुनिश्चितिकरण का आधार है। 1994 के ओ.एम.आर. के अनुसार व्यवस्था दी गई थी कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की कट आॅफ मेरिट के बराबर या उच्च मेरिट पाता है तो उसका समायोजन निर्धारित आरक्षण कोटा में न कर अनारक्षित में किया जायेगा। अनरिजर्व/ओपेन कटेगरी या अनारक्षित वर्ग का मतलब जनरल कास्ट या समान्य वर्ग नहीं होता है पर केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद अपने को पिछड़ी जाति का बताने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा 2017 से ओबीसी, एससी, एसटी को उच्च कट आॅफ मेरिट पाने पर भी कोटे के अन्दर ही सीमित कर दिया जा रहा है, जो नैसर्गिक न्याय के प्रतिकूल है।
निषाद का कहना है कि पहले आरक्षण को सवर्ण समाज खैरात, वैशाखी व भीख बताता था,अब तो सवर्ण जाति को भी 10 प्रतिशत आरक्षण मिल गया है। आरोप लगाया जाता था कि आरक्षण से प्रतिभा का हनन होता है और इससे अयोग्य का चयन होता है। उन्होंने कहा कि अयोग्य का चयन आरक्षण से नहीं, डोनेशन से अयोग्य का चयन होता है। उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या- 47 के तहत असिस्टेन्ट प्रोफेसर समाज शास्त्र, सैन्य विज्ञान, गृह विज्ञान, वाणिज्य विषय, पादप रोग विज्ञान, कीट विज्ञान, कृषि वनस्पति का परिणाम जारी किया गया है। समाज शास्त्र में ओबीसी का कट आफ माक्र्स-130.34, एससी/एसटी का 112.36 व सामान्य वर्ग का 103.37 है। कृषि वनस्पति में सामान्य वर्ग का कट आॅफ अंक-105.05, एससी/एसटी-107.07, ओबीसी-125.25, पादप रोग में सामान्य वर्ग की उच्चता मेरिट-133.33, ओबीसी का 141.41 तथा कीट विज्ञान में सामान्य वर्ग का कट आफ माक्र्स-120.41 व ओबीसी का 148.98 है। अन्य विषयों की श्रेष्ठता सूची में ओबीसी, एससी/एसटी का कट आफ अंक सामान्य वर्ग से अधिक है। उन्होने कहा कि यह आरक्षण व्यवस्था के प्रतिकूल है। इस श्रेष्ठता सूची से पता चल जाना चाहिए की प्रतिभा/मेधा जिस जातीय समूह व वर्ग के पास है।