वनभैंसा की सँख्या बढ़ाने के लिए विचित्र प्रयोग
1 min readमहासमुँद , शिखादास :
एक कहावत हैकि गई भैस पानी मे पर पर हमारे छग areaके भैँसा लोगो को तो इस भीषण गर्मी में डबरी तालाब भी नजर नही आ रहा नीम की छाँव में दिख जाते हैं कभी कभार । पर असम के 2 वन भैँसो की किस्मत अच्छी थी कि उन पर बारनयापारा में TENT जनरेटर तम्बू कूलर की व्यवस्था की गयी ।
देश के साथ प्रदेश में भी कोरोना महामारी के कारण लगभग आर्थिक आपातकाल जैसे हालात है।परंतु इन सब परिस्थियों को दरकिनार कर प्रदेश का वन विभाग जंगल के अंदर टेंट एवम कूलर लगा कर वनभैंसा की संख्या बढ़ाने का विचित्र प्रयोग कर रहा है।दो वन्य प्राणियों के लिए की गई कूलर एवम टेंट सहित अन्य व्यवस्था में प्रतिदिन लगभग एक लाख रुपयो से भी अधिक का खर्च कर रहा है।जानकरो के अनुसार टेंट एवम कूलर में वन्य प्राणियों का लालन पालन करने का शायद यह विश्व मे पहला मामला हो सकता है।
एक ओर पूरा देश कोरोना महामारी के संकट से बेहाल है।इससे छत्तीसगढ़ भी अछूता नही है।प्रदेश से अन्य प्रांतों में रोजगार करने गए मजदूर वापस नही आ पा रहे है।मजदूरो की वापसी के बाद उन्हें कोरोनटाइन करने के लिए आर्थिक संकट दिखाई दे रहा है।जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण स्कूलों में कोरेंटइन किये गए मजदूरो को खिलाने के लिए भी उन्ही के परिजनों को कहा जा रहा है।राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता मुख्यमंत्री एवम प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए धन जुटाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे है ऐसी विषम परिस्थिति में आखिर ऐसी कौन सी एमरजेंसी थी कि वन भैंसों को प्रदेश के बार अभ्यारण्य लाने के लिए 2 माह और प्रतीक्षा भी नही की जा सकी????
।वर्तमान में विषम परिस्थितियों के चलते जहां प्रदेश भर के अफसर इसी काम मे लगे है और इन पर पानी की तरह धन भी बहाया जा रहा है।जो कि आज की परिस्थिति में कतई उचित नही कहा जा सकता।
पत्रकारों को रोकना,,मतलब कुछ तो गड़बड़ है।
वनभैंसा प्रजनन केंद्र खैरछापर तक पत्रकारों को किसी भी हालात में जाने नही दिया जा रहा है।जब 10 हेक्टयर मतलब करीब 25 एकड़ के बाड़े में मात्र दो ही वनभैंसो को पाला जा रहा है।तब बाड़े के बाहर तक भी जाने के लिए पत्रकारों को क्यों रोका जा रहा है।ऐसी रोक से वन विभाग का ये पूरा प्रोजेक्ट संदिग्ध हो गया है।आखिर उक्त बाड़े में ऐसा क्या हो रहा है जिससे पत्रकारों को दूर रखा जा रहा है।क्षेत्र के कुछ वन कर्मियों ने दबी जुबान से ये भी कहा कि इसके पहले काला हिरण एवम मगरमच्छ पार्क तक पत्रकार पहुच गए थे और वहाँ की पोल जनता के सामने रखी थी।शायद इस मामले में भी अफसर यही चाहते है कि पत्रकारों को दूर रखें तो विभाग की कोई कमी और गड़बड़ी सामने ही नही आ पाएगी।
पूर्व में काला हिरन,हाथी कॉरिडोर,मगरमच्छ पालन हो चुके असफल।
ज्ञात हो कि वनभैंसा लाने के पूर्व काला हिरन बार के जंगलों में छोड़ने लाये गए थे।वे अब चार सालों में भी जंगल मे नही छोड़े जा सके है।इनमे से कुछ हिरणों के मरने की खबरे भी प्रकाशित होती रही है।इसके बाद बार अभ्यारण्य के भीतर ही मगरमच्छ पार्क का निर्माण भी करोड़ो की लागत से करवाया गया था।परंतु यहां लाये गए दोनों मगरमच्छ जल्दी ही देखरेख के अभाव में मारे गए थे।इसके बाद महासमुंद एवम बलौदाबाजार जिले में हाथियों का कॉरिडोर बना कर हाथी समस्या का समाधान करने की बजाय उसे सिरपुर से बार एवम बार से सिरपुर की ओर खदेड़ने में ही वन विभाग ने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी थी।और शासन को इनमे करोड़ो की चपत भी लगाई थी।
क्या कहते है वन अफसर
छत्तीसगढ़ वन्य प्राणी बोर्ड के संचालक अरुण पांडे ने इसके पूर्व वनभैंसो के लाये जाने के सम्बंध में प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद स्वयम एक विज्ञप्ति के माध्यम से वनभैंसा असम से बार तक कैसे लाया गया।कब और कैसे स्वीकृति मिली इस बात की विस्तार से सचित्र जानकारी दी है।परंतु उन्होंने अपनी पूरी विज्ञप्ति में कही भी यह नही बताया कि वनभैंसा अब असम से कही दुगुनी गर्मी में यहां लाया गया है।इन्हें गर्मी से निजात दिलाने के लिए पूर्व में हाथियों को भगाने के अजीबो गरीब तरीके की तरह वनभैंसो के लिए भी कूलर और टेंट लगाया गया है।
श्री पांडेय ने बताया कि वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया को बारनवापारा अभ्यारण्य में वनभैंसा हेतु सही रहवास क्षेत्र चिन्हित करने हेतु लेख किया गया। विभाग द्वारा वर्ष 2017 में ही बारनवापारा अभ्यारण्य में सही रहवास क्षेत्र चयन पश्चात 10 हेक्टयर क्षेत्र में बाड़े का निर्माण किया गया है।उन्होंने बताया कि राज्य शासन द्वारा भारत शासन पर्यावरण एवं मंत्रालय नई दिल्ली को वनभैंसों को मानस टायगर रिजर्व से छत्तीसगढ़ बारनवापारा ट्रांसलोकेट करने की अनुमति बाबत प्रस्ताव प्रेषित किया गया। भारत शासन के आदेश दिनांक 25 सितंबर 2018 द्वारा 5 मादा वनभैंसों को ट्रांसलोकेट करने की अनुमति प्रदान की गयी थी। वनभैंसों को मानस टायगर रिजर्व से बारनवापारा अभ्यारण्य ट्रांसलोकेट करने के उद्धेश्य से वन विभाग के 17 सदस्यीय टीम 4 फरवरी 2020 को छत्तीसगढ़ से मानस टायगर रिजर्व हेतु रवाना हुई थी।
श्री पांडेय ने अपनी विज्ञप्ति में यह भी बताया कि ~<<भारत शासन पर्यावरण एवं मंत्रालय नई दिल्ली के पत्र 16 मार्च 2020 द्वारा मानस टायगर रिजर्व से 1 नर वनभैंसा ट्रांसलोकेट करने की अनुमति दी गयी। ट्रांसलोकेशन हेतु छत्तीसगढ़ वन विभाग की टीम द्वारा मानस टायगर रिजर्व के अधिकारियों/कर्मचारियों की मदद से 1 नर एवं 1 मादा सबएडल्ट वनभैंसे को बाड़ा में घेरने की कार्यवाही की गयी। तत्पश्चात इन दोनों वनभैंसों की डीएनए रिपोर्ट हेतु ब्लड सैम्पल सीसीएमबी हैदराबाद भेजा गया। सीसीएमबी हैदराबाद के द्वारा 20 मार्च 2020 को दोनों वनभैंसों की डीएनए टेस्टिंग की रिपोर्ट दी गयी जिसमें यह अंकित किया गया है कि इन वनभैंसों की डीएनए टेस्टिंग एवं अनुवांशिक मिलान उदन्ती के वनभैंसों से होती है।इसके बाद अन्य प्रक्रिया पूर्ण की गई और लॉक डाउन के दौरान ही मौसम विपरीत होने के बावजूद वन विभाग ने इसे पूरी सुरक्षा के साथ बार के खैरछापर में 18 अप्रेल को शिफ्ट कर दिया गया।श्री पांडेय ने यह बताया सीसीएमबी हैदराबाद की रिपोर्ट 20 मार्च2020 को प्राप्त होते ही जब यह तय हो गया कि इन वनभैंसों का डीएनए जीन छत्तीसगढ़ राज्य के वनभैंसों से मेल खाता है, इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य लाने की कार्यवाही प्रारंभ की गयी। किन्तु कोरोना संक्रमण के कारण देशव्यापी लॉकडाउन होने से ट्रांसलोकेशन की कार्यवाही विलंबित हुई। लॉकडाउन अवधि में वनभैंसों को स्थानांतरित किया जाना अतिआवश्यक था, क्योंकि गर्मी बढ़ने के साथ – साथ जिस बाड़े में वनभैंसों को घेर कर रखा गया था वहाँ घास की उपलब्धता भी कम होती जा रही थी। इसलिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पत्र क्रमांक 1605, 13 अप्रैल 2020 द्वारा अपर मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ शासन गृह विभाग को लॉकडाउन अवधि में वनभैंसों को मानस टायगर रिजर्व असम से लाने की अनुमति बाबत अनुरोध किया था।
इसके बाद प्रमुख वन संरक्षक से अनुमति भी मिल गयी और दोनों वनभैंसो को लाया गया।अब यहां सवाल यह उठता है कि देश भर में लॉक डाउन की स्थिति असम में बारिश एवम ठंड पूरे वर्ष भर रहती है।उसके मुकाबले ●छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय मे जुलाई तक तापमान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस होता है।ऐसी स्थिति में क्या तुरंत अनुमति लेना और लाना जरूरी था।ये काम 2 माह बाद भी किया जा सकता था।परंतु अफसरों को मौसम की पूरी जानकारी होने के बाद भी आखिर इतनी जल्दीबाजी क्यों कि गयी?क्या उक्त दुर्लभ राज्य पशु को सुरक्षित रखने के लिए उचित मौसम की प्रतीक्षा नही की जानी चाहिए थी?
क्या वन भैंसों को लाने के पूर्व उन्हें रखने के लिए एक स्थायी वातानुकूलित क्षेत्र नही बनाया जा सकता था?जंगल के अंदर टेंट एवम जनरेटर लगा कर इन पशुओ की कितनी सुरक्षा की जा सकेगी?वर्तमान में अंधड़ के साथ तेज हवाएं एवम ओला वृष्टी भी हो रही है।ऐसे मौसम में क्या जनरेटर एवम टेंट के तम्बू सुरक्षित होंगे?● ●ऐसे और भी विचारणीय प्रश्न है?जिसका जवाब वन अफसरों को देना चाहिए।
वरना इसका हश्र भी मगरमच्छ पार्क,हाथी CORIDORएवम कालाहिरण की तरह ना हो जायेे ?