कोरोना संकट से परेशान जनता को राहत देने माकपा और वाम पार्टियों ने मनाया विरोध दिवस
1 min readनूरानी चौक, राजातालाब, रायपुर, छग
कोरोना संकट से परेशान जनता को राहत देने की मांग करते माकपा और वाम पार्टियों ने मनाया विरोध दिवस
मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ गरीबों और प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को केंद्र में रखकर आम जनता को राहत देने की मांग करते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित प्रदेश की पांच वामपंथी पार्टियां ने आज विरोध दिवस मनाया। इसके साथ ही वाम पार्टियों ने प्रदेश के क्वारंटाइन केंद्रों और राहत शिविरों में रखे गए प्रवासी मजदूरों को पौष्टिक आहार देने, चिकित्सा सहित सभी बुनियादी मानवीय सुविधाएं उपलब्ध कराने और उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को बंद किये जाने की भी मांग राज्य सरकार से की।
आज यहां जारी एक संयुक्त बयान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संजय पराते, भाकपा के आरडीसीपी राव, भाकपा (माले)-लिबरेशन के बृजेंद्र तिवारी, भाकपा (माले)-रेड स्टार के सौरा यादव तथा एसयूसीआई (सी) के विश्वजीत हारोडे ने प्रदेश की जनता को वाम पार्टियों के आह्वान को सफल बनाने के लिए बधाई दी और कहा कि उनके द्वारा उठाई गई मांगें साझा विपक्ष की मांगें हैं और इसके लिए संघर्ष और तेज किया जाएगा। वामपंथी पार्टियां आयकर के दायरे के बाहर के सभी परिवारों को आगामी छह माह तक 7500 रुपये मासिक नगद दिए जाने और हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज हर माह मुफ्त दिए जाने; सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को खाना-पानी के साथ अपने घर लौटने के लिए मुफ्त परिवहन की व्यवस्था उपलब्ध कराने; मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम उपलब्ध कराने तथा इस योजना का विस्तार शहरी गरीबों के लिए भी किये जाने; मनरेगा में मजदूरी दर न्यूनतम वेतन के बराबर दिए जाने तथा सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने; राष्ट्रीय संपत्ति की लूट बंद करने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगाने और श्रम कानूनों और कृषि कानूनों को तोड़-मरोड़कर उन्हें खत्म करने की साजिश पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं।
वाम नेताओं ने कहा कि आज अर्थव्यवस्था जिस मंदी में फंस चुकी है, उससे निकलने का एकमात्र रास्ता यह है कि आम जनता के हाथों में नगद राशि पहुंचाई जाए तथा उसके स्वास्थ्य और भोजन की आवश्यकताएं पूरी की जाए, ताकि उसकी क्रय शक्ति में वृद्धि हो और बाजार में मांग पैदा हो। उसे राहत के रूप में “कर्ज नहीं, कैश चाहिए”, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संकट आपूर्ति का नहीं, मांग का है।
उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने में मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त और जनविरोधी नीतियों की बहुत बड़ी भूमिका है। नतीजन उससे न तो देश में कोरोना महामारी पर काबू पाया जा सका है और न ही आम जनता को राहत देने के कोई कदम उठाये गए हैं। आम जनता बेकारी, भुखमरी और कंगाली की कगार पर पहुंच चुकी है। प्रवासी मजदूर आज भी अपनी घर वापसी के लिए किस तरह संघर्ष कर रहे हैं, यह हाल ही में राजस्थान के अलवर में फंसे कांकेर जिले की लड़कियों के उजागर मामले से पता चलता है। असंगठित क्षेत्र के 15 करोड़ लोगों की आजीविका खत्म हो गई है और खेती-किसानी चौपट हो गई है।
उन्होंने कहा कि राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये जिस तरीके से तालाबंदी की गई, उसमें न तो लॉक-डाऊन के बुनियादी सिद्धांतों — टेस्टिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन — का पालन किया गया और न ही महामारी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह को माना गया। नतीजा यह है कि लॉक डाऊन से पहले की तुलना में आज संक्रमित लोगों की संख्या 700 गुना और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 1000 गुना से ज्यादा हो चुकी है। इस असफलता के बाद फिर जिस तरह मोदी सरकार ने अनियोजित ढंग से लॉक डाऊन हटाने का पूरा जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है, उससे स्पष्ट है कि उसने आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को त्यागकर उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया है।
उन्होंने कहा कि इतने संकट में भी आम जनता की आजीविका की रक्षा तथा उसे सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए कदम उठाने के बजाय मोदी सरकार कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए ही प्रतिबद्ध है। 20 लाख करोड़ रुपयों का कथित राहत पैकेज कार्पोरेटों को ही समर्पित हैं, जबकि दूसरी ओर यह सरकार कोरोना संकट से लड़ने के नाम पर श्रम कानूनों को खत्म करके 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम करने का मजदूर विरोधी प्रावधान लागू कर रही है और राज्यों को विश्वास में लिए बिना मौजूदा कृषि कानूनों को खत्म कर ठेका खेती को लागू कर रही है। इन नव-उदारवादी नीतियों से पैदा होने वाले असंतोष को तोड़ने के लिए वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नीति पर चल रही है।