गरीबी और संघषों के बीच पले-बढ़े जमीन से जुड़े नेता- थावरचंद गहलोत

भोपाल। आज के दौर में जब पार्षद बनते ही मोहल्ला छाप नेताओं तक के दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ जाते हों, वहां थावरचंद गहलोत जैसे नेता भी हैं जो अभिमान से परे शुचिता और प्रामाणिकता से भरी राजनीति की डगर पर चलकर, उच्च सदन के नेता जैसे बड़े पद पर पहुंचते हैं। पद के लिए पराक्रम से ज्यादा परिक्रमा की अहमियत वाले मौजूदा कालखंड में ये बातें अचरज में डालती हैं कि एक ऐसा शख्स जो नाले किनारे बनी झुग्गी झोपड़ी में रहा हो, स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ा हो, साइकिल के पंक्चर और मिल में मजदूरी कर आजीविका चलाता रहा हो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टॉप टेन मंत्रियों में शामिल होकर राज्यसभा का नेता बन जाए। पर यह हकीकत है। मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य और मोदी सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने आज जो भी मुकाम पाया उसमें उनकी सहजता, सरलता और विनम्रता का बड़ा रोल रहा है। तीन बार विधायक और चार बार लोकसभा के चुनाव में सफल रहे गहलोत भाजपा संगठन में भी लंबे समय तक सक्रिय रहे। उसी दौर में उनकी नरेंद्र मोदी से निकटता हुई। दलित वर्ग से संबंधित होने के बावजूद वे किसी वर्ग के नेता के रूप में नहीं पहचाने जाते।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
गुरबत-गरीबी और संघषों के बीच पले-बढ़े थावरचंद गहलोत के माता-पिता भी उच्जैन जिले के नागदा में बिड़ला की ग्रेसिम मिल में मजदूरी करते थे। माताजी मिल के बगीचे की देखरेख साफ सफाई और पौधों को पानी देती थीं। माताजी ने कुछ समय ईंट के भट्टों में भी मजदूरी की। गहलोत के साथी बताते हैं कि वे जिस झुग्गी बस्ती में रहते थे वहां बिजली नहीं थी। स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पडती थी। 18-20 साल के हुए तो थावरचंद भी मिल में मजदूरी करने लगे। 1970 में हुए नागदा गोली कांड की वजह से उन्हें नौ माह जेल में बिताने पड़े। तब उनकी पत्नी और दो बच्चों की देखरेख माता-पिता ने की। इसी दौरान भारतीय मजदूर संघ से जुड़ गए। आंदोलन में सक्रियता के चलते मिल की नौकरी भी छूट गई। इसके बाद उन्होंने आजीविका के लिए साईकिल की दुकान खोली। चूंकि दिमाग मैकेनिकल था लिहाजा पंचर बनाने से लेकर साईकिल सुधारने के तमाम कामों में वे दक्ष हो गए। 1968 में फैक्टरी में नौकरी के दौरान उन्हें केरल भेजा गया। केरल में कालीकट के पास माउर में एक नया प्लांट डाला गया जहां मशीनों की स्थापना के लिए गहलोत को भेजा गया। वे करीब चार माह तक मशीनों को स्थापित करने के बाद वापस नागदा लौटे।
नागदा आकर भारतीय मजदूर संघ के कामकाज और अन्य सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रमों में सक्रिय हो गए। नागदा में जनसंघ के वरिष्ठ नेता मांगीलाल शर्मा के साथ गहलोत जुड़ गए। इसी दौरान क्षेत्रीय नेताओं के साथ थावरचंद और अब्दुल हमीद आदि भोपाल में कुशाभाऊ ठाकरे के पास मांगीलाल शर्मा के लिए विधानसभा का टिकट मांगने पहुंचे। ठाकरे थावरचंद गहलोत का कामकाज और स्वभाव देख चुके थे, उन्होंने आदेशात्मक लहजे में कहा कि तुम खुद आलोट से चुनाव लड़ने की तैयारी करो। गहलोत के बचपन के साथी अब्दुल हमीद बताते हैं कि उस वक्त उनके पास नामांकन पत्र के साथ जमा करने के लिए ढाई हजार रुपये भी नहीं थे। उन्होंने परेशानी बताते हुए मना भी किया लेकिन कुशाभाऊ ने कहा सब हो जाएगा, तुम परेशान मत हो। इसके बाद तत्कालीन संगठन मंत्री बाबूलाल जैन ने नामांकन पत्र की औपचारिकता पूरी कराई। 15 दिन के लिए पार्टी ने एक जीप उपलब्ध कराई जिससे चुनाव प्रचार किया गया।
45 साल से थावरचंद गहलोत के अभिन्न मित्र जगदीश अग्रवाल कहते हैं कि आपातकाल के बाद जेल में हम दोनों साथ रहे। मैंने देखा स्वभाव में स्थिरता और शांति उनके स्थायी भाव हैं, गुस्सा बहुत कम आता है। यही कारण है कि पार्टी ने उन्हें हमेशा संगठन के महत्वपूर्ण दायित्व सौंपे। सुंदरलाल पटवा जब मुख्यमंत्री बने तब बतौर राज्यमंत्री थावरचंद गहलोत उनकी टीम में शामिल थे।