मझवार की पर्यायवाची जातियों को चमार व वाल्मीकि की भांति मिले आरक्षण का लाभ
1 min readदिल्ली का मल्लाह व पश्चिम बंगाल का मल्लाह, केवट, बिन्द एस.सी. तो यूपी, बिहार का क्यों नहीं-लौटन राम
लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ. लौटन राम निषाद ने यहां जारी अपने बयान में कहा कि देश की राजधानी दिल्ली का मल्लाह व पश्चिम बंगाल का मल्लाह, केवट,बिन्द, चांई,तियर, कैवर्त आदि अनुसूचित जाति में हैं, तो उ0प्र0, बिहार का मल्लाह, केवट, बिन्द, धीवर आदि अन्य पिछड़े वर्ग में क्यों हैं? जबकि इनका सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक स्तर एक समान व परम्परागत पेशा एक ही है। उत्तर प्रदेश के मल्लाह का वैवाहिक सम्बन्ध दिल्ली के मल्लाहों से निर्बाध रूप से होता आ रहा है और बिहार व झारखंड के मल्लाह, केवट, बिन्द, चांई, तियर का वैवाहिक सम्बन्ध पश्चिम बंगाल के मल्लाह, केवट, बिन्द, धीवर, चांई, तियर आदि से होता आ रहा है। उन्होंने केन्द्र सरकार से आरक्षण की विसंगति व क्षेत्रीय भेदभाव दूर कर फिशरमेन विजन डाक्यूमेन्ट्स व मछुआरा दृष्टिपत्र की नीति को लागू कर सभी मछुआरा जातियों को भौगोलिक स्थितियों के अनुसार एस.सी. या एस.टी. में रखे जाने की मांग किया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में मांझी व मझवार अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल है। परन्तु इनकी पयार्यवाची मांझी, मल्लाह, केवट, धीवर, धीमर, कहार,गोड़िया, रायकवार आदि को मांझी व मझवार का प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जा रहा है।जबकि 2003 से 2015 तक मध्य प्रदेश की सरकार ने 9 बार प्रस्ताव व अनुस्मारक भेजा ।
श्री निषाद ने बताया कि मझवार जाति 1950 से अनुसूचित जाति में शामिल है और सेन्सस आॅफ इण्डिया-1961 के अनुसार मांझी, मल्लाह, केवट, राजगौड़, गोड़, मझवार आदि इसकी पर्यायवाची व वंशानुगत जाति मानी गयी है। मझवार का प्रमाण-पत्र मांगे जाने पर तहसील कर्मियों द्वारा यह कहकर कि आप मल्लाह, केवट, गोड़िया हो, मझवार नहीं। इसी को ध्यान में रखकर राज्य सरकार ने 21 दिसम्बर, 2016 को एक शासनादेश जारी किया था। 2004 से 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रकरण चला आ रहा था। प्रदेश सरकार द्वारा बार-बार जवाब व संस्तुति भेजे जाने के बाद भी केन्द्र सरकार द्वारा नकारात्मक रवैया अपनाई जा रही थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने विगत 22 दिसम्बर व 31 दिसम्बर को इन 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति परिभाषित करने की अधिसूचना जारी कर दिया था। जिसे कई दलित संगठनों ने विरोध जताते हुए उच्च न्यायालय में याचिका योजित किया था।न्यायालय ने 24 जनवरी 2017 को अधिसूचना को स्थगित कर दिया और 29 मार्च,2017 को स्टे वैकेट हो गया।उत्तर प्रदेशकी योगी सरकार इन जातियों के साथ नकारात्मक रवैया अपना रही है। श्री निषाद ने बताया कि मांझी, मल्लाह, केवट, बिन्द, गोड़, मझवार, राजगौड़, आदि अनुसूचित जाति मझवार की, धीवर, धीमर, तुराहा, तुरहा आदि तुरैहा की, गोड़िया, धुरिया, कहार, रायकवार, बाथम, राजगौड़ आदि गोड़ की, भर, राजभर पासी तड़माली की तथा कुम्हार प्रजापति अनुसूचित जाति शिल्पकार की पर्यायवाची जातियां मानी गयी है। उन्होनें कहा कि जब चमार की सभी पर्यायवाची – धुसिया, झुसिया, जाटव, जाटवी, मोची, कुरील, नीम, पीपैल, कर्दम, रमदसिया, शिवदसिया, रैदासी,दोहरा, दोहरे, उतरहा, दखिनहा, आदिधर्मी,कबीरपंथी, अहिरवार आदि तथा वाल्मीकि की पर्यायवाची मेहतर, लालबेगी, हलखोर, चूरा, तुरा, भंगी आदि को चमार व वाल्मीकि का प्रमाण पत्र दिया जाता है तो मझवार की पर्यायवाची, वंशानुगत नाम मल्लाह, केवट, बिन्द, माझी, धीवर, धीमर, गोड़िया, रायकवार आदि को क्यों नहीं? यह संविधान के अनुच्छेद -14 का सरासर उल्लंघन है।