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December 26, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

सांस्कृतिक मंच ने ट्रेड यूनियन संयुक्त समिति द्वारा 3 जुलाई को आयोजित प्रतिरोध दिवस को समर्थन दिया

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Raipur

कोरोना संकट के दरम्यान हमारी संस्कृति, जाति व्यवस्था, पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था, वर्गीय व्यवस्था तथा साम्प्रदायिक समूहों के नकारात्मक पहलू बड़े रूप में उजागर हो रहे हैं।कोरोना काल मे यह साफ दिख रहा है कि हाशिए पर रहने वालेवंचित समुदाय ही वर्चस्ववादी सांस्कृतिक व्यवस्था के सहज शिकार हो रहे हैं।मिसाल के लिए बदहाल प्रवासी मज़दूरों का बड़ा हिस्सा उत्पीड़ित वर्ग का है।इसी तरह मेहनतकश जनता को बड़े पैमाने पर रोजगार और आवास से वंचित होना पड़ रहा है।

इस सार्वदेशिक महामारी के दौरान महिलाओं को बढ़ते हुए घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।इस काल मे नफरत की संस्कृति हावी है जिसके तहत मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय पर यह कहकर तोहमत लगाया जा रहा है कि कोरोना विषाणु के फैलाव के लिए येही जिम्मेदार हैं।इस काल मे गरीब,वंचित वर्गों व आम जनता को सहाय सम्बलहीन बना दिया गया है।इनसे जीवन जीने के हर अधिकार को संघी कॉर्पोरेट फ़ासीवादी शाषक वर्ग ने छीन लिया है।यही लोग आज शासक वर्ग के सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों के सबसे ज्यादा शिकार हैं। हम जैसे लोग जो कला संस्कृति को जनता के हित में इस्तेमाल करने के पक्षधर हैं, यह देखने को बाध्य हैं कि किस तरह इस महामारी ने एक झटके में शिक्षा, कला,मनोरंजन, मीडिया संचार, प्रजातांत्रिक व्यवस्था, सामाजिक संबंध, कार्य संस्कृति, राजनैतिक संस्कृति व सामाजिक मानस इन सभी को गहराई से प्रभावित किया है।इसके अलावा फ़ासीवादी मोदी सरकार के राजनैतिक विरोधियों का इस काल मे भीषण दमन- चाहे वो विद्यार्थी हों,पत्रकार हों,जनपक्षधर बुद्धिजीवी हों या फिर मानवाधिकार कार्यकर्ता हों,इस काल की विशिष्ट संस्कृति है।
क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच(कसम)इस बात को शिद्दत से मानता है कि जनता के आर्थिक व राजनीतिक मांगों का गहरा ताल्लुक जन संस्कृति के साथ रहता है।शाषक वर्ग ने इस काल मे जिस आर्थिक सामाजिक वंचित वर्ग को असभ्य असंस्कृत मानकर सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया है, हिटलर के प्रचारमंत्री गोएबल्स की तरह उन्हें उनकी मूल समस्या गरीबी,भुखमरी, बेरोजगारी, अस्वस्थता से ध्यान हटाने के लिए लगातार झूठ,कोरी जुमलेबाजी और डिजिटल रैली के सहारे उनके भीषण आक्रोश को शांत करने की कोशिश भी उनकी संस्कृति का मुख्य हिस्सा है।इसी लिए हम ट्रेड यूनियन संयुक्त समिति द्वारा प्रस्तावित मांगों के आधार पर आगामी 3 जुलाई को आयोजित प्रतिरोध दिवस का पूरी तरह समर्थन करते हैं।कसम,तमाम जनसंस्कृति कर्मी और आम जनता से अपील करती है कि वे मोदी सरकार के घोर जनविरोधी अमानवीय रवैये के खिलाफ निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा, भोजन आवास शिक्षा रोजगार प्रवास बेरोजगारी भत्ता का अधिकार,विरोधी मत रखने का अधिकार तथा सांस्कृतिक विविधता व सांस्कृतिक विकास के लिए अवसर प्रदान करने के अधिकार की मांग रखते हुए 3 जुलाई के प्रतिरोध दिवस को प्रबल रूप से सफल बनायें।निष्कियता,पस्तहिम्मती की संस्कृति को पराजित करें ,क्रांतिकारी आशावाद को बुलंद करें।

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