पति-पत्नी को परिवार में संयम व सहनशीलता से जीवनयापन करना चाहिए
1 min readटिटिलागढ़ महाश्रमण जी की शिष्या द्वारा एक दिवसीय दंपति शिविर आयोजित
टिटिलागढ़। स्थानीय तेरापंथ भवन में जैन धर्म के महातपस्वी शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के विदूषी सुशिष्या साध्वी प्रवलयशा जी, साध्वी सुयश प्रभाजी, साध्वी सोरभयशा जी के सानिध्य में एक दिवसीय दंपति शिविर का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र का शुभ उद्घाटन बीजद के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद जैन ने साध्वी श्री का स्वागत एवं अभिनंदन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। साध्वीश्री का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया। मंच संचालन गोविंद प्रसाद जैन ने किया। कन्या मित्र मंडल, तेरापंथ महिला मंडल ने गीतिका द्वारा साध्वीवृंद का स्वागत किया। साध्वी प्रवलयशा जी ने कार्यक्रम में उपस्थित 68 दंपति जोड़ा को अनेक गुर बताये। साध्वी यशाजी ने बताया कि पति-पत्नी को परिवार में संयम एवं सहनशीलता से जीवनयापन करना चाहिए।
जीवन में राग द्वेष छोड़कर नम्रता अपनाना चाहिए। परिवार में दंपत्ति को मर्यादा में जीवनयापन करना चाहिए। जिससे सर्वप्रथम परिवार, समाज, नगर, प्रांत एवं देश में सुख का माहौल हो सके। सांसारिक जीवन में रहना, कहना एवं सहना सीखना चाहिए, उसी से ही परिवार की शोभा है। उन्होंने पुन: कहा कि सप्ताह में सात वार होते हैं। आठवां वार परिवार है। पति-पत्नी को प्रेम से परिवार में रहना चाहिए, जिससे धरती पर स्वर्ग का एहसास होगा। जैसे दोनों हाथ से ताली बजती है वैसे ही पति-पत्नी को मिल जुलकर रहना चाहिए। मधुरवाणी से परिवार के साथ सभी का मन जीता जा सकता है। उन्होंने कहानी के अनुसार कहा कि आपस के मेल मिलाप से अपनी ताकत दस गुणा हो जाती है। जैसे उदाहरण के तौर पर कहा कि नौ की संख्या ने कहा कि मैं बड़ा हूं, इसलिए उसने आठ को मारा, आठ ने सात को मोरा, सात ने छह को मारा, छह ने पांच को मारा। इसी क्रम में अपने छोटे संख्या का पिटाई करते रहे, किन्तु जब एक क्रम आया ता वह सोचा किसे पिटाई करूं, किन्तु उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपने भाई शून्य को अपने बगल में बिठा लिया, जिससे उसकी संख्या दस हो गयी। वह नौ से बड़ा हो गया। इसलिए दांपत्य जीवन में टकराव न करते हुए मिलकर रहना सीखें। इसीलिए सभी श्रोताओं को सकारात्मक सोच रखना चाहिए। जिसका विचार एवं व्यवहार अच्छा होगा, दूनिया की कोई ताकत उन्हें विचलित नहीं कर सकता। उन्होंने पुन: बताया कि एक वचन, बहु वचन एवं प्रवचन का व्याकरण बताओ। तो उन्होंने बताया कि पति ने कहा पति बोले तो एक वचन, पत्नी बोले तो बहु वचन एवं सास बोले तो प्रवचन होता है। एक बार पत्नी अपने पति के पर नाराज हो गई। अपने पति को जानवर कहा, किन्तु पति का सहनशीलता उसने कुछ भी जवाब नहीं दिया। कुछ देर पश्चात पत्नी ने पति को कहा कि मैंने आपको बहुत अजुल फिजुल की बातों से नवाजा, यहां तक कि जानवर कहा, किन्तु आपने कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। तो पति ने कहा तुम मेरी जान हो और मैं तुम्हारा वर हूं, तो इसमें तुमने क्या गलत कहा जो अपना प्रतिक्रिया व्यक्त करता। इसी तरह साध्वीजी ने अपने गुर समझाये। प्रथम सत्र का समापन हुआ। दोपहर को समापन सत्र में मुख्य अतिथि ओड़िशा सरकार की केबिनेट मंत्री श्रीमती टुकनी साहू ने अपना योगदान किया। उन्होंने साध्वीश्री से आशीर्वाद ग्रहण किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन धर्म के महातपस्वी शांतिदूत गत वर्ष मार्च महीने में नगर आगमन किये थे। उस समय वे मेरे निवास में पधार कर आशीर्वाद प्रदान किया था। आप कर्म करो आपकी जीत निश्चित है। समापन अवसर पर कैबिनट मंत्री श्रीमती साहू को प्रांतीय जैन समाज अध्यक्ष छतरपाल जैन, नगर अध्यक्ष अमरसिंह जैन, (पूर्व पार्षद) सचिव मनोज जैन, कोषाध्यक्ष नवीन जैन, प्रांतीय सलाहकार प्रेमचंद जैन, सुरेन्द्र कुमार जैन एवं अन्य सदस्यों ने महाश्रमण जी का तैलचित्र भेंटकर प्रदान किया। उक्त दंपत्ति शिविर में अंचल के आस पास जैसे बेलपड़ा, सिंधेकेला, कांटाबांजी, खुरसुड़, चांदोतारा, केसिंगा, मदनपुर, रामपुर के साथ अन्य नगर से जैन धर्मावलंबी पधारे थे। सभा अंत में साध्वी प्रवलयशाजी ने उपस्थित जनों को आर्शी वचन प्रदान किया। इस कार्यक्रम में जैन सभा उपाध्यक्ष पदमसेन जैन, वरिष्ठ सदस्य तिलकचंद जैन, वरिष्ठ चिकित्सक घनश्याम जैन, सीए आनंद जैन, युवा परिषद के अध्यक्ष गौतम जैन एवं गोपाल आदि उपस्थित थे।