नगर पालिका निगम भिलाई से निकला एक और जिन्न मतलब नियम विरूध काम की अनुमति, 1248 प्लाट की खरीदी बिक्री पर आपत्ति
1 min read- नियम विरूध और बिना अनुमति काम करना है तो नगर निगम भिलाई से सीखे
- 20 साल बाद पहली बार भिलाई निगम प्लॉट का आवंटन करेगा
- अब भारतीय जनता पार्टी की पार्षदों ने आपत्ति जताना शुरू कर दिया है
- सभी भूखंडों के नीलामी अथवा बेचने पर नगर निगम को अरबों रुपए की आय होगी ?
- भिलाई, रायपुर
नगर पालिका का प्रावधान है कि समानय सभा के अनुमति के बिना इस तरह के काम नहीं कर सकते है, क्या कारण है कि 20 साल बाद भूखंड बेच रही है
नगर पालिका निगम भिलाई इस समय चर्चा में है। कहीं कोरोना महामारी में कोरोना मरीजों के लिए अव्यवस्था तो कहीं नियम विरूध या बिना अनुमति के काम को लेकर शुर्खियां बतोर रहा है। अब कुछ दिनों से नगर पालिका निगम में एक और जिन्न बाहर निकल आया है। यह जिन्न किसी नियम और कानून को ताख पर रख कर काम करता है। जी हां हम बात कर रहे हैं आवासीय योजना के तहत प्लॉट बेचने की… आर्थिक रूप से मजबूत होने की… नगर निगम ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। देखना यह है कि निगम के ऊपर जो आरोप लग रहे हैं क्या वह सही है। यदि हां तो अनुमति किसने दे दी। इसकी जांच-पड़ताल द न्यू दूनिया डॉट कॉम के जब पत्रकार ने की तो कुछ तथ्य चैकाने वाले निकले।
विशेष बात यह है कि नगर निगम आवासीय योजना के तहत अपने प्लॉट को बेचकर आर्थिक रूप से मजबूत होने की तैयारियां कर रहा है। साडा (विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण) के भंग होने के 20 साल बाद पहली बार भिलाई निगम प्लॉट का आवंटन होगा।भिलाई निगम के पास ऐसे लगभग 1248 प्लॉट हैं, इसमें प्राइम लोकेशन में 445 भूखंड की जानकारी एकत्र कर ली गई है, लेकिन इस मामले में अब भारतीय जनता पार्टी की पार्षदों ने आपत्ति जताना शुरू कर दिया है। नगर निगम की भूमि के नीलामी अथवा बेचने की कारर्वाई शासन के आदेश पर प्रारंभ की गई।
आज जिन स्थानों पर भूखंड है। इनकी कीमत कलेक्टर दर अनुसार प्रति वर्ग फीट 2500 रुपए से 5000 रुपए तक पहुंच गई। इन प्लाटों के अनुमानित आकलन आज की तिथि अनुसार 5 अरब से भी ज्यादा की संपत्ति मानी जा रही है । इस आवासीय एवं व्यावसायिक भूखंड को बेचने के बाद राजस्व मद एवं नगर निगम मद में जमा करना होगा । इस मामले में आपत्ति दर्ज करते हुए जोन एक के जोन अध्यक्ष भोजराज सिन्हा ने कहा कि सर्वाधिक भूखंड प्राइम लोकेशन के नेहरू नगर जोन अंतर्गत है । इन सभी भूखंडों के नीलामी अथवा बेचने पर नगर निगम को अरबों रुपए की आय होगी।
7500 वर्ग फीट तक बेचने का अधिकार- विशेष योजना के तहत आवंटित होने वाले प्लॉट है, इसे बेचने के लिए निगम को अनुमति मिल गई है ।कलेक्टर को 7500 वगर्फुट प्लॉट बेचने का अधिकार राज्य शासन ने दिया है । इसके अलावा 600 से लेकर 6000 वर्गफुट के प्लॉट की बिक्री के लिए टेंडर होगा ।
बिना सामान्य सभा अनुमति कैसे मिल गई
विशेष बात है कि नगर पालिका जब भी कोई अचल संपति बेचती है तो उससे पहले महापौर के द्वारा सामान्य सभा बुलाकर पास किया जाता है उसके बाद महापौर और सरकार के अनूमति होती है पर ऐसा नहीं हुआ । महापौर ने स्वयं ही शासन को भेज दिया और शासन भी अनुमति दे दी । छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 80 ध्2 ( का ) इ में स्पष्ट तौर पर कहां है कि निगम सामान्य सभा से भूखंडों को बेचना या उक्त भूखंडों की अनुमति लेनी थी, बिना अनुमति लिए निगम की जमीन को बेचने का अधिकार नहीं है ।
प्राइम लोकेशन के प्लॉट
ज्ञात है कि शहर के प्राइम लोकेशन नेहरू नगर, प्रियदर्शनी परिसर, राधिका नगर, दक्षिण गंगोत्री, बसंत विहार, जवाहर नगर, वीर सावरकर मार्केट, शिवनाथ कंपलेक्स, शिवाजी नगर, खुर्सीपार में है. इसके अलावा भी 800 स्थानों पर बहुमूल्य एवं प्राइम लोकेशन में प्लाट उपलब्ध है । इसमें औद्योगिक क्षेत्र की भूमि भी शामिल है ।
करीब 5 सौ करोड की संपति बेचकर निगम पालिका को बर्बाद करना चाहते हैं महापौर
जोन अध्यक्ष भोजराज सिन्हा ने कहा कि महापौर और भिलाई विधायक देवेंद्र यादव बिना सामान्य सभा के प्रोजेक्ट को शासन से पास कराकर पालिका की जमीन क्यों बेचना चाहते हैं । यह संपति करीब 500 करोड की है, यदि पूरा पैसा निगम को नहीं मिला तो निगम पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा । यह एक साजिश है । बचे 88 दिनों के कार्यकाल में 500 करोड की संपति बेचकर निगम को बबार्द करना चाहते है।
जिला अधिकारी को जिम्मेदारी देने पर आपत्ति
जोन अध्यक्ष भोजराज सिन्हा ने कहा कि निगम क्षेत्र अंतर्गत उक्त भूखंडों की भूमि के लिये कलेक्टर को अधिकृत किया गया है, जो निगम अधिनियम विरुद्ध है । निगम को नीलामी कराने के पूर्व शासन से अनुमोदन कराने के बाद उन भूखंडों का पंजीयन करना था. किंतु यहां बिना पंजीकृत किए ही कलेक्टर सर्वेसर्वा हो गए हैं । सामान्य सभा की स्वीकृति किसी भी भूखंड के लिए नहीं ली गई है । निगम में इसकी चर्चा जोरों पर है ।
इस संदर्भ में जब महापौर से बातचीत करने के लिए फोन किया गया तो फोन नहीं उठा और उन्होंने न ही मैसेज किया1