जाति उन्मूलन आंदोलन और क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच ने किसानों के वीरतापूर्ण दिल्ली कूच के प्रति पूर्ण समर्थन ज्ञापित किया
- शिखा दास, महासमुंद
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों से किसानों द्वारा 26 नवंबर के अखिल भारतीय हड़ताल के दिन दिल्ली कूच के कार्यक्रम को असफल बनाने के लिए कॉर्पोरेट परस्त मोदी सरकार के मार्गदर्शन में हरियाणा की खट्टर सरकार ने पुलिस प्रशासन के जरिए अभूतपूर्व अवरोध लगाने के बावजूद तमाम गतिरोध अवरोध को तोड़ कर किसान कल शाम दिल्ली पहुंच गए। हां साथियों किसानों का वीरतापूर्ण कूच ,हरियाणा पुलिस व अर्धसैनिक बलों द्वारा बररिकडेस,कांटे तार की बाढ़, दुश्मन देश से युद्ध में जैसे खंदक खोदे जाते हैं वैसे खंदक खोदकर, भीषण ठंड के मौसम में पानी की तोप के जरिए नाली के गंदे पानी की बौछार, आँसू गैस के गोले सहित तमाम दमनात्मक नीतियों के बावजूद सफल हुआ।घोर जनविरोधी बीजेपी सरकार के तमाम जुल्मों के बावजूद कारवां बढ़ता जा रहा है।उत्तरप्रदेश से भारतीय किसान यूनियन,दक्षिण दिशा से मेधा पाटकर और अन्य किसान संगठनों के नेतृत्व में सभी राजमार्गों से किसान दिल्ली की पहुंच रहे हैं। यह आने वाले दिनों के महान कूच की पूर्व तैयारी है।
मुख्य धारा की कॉरपोरेट गोदी मीडिया इस किसान आंदोलन को विरोधी दलों या खालिस्तानियों के बहकावे में आये लोग कहकर दुष्प्रचार कर रही है।इतने अत्याचार के बावजूद किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण रहा।लेकिन पुलिस इनको जेल में डालने के लिए स्टेडियम की अनुमति चाहती है।
किसान क्यों दिल्ली आकर प्रदर्शन कर बहरी सरकार को क्या सुनाना चाहते हैं?उनकी मांग क्या है?मोदी सरकार ने कोरोना काल मे आपदा से अवसर बनाने के लिए बिना किसान संगठनों या संसद में चर्चा किये कृषि कानून पारित कर दिया।जो कि वास्तव में कृषि के कॉरपोरेटीकरण के कानून हैं।वर्तमान कृषि मंडी व्यवस्था व न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म कर कृषि को देशी विदेशी कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने के लिए ही ये कानून पारित किए गए हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर इस सच को झुठलाने के लिए झूठ पर झूठ परोसे जा रहे हैं लेकिन वे किसानों के मन की बात नहीं सुनना चाहते।यह कहना सफेद झूठ है कि कोरोना संक्रमण के डर से किसानों को दिल्ली में इकट्ठा होने नहीं दिया जा रहा है।अगर यही मोदी सरकार की मंशा होती तो कोरोना काल मे अयोध्या में हज़ारों की भीड़ इकट्ठा कर राम मंदिर का भूमिपूजन सरकारी आयोजन में नहीं किया जाता, या फिर बिहार के चुनाव में सरकारी प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ाकर हज़ारों हज़ार की भीड़ जुटाना, या मंदिरों के पट और बाजारों को खोलने की अनुमति नहीं दी जाती।क्या सरकार, संसद या सर्वोच्च न्यायालय नहीं जानता कि देश की जनता की हालत क्या है?
उन्हें तो भलीभांति मालूम है कि सरकार की नवउदारवादी आर्थिक नीतियों से असंगठित मज़दूर, किसान, दलित, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यक, विद्यार्थी, युवा समेत तमाम मेहनतकश आम जनता त्राहि त्राहि कर रही है और धन्ना सेठ बल्ले बल्ले कर रहे हैं। क्या हमारे मुल्क के हुक्मरान यह नहीं जानते कि उनके अम्बानी अडानी जैसे कॉर्पोरेट के तलवे चाटने के कारण ही गरीबी,बेरोजगारी, महंगाई और बीमारी से प्रभावित होने का रिकॉर्ड पिछले73 साल में आज सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है।संघी फ़ासीवादी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं इसीलिए तो वे जनता के प्रतिरोध को दमन पीडन के जरिए कुचलना चाहते हैं।लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि जहां दमन है वहाँ प्रतिरोध भी है।मौजूदा परिस्थिति यह दर्शाती है कि निरंकुश शाषक वर्ग ही देशद्रोही है जो देश की आम जनता के खिलाफ युद्ध घोषणा किया है और आंदोलनरत किसान मजदूर और आम जनता ही सच्चे देशभक्त हैं। जाति उन्मूलन आंदोलन और क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच तमाम जनविरोधी कॉरपोरेट परस्त कृषि क़ानूनों, मज़दूर विरोधी कानून व निरंकुश क़ानूनों को खारिज़ करने की मांग करती है।हम संघर्षरत किसानों, मज़दूरों, महिलाओं, उत्पीडित वर्ग सहित तमाम उन लोगों का जिन्होंने इस जबरदस्त कूच को सफल बनाया इंकलाबी सलाम देते हैं।ये क्रांतिकारी जनता वास्तव में शहीदे आज़म भगत सिंह, दुर्गा भाभी,करतार सिंह सराभा,उधम सिंह की महान क्रांतिकारी विरासत को संजोए हुए हैं।और यह बात भी तय है कि जुल्मी शाषन का अंत करके इतिहास का निर्माण भी यही जनता करेगी। जाति उन्मूलन आंदोलन की ओर से साथीगण बंददु मेश्राम,उत्तम जागीरदार व बी लक्षमैय्या क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच की ओर से साथीगण तुहिन, विजयलक्ष्मी व प्रवीण नादकर् है।