Recent Posts

November 23, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

हसदेव जंगल को बचाने सैकड़ों आदिवासियों ने गरियाबंद में निकाली जंगी रैली, उग्र प्रदर्शन 

1 min read
  • शेख हसन खान, गरियाबंद 

गरियाबंद। हसदेव के जंगलों को बचाने को लेकर आज आदिवासी समाज ने विशाल रैली निकाली। रैली तिरंगा चौक होते हुए सैकडो आदिवासी समाज के लोग कलेक्ट्रेट पहुँचे जहां वे हसदेव के जंगलों की कटाई रोकने हेतु राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौपा।

उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से लगा वो हरा-भरा जंगल है जिसे इस इलाक़े का फेफड़ा कहा जाता है। ये इलाक़ा सदियों से रहने वाले आदिवासियों का घर है और इसी को बचाने की गुहार लिए ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ से जुड़े उमेश्वर सिंह आरमो गरियाबंद ज़िला मुख्यालय पहुंचे, वे बताते हैं, “हसदेव का जंगलों में रहने वाले आदिवासी बहुल है।

वहां पशुपालन, कृषि, लघु उद्योग सब होता है और जो खनन कार्य हो रहा है उसमें सारे जंगल को हटाया जाएगा, मिट्टी को पलटा जाएगा और कोयला निकाला जाएगा जिसकी वजह से जो हमारे लघु उद्योग हैं वो पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे और उसपर आश्रित हमारे लोगों पर प्रभाव पड़ेगा, हमारे जंगल में जड़ी-बूटियां हैं और बहुत से परिवार हर दिन होने वाले कार्यों में इनका इस्तेमाल करते हैं और जंगल हटने वो सब ख़त्म हो जाएगा।” वे आगे बताते हैं कि “जंगल से निकलने वाले छोटे-छोटे बारहमासी नाले हैं उससे होने वाली खेती है जंगल कटने से छोटे-छोटे नाले ख़त्म हो जाएंगे, ये नाले आगे जाकर हसदेव नदी में मिलते हैं, वो ख़त्म हो जाएगा, तो ये वो तमाम नुकसान हैं जो सीधे तौर पर आदिवासियों को होंगे।”

उन्होंने कहा, “हमारी जानकारी के मुताबिक हम 300 सालों से उस क्षेत्र में रह रहे हैं, अगर जंगल कटता है तो विस्थापन होगा और विस्थापित होने के बाद एक आदिवासी जो जंगल से जुड़ा है उसे दोबारा वैसा ही माहौल मिलना बहुत मुश्किल है।

ख़ासकर महिलाओं के लिए, जो जंगलों से जुड़े काम करती हैं वो नहीं कर पाएंगी।” “ये लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है, पर्यावरण बर्बाद होगा तो सभी को भुगतना होगा” “हम गरियाबंद आए हैं हसदेव का संघर्ष साझा करने जिसके लिए हम लड़ रहे हैं। हम बताने आए हैं कि हसदेव में जो कोयला है वो पूरे देश में पाए जाने वाले कोयले का कुछ प्रतिशत है, उसे छोड़कर वहां से कोयला निकाल लें जहां कम से कम नुकसान हो तो वो बेहतर होगा। इतना समृद्ध जंगल जिसे आप ख़त्म कर रहे हैं उससे बहुत नुकसान हो जाएगा और उससे मानव और जीव- जंतुओं का नुकसान होगा। ये लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है। अगर इसका ध्यान नहीं रखा गया तो आगे चलकर सबका नुकसान होगा पर्यावरण बर्बाद होगा जिसे सभी को भुगतना होगा।”