सच का सामना करने का साहस है तो निगम की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करेें महापौर यादव
- भिलाई
अपने आर्थिक स्वहित के लिए निगम को कंगाली की कगार पर ला खड़ा करने और शहर का विकास अवरुद्ध करने वाले महापौर देवेंद्र यादव और उनकी परिषद शहर की जनता को न बरगलाएं। हमारी सीधी चुनौती है कि सच का सामना करने का साहस है तो निगम की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करेें। पिछले पांच साल में राज्य शासन से कितना पैसा आया, कितने का काम हुआ और सरकार बदलते ही कितना पैसा वापस मांग लिया गया, अगर महापौर में सच का सामना करने का साहस है तो वे पूरे शहर को यह सच्चाई बताएं।

- महापौर परिषद के सदस्य आज यह आरोप लगा रहे हैं कि पूर्व सरकार ने विकास कार्यों की मनमानी स्वीकृति दे दी, पैसा नहीं भेजा। यह राजनीतिक नासमझ की बात है। दो साल से जब यह काम चल रहा था तब महापौर और उनकी परिषद सो रहे थे क्या? तब उन्होंने काम क्यों बंद नहीं करवा दिया? सच तो यह है कि पहले भी और अब प्रदेश में सरकार बदलने के बाद भी हमारे शहर में जितने भी काम हुए हैं, हो रहे हैं और महापौर जिन कार्यों का झूठा श्रेय ले रहे हैं पूर्व की सरकार की ही देन है।
निगम के हर अधिकृत बयान में यह उल्लेख होता था…
हुडको में प्रस्तावित स्टेडियम को वे खुद खुर्सीपार ले गए। भोजराज ने कहा सेक्टर-9 का मैदान, बापू नगर तालाब, नालों का चैनलाइजेशन, उद्यानों व पार्कों का विकास ऐसे सभी सौगात पूर्व सरकार द्वारा स्वीकृत किए गए हैं। तब तो महापौर घूम-घूमकर नारियल फोड़ रहे थे। निगम के हर अधिकृत बयान में यह उल्लेख होता था कि जनता ने महापौर से मांग की थी और उन्होंने पूरा कर दिया। पूर्व सरकार ने इतना पैसा दिया था कि महापौर काम नहीं करवा पाए बल्कि शासन को वापस भेज दिया। थोड़ी भी नैतिकता है तो महापौर और उनकी परिषद यह बात भी पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से इस शहर को बताएं।
नियम दो साल पहले बदल गए थे या अब बदल गए हैं?
हर कार्य की स्वीकृति पश्चात काम होता है। काम की प्रगति रिपोर्ट शासन को जाती है और किस्तो में पैसा आते रहता है। यह तो प्रशासनिक प्रक्रिया ही है। स्वयं निगम कमिश्नर ने बयान दिया है कि किसी भी कार्य के लिए शासन की प्रशासकीय स्वीकृति पर्याप्त होता है। जहां तक अधिकारियों पर दबाव डलवाकर काम करवाने की बात है पूर्व के दोनों कमिश्रर आईएएस थे। वर्तमान कमिश्रर भी आईएएस हैं। शासन-प्रशासन के नियम दो साल पहले बदल गए थे या अब बदल गए हैं?
अब ठेका कितने प्रतिशत बिलो मेें जा रहा है शहर को बताइए
यह भी सार्वजनिक होना चाहिए कि पूर्व में कितने ठेके, कितने प्रतिशत बिलो एसओआर में गए और अब कितने अबव या बिलो एसओआर में जा रहे हैं। महापौर अपने भक्तों के जरिए प्रायोजित बयानबाजी बंद करे और हिम्मत है तो अब सामने आकर बोले।
दबाव में काम करने वाले अफसरों पर कार्रवाई करेंगे?
कार्यों की स्वीकृति देना, कार्य करवाना यह सब अधिकारियों के द्वारा होता है। वर्तमान निगम आयुक्त ऋतुराज रघुवंशी को पूर्व सरकार के कार्यकाल में भी काम करने का अनुभव है, वे बताएं कि कितने दबाव में थे अथवा आज हैं? पहले के भी जिन आईएएस अधिकारियों पर दबाव डलवाकर काम करवाने की बात कह रहे हैं वे भी इस सरकार में काम कर रहे हैं। क्या वे दबाव में काम कर रहे हैं? अगर उन्होंने गलत किया है तो क्या सरकार उन पर कार्रवाई करेगी?
चलो यह तो साबित हो गया कि महापौर ने पांच साल में कुछ नहीं किया
पार्षदोंं ने कहा है कि इससे यह स्थापित हो गया है कि महापौर पांच साल और विधायक के अब तक के दो साल के कार्यकाल में कोई काम नहीं किया गया है। जो भी काम हुए हैं पूर्व सरकार की ही देन है। पीडब्ल्यूडी प्रभारी नीरज पाल तो इस सच्चाई से और भी ज्यादा वाकिफ होंगे। उनके वार्ड में कितने का काम हुआ है वे ही बता दें। उनके वार्ड के पूरे झोपड़पट्टी क्षेत्र में पूर्व सरकार ने बिना किसी भेदभाव के काम करवाए थे। बल्कि अब फिजूलखर्ची करते हुए जो टाइल्स लगे थे उसे उखड़वाकर दोबारा लगवा दिए।
