ओडिशा के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है रजो
1 min read4 दिनों तक मनाया जाने वाला रजो पर्व 14 जून से शुरू
रज पर्व को लेकर बाजारों में नए कपड़े खरीदारी को लेकर लगी भीड़
कुमारी कन्या एवं महिलाओं में खुशी का माहौल
कटक। उड़ीसा राज्य का मुख्य पर्व रज को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई है चार दिनों तक मनाया जाने वाला यह त्योहार उड़ीसा राज्य का प्रमुख त्योहारों में एक त्यौहार मनाया जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें उड़ीसा राज्य के बाहर में रहने वाले ओड़िया लोग रज पर्व पर अपने घर आना नहीं भूलते हैं। उड़ीसा के लोग विदेश में भी क्यों ना हो इस त्यौहार में अपने घर जरूर पहुंचते हैं। और 4 दिनों तक इस त्यौहार को पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है। 14 जून से शुरू होने वाला रजो पर्व पूरे उड़ीसा में खासकर तटीय क्षेत्रों में चार दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा इस पर्व में कुमारी कन्या एवं महिलाएं खूब आनंद उठाती है एवं झूलों पर झूलना नहीं भूलती है आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि ओडिशा एक ऐसा राज्य है, जहां मासिक धर्म (पीरियड्स) का जश्न मनाया जाता है। यह पर्व 14 जून (गुरुवार) से शुरू होता है। इसे रज पर्व कहा जाता है।
कटक के चौधरी बाजार, तिनकोनिया बगीचा, दरघा बाजार, बक्सी बाजार ,नया सड़क आदि जगहों पर शाम के समय बड़े-बड़े कपड़ों के शोरूम में खरीदारी को लेकर महिलाओं एवं पुरुष की काफी भीड़ देखने को मिल रही है बाजारों में महिलाओं एवं युवतियों के लिए नए-नए डिजाइन के कपड़े उपलब्ध है।
जून माह में हर साल चार दिन तक मनाए जाने वाले रजो पर्व की परंपरा के पीछे मान्यता की राज्य के लोग मानते हैं कि भूदेवी (पृथ्वी) भगवान विष्णु की पत्नी हैं। बारिश आने वाली होती है तो भूदेवी को रजस्वला से होकर गुजरना पड़ता है। उनका यह पीरियड तीन से चार दिन तक का होता है। इस दौरान खेतीबारी, बुआई कटाई यानी जमीन से जुड़े सारे काम रोक दिए जाते हैं ताकि भूदेवी को खुश रखते हुए आराम दिया जा सके।
पर्व का पहला दिन रज होता है। दूसरा दिन मिथुन संक्रांति तथा तीसरा दिन पीरियड्स खत्म होने का माना जाता हैं। उसे बासी-रज कहा जाता है। रजोत्सव के पांचवे दिन स्त्रियां बाल धोकर शुभ कार्यों में भाग लेने लगती हैं। पीठा, चाकुली पीठा ,आम, कटहल,मुख्य खाना होता है। ओडिशा में चारों दिन बालिकाएं और युवतियां नए कपड़े पहनती हैं। सजती हैं, मेहंदी लगाती हैं। झूला झूलना आदि करती हैं। विवाहित महिलाएं तीन व कहीं कहीं चार दिनों तक कोई काम नहीं करती हैं। घर का सारा काम पुरुष करते हैं।
रज पर्व पर गांवों में देसी खेलकूद का माहौल रहता है। पेड़ों पर झूले लग जाते हैं। घर-घर मुख्य स्वादिष्ट पीठा बनाया जाता है। इस पर्व पर पान खाना एक परंपरा है। भुवनेश्वर, पुरी, कटक, जगतसिंहपुर, भद्रक, केंद्रपाड़ा, बालासोर, गंजाम जिलों का यह प्रमुख त्योहार है।
इस महीने अर्थात अषाढ़ मास में भूदेवी रजस्वला होती हैं और खेतों में बीज डाला जाता है ताकि फसल पैदावार अच्छी हो। स्थानीय भाषा में रज पर्व को रजो पर्व कहा जाता है।
चार दिनों के इस पर्व में कई दिलचस्प गतिविधियां होती है। यह ओडिशा में कृषि वर्ष की शुरुआत के साथ साथ विशेष रूप से इस पर्व को मनाते हुए आधिकारिक तौर पर लोग पहली बारिश का स्वागत करते हैं।
रज का मीठा पान खाना लोग नहीं भूलते हैं। काजू, किशमिश, कैंडी के साथ प्रस्तुत पान खरीदने के लिए लोगों की लंबी कतार लगती है। 10 रुपये से लेकर 100 रुपये तक का मीठा पान लोग शान से खरीदते हैं रज पर्व पर मीठे पान की मांग जर्दा पान की तुलना में ज्यादा होती है।
दुकान में बनारसी पान, बालेश्वरी पान, कालीबंगला पान, फ्लेवर पान, केशरयुक्त तथा कस्तूरी आदि वैराइटी के पान उपलब्ध रहते हैं। कटक में यह भी देखा गया है कि रज पर्व का त्यौहार अब ओरिया लोग ही नहीं बाहर से आए हुए आप्रवासी लोग भी बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं कुछ वर्षों से इस पर्व को कटक मारवाड़ी समाज के महिलाओं द्वारा भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है! एवं कई जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं कुछ वर्षों से यह भी देखा गया है कि गुजराती समाज, बिहारी समाज ,तेलुगू समाज के लोग बढ़-चढ़कर के रज पर्व का आनंद उठाते हैं एवं वह लोग भी उड़िया कल्चर को अपनाते हुए उस दिन झूला झूलना एवं नए कपड़ा पहनना नहीं भूलते हैं!