पान मसाला के नाम पर बेच रहे प्रतिबंधित गुटखा
1 min readकेसिंगा। आपने वस्तुओं को उन पर मुद्रित अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) से कम पर बिकते तो अक़सर देखा होगा, परन्तु वस्तु का थोक भाव अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक हो, इस पर आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा। जी हाँ, यह कमाल कर रहे हैं पान मसाले के नाम पर गुटखा बेचने वाले सफल नामक गुटखा के निर्माता।
जान कर हैरानी हो सकती है, परन्तु यह सत्य है कि अधिकतम खुदरा मूल्य दो रुपये मुद्रित सफल गुटखा पाउच का होलसेल मूल्य अढ़ाई रुपये है और वह बाजार में धड़ल्ले से तीन रुपये का बिक रहा है। इसी प्रकार चार रुपये एमआरपी वाले सफल की क़ीमत भी होलसेल में अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक वसूली जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में फोन पर सम्पर्क स्थापित किये जाने पर सफल के निर्माता द्वारा प्रश्न का सीधा जवाब दिये जाने के बजाय यह कहा गया कि -हम कुछ भी ग़लत नहीं कर रहे, जो भी कर रहे हैं क़ानून के दायरे में रहते हुये कर रहे हैं। पता चला है कि भांग, गुटखा आदि पर कर अधिक होने के कारण उसका समायोजन करने यह मार्ग अपनाया जाता है और यह गोरखधंधा पूरी तरह विभागीय अधिकारियों की जानकारी में होता है। इस परिप्रेक्ष्य में कोई उनसे सम्पर्क स्थापित न कर सके, इसलिये निर्माता द्वारा उत्पाद पर अपना फोन अथवा मोबाइल नम्बर भी प्रिन्ट नहीं किया गया है। सफल गुटखा पाउच पर डाक-पते के साथ दिया गया ई-मेल आईडी भी प्रतीकात्मक है, क्यों कि उस पर प्रेषित मेल बाउंस हो जाता है। बात यहीं आकर समाप्त नहीं हो जाती, कर अथवा शुल्क के तौर पर सरकार को चूना लगाने गुटखा उत्पादक ऐसा नायाब तरीका इस्तेमाल करते हैं कि किसी को कानों कान खबर नहीं होती। वास्तव में, बोरियों में भर कर बाहर भेजे जाने वाले गुटखा का बिल उसकी वास्तविक रक़म का आधा या उससे भी कम का बनता है। जाहिर है कि इतना सब बिना विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के सम्भव नहीं हो सकता। ज्ञातव्य है कि गुटखा सरकार द्वारा प्रतिबन्धित होने के कारण गुटखा उत्पादक गुटखा पाउच पर गुटखा न लिख पान मसाला लिखते हैं और गुटखा के साथ तम्बाकू पत्ती अलग से प्रदान करते हैं, जो कि मुफ़्त होने के साथ-साथ वह कहीं भी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होती, परन्तु विभागीय लोग इसे न केवल भली-भांति जानते हैं, बल्कि यह तकनीकी ज्ञान भी वही देते हैं। जिसके एवज में उन्हें मोटा नजराना पेश किया जाता है। क्यों कि सफल वतर्मान में बाजार का एक चर्चित ब्राण्ड है, इसलिये उसके उत्पादकों की मनमानी भी चरम पर है। यदि मामले की सही ढ़ंग से और स्वतंत्र जाँच की जाये, तो करोड़ों रुपये की कर अपवंचना के साथ इसमें लिप्त अधिकारी भी बेनक़ाब हो सकते हैं।