Recent Posts

December 23, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

कर्ज चुकाने वालों के लिए सुप्रीम कोर्ट से राहत… अब ब्याज पर ब्याज देने की जरूरत नहीं

1 min read
  • कर्ज किस्त रोक अवधि के दौरान कर्जदाताओं से कोई चक्रवृद्धि, दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा: न्यायालय

नयी दिल्ली, 23 मार्च (भाषा एजेंसी से ली गई है खबर)

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कर्जदाताओं को बड़ी राहत दी। उसने निर्देश दिया कि छह महीने की ऋण किस्त अदायगी पर रोक को लेकर उधारकर्ताओं से कोई चक्रवृद्धि या दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और यदि पहले ही इस तरह की कोई राशि ली जा चुकी है, तो उसे वापस या कर्ज की अगली किस्त में समायोजित किया जाएगा। न्यायालय ने कर्ज की किस्त लौटाने पर रोक की अवधि बढ़ाने से इनकार किया लेकिन कहा कि पिछले साल 27 मार्च को अधिसूचना के जरिये ऋण किस्त अदायगी पर रोक अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज या चक्रवृद्धि ब्याज लेने का कोई औचित्य नहीं है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले साल 27 मार्च को एक परिपत्र जारी कर कोविड-19 महामारी के चलते एक मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच चुकाई जाने वाली ऋण की किस्तों की वसूली स्थगित करने की अनुमति दी थी। बाद में, स्थगन को तीन महीने बढ़ाकर 31 अगस्त 2020 तक कर दिया गया।

शीर्ष अदालत ने विभिन्न पक्षों की तरफ से दायर याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही। इन याचिकाओं में महामारी को देखते हुए ऋण किस्त अदायगी से छूट की अवधि बढ़ाने, स्थगन अवधि के दौरान ब्याज या ब्याज पर ब्याज से पूरी तरह से छूट तथा क्षेत्रवार राहत पैकेज का निर्देश देने का आग्रह किया गया था। न्यायाधीश अशोक भूषण, न्यायाधीश आर एस रेड्डी और न्यायाधीश एम आर शाह की पीठ ने अपने आदेश में कर्ज की किस्त लौटाने पर रोक की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि यह निर्देश दिया जाता है कि ऋण किस्त अदायगी पर रोक की अवधि के दौरान उधारकर्ताओं से कोई चक्रवृद्धि या दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और यदि पहले ही इस तरह की कोई राशि ली जा चुकी है, तो उसे संबंधित कर्जदार को वापस किया जाएगा या कर्ज की अगली किस्त में समायोजित किया जाएगा।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘27 मार्च, 2020 के परिपत्र के जरिये किस्त की अदायगी पर रोक के निर्णय के बाद उस दौरान अगर ऋण नहीं लौटाया जाता है तो उसे जानबूझकर चूक करना नहीं माना जाएगा। ऐसे में इस दौरान चक्रवृद्धि ब्याज/जुर्माना लेने का कोई औचित्य नहीं है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘पूर्व में संबंधित कर्जदाताओं के खातों को एनपीए घोषित नहीं करने को लेकर जो अंतरिम राहत दी गयी थी, उसे रद्द किया जाता है।’’ न्यायालय ने कहा कि सरकार और आरबीआई ने विशेषज्ञों से सलाह लेकर देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से जो भी बेहतर था तथा जितना संभव था, राहत प्रदान की। पीठ ने कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है जो पूर्ण रूप से केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है। ऐसे मामलों में केवल इस आधार पर न्यायिक समीक्षा नहीं होती क्योंकि कुछ वर्ग/क्षेत्र ऐसे पैकेज या नीतिगत निर्णय से संतुष्ट नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि वह केंद्र की नीति संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता है, जब तक कि यह दुर्भावनापूर्ण और मनमाना न हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह पूरे देश को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान राहत देने के संबंध में प्राथमिकताओं को तय करने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से यह नहीं कहा जा सकता है कि केंद्र और आरबीआई ने कर्जदारों को राहत देने पर विचार नहीं किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *