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November 19, 2024

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उत्तर प्रदेश जिला पंचायत चुनाव में भाजपा से आगे निकली समाजवादी पार्टी, आप का शानदार प्रदर्शन… सीटों के अंतिम परिणाम इस प्रकार

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लखनऊ, 8 मई। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बीच संपन्न हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कोरोना लहर के चलते पूर्वी व मध्य यूपी में तो किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में भाजपा को बुरे दिन देखने पड़े हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में मिली हार है जहां उसे समाजवादी पार्टी ने पीछे छोड़ दिया।आगामी विधानसभा चुनावों में अयोध्या के राम मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति को बड़ा मुद्दा बनाने का ख्वाब संजो रही भाजपा को इन दोनों जिलों में मुंह की खानी पड़ी है।योगी के गढ़ गोरखपुर में भी वह नम्बर वन नहीं बन पाई।मथुरा में उसे तो बसपा से मुंह की खानी पड़ी है।यहॉं सपा का भी प्रदर्शन बहुत बुरा था।उसे यहॉं मात्र 1 सीट मिली है।वही आगरा में पिछले चुनाव के 16 की अपेक्षा इस बार मात्र 5 सीटें ही मिली हैं।
सीटों के अंतिम परिणाम इस प्रकार रहे-

भाजपा 750
सपा 760
बसपा 381
कांग्रेस 76
आप 64
निर्दल व अन्य 951

30% सीटों पर निर्दलीयों की जीत

उत्तर प्रदेश में हुए जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव के नतीजों को देखें तो भाजपा को अधिकांश सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा है। प्रत्याशियों की सूची से मिलान करने पर पता चलता है कि भाजपा करीब 75 फीसदी सीटें हार गई।विधानसभा चुनाव में जहां उसे 77.4% व लोकसभा में 77.5% सीटें मिली थीं,वही जिला पंचायत चुनाव में उसे मात्र 24.59% सीटों पर ही जीत मिली है।मुख्य विपक्षी पार्टी सपा को 24.92 व बसपा को 12.49% सीटों पर जीत मिली है।भाजपा को 75% से अधिक सीटों पर हर का सामना करना पड़ा है। अंतिम परिणामों के मुताबिक जिला पंचायत की 3,050 सीटों में भाजपा ने 750, सपा ने 760 सीटें जीती तो बसपा को 381 सीटों पर जीत मिली है। कांग्रेस को 76 सीटें मिली हैं जबकि आम आदमी पार्टी को 64 व राष्ट्रीय लोकदल को 68 सीटों पर जीत मिली। निर्दलीय प्रत्याशियों ने सबसे ज्यादा 951 सीटों पर जीत हासिल की है।सपा-आरएलडी गठबंधन को 828 सीटें मिली हैं।
-मथुरा में बसपा रही पहले स्थान पर-
भाजपा की चुनावी रणनीति के केंद्र में रहे अयोध्या, मथुरा और काशी में पार्टी को करारा झटका लगा है। मथुरा जिला पंचायत के चुनाव परिणाम में जिले में बसपा ने पहला स्थान प्राप्त किया और भाजपा और रालोद 9-9 सीट जीतकर बराबरी पर हैं।जिले में 3 सीटों पर निर्दलीय जीते हैं,वही सपा को मात्र 1 सीट मिली है। मथुरा में प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं मांट क्षेत्र से विधायक श्यामसुंदर शर्मा की धर्मपत्नी एवं पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुधा शर्मा बसपा से चुनाव जीत गई, वहीं पूर्व विधायक भाजपा प्रणतपाल सिंह के बेटे चुनाव हार गए। पंचायत चुनाव में अयोध्या और काशी दोनों जगहों से आये नतीजे भाजपा को परेशान करने वाले हैं। अयोध्या में 40 में से 19 सीट समाजवादी ने जीती है, भाजपा को केवल 6 सीटें मिली हैं। इसी तरह वाराणसी में 40 सीटों में से सपा को 14 सीटें हासिल हुई तो भाजपा को केवल 8 सीटें ही मिल सकी।यहां बसपा को 5,अपना दल (एस) को 3, सुभासपा व आप को 1-1 और 8 सीटों पर निर्दलीयों को जीत मिली है।

कोरोना, किसान आंदोलन ने बिगाड़ा भाजपा का खेल
परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ माने जाने वाले राजधानी लखनऊ में भी इसकी करारी हार हुई।25 सदस्यीय जिला पंचायत में भाजपा को मात्र 3 सीटें ही मिली हैं।हालांकि बड़ी तादाद में जीते निर्दलीय जिला पंचायत के सदस्यों को भाजपा अपने पाले में बताकर जीत प्रचारित कर रही है।पर, वास्तविकता यह है कि भाजपा ने प्रदेश भर के सभी जिला पंचायत सदस्यों के पदों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे और सबसे ज्यादा व्यवस्थित तरीके से चुनाव लड़ा था।समाजवादी पार्टी यदि भाजपा की तरह चुनाव लड़ी होती तो उसके हजार से अधिक उम्मीदवार जीते होते।भाजपा के लिए पश्चिम में किसान आंदोलन ने तो पूरब में कोरोना लहर ने खेल बिगाड़ने का काम किया। कोरोना लहर के चरम पर होने की दशा में पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर चुनाव हुए वहां भाजपा को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ा।कुशीनगर जिले की 61 जिला पंचायत सीटों में मात्र 6 सीटें भाजपा के खाते में आईं,जबकि 9 सीटों पर सपा व 3 पर बीएसपी का कब्जा हुआ है और कांग्रेस ने भी 3 सीटें जीती। यहां एआईएमआईएम व जन अधिकार पार्टी ने भी 1-1 सीट जीत कर खाता खोला जबकि 38 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपना लोहा मनवाया।बस्ती में जिला पंचायत सदस्य चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा जहां इसके 43 उम्मीदवारों में से 9 लोगों ने जीत दर्ज कर पाए। जौनपुर, बलिया, आज़मगढ़, ग़ाज़ीपुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, अमेठी, सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर, सिद्धार्थनगर, चन्दौली, बहराइच, खीरी, उन्नाव, औरैया, इटावा, मैनपुरी,कनौौज, हरदोई, अलीगढ़, प्रतापगढ़, चित्रकूट,रायबरेली आदि जिलों में भी भाजपा पिछड़ गयी।
यही स्थिति रही तो त्रिशंकु रहेगी विधानसभा-

जिला पंचायत चुनाव परिणाम का संकेत है कि यदि इसी तरह की स्थिति रही तो विधानसभा की स्थिति त्रिशंकु रहेगी।किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा।सपा को अपने सहयोगी रालोद के साथ 27.15% सीटों पर जीत मिली है।वही सत्ताधारी पार्टी को 24.59% व बसपा को 12.49% सीटों पर जीत मिली है।आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने की स्थिति में आने के लिए 31 से 34 प्रतिशत वोट शेयरिंग लाना होगा।जिस तरह की स्थिति उभरकर आयी है,उसके अनुसार नकारा नहीं जा सकता कि अगर इसी तरह की स्थिति विधानसभा की बनी तो भाजपा सपा को रोकने के लिए मायावती को आगे कर सकती है।क्योंकि वह 3 बार ऐसा कर मायावती की सरकार बनवा चुकी है।
सपा ने 3050 में 100 अतिपिछड़ों को भी नहीं किया अधिकृत

सपा को सत्ता पाने के लिए जातिगत समीकरण को मजबूत करने पर जोर देना होगा।अतिपिछड़ी जातियाँ अभी भी सपा से बिदकी हुई हैं।जिला पंचायत की 3050 सीटें हैं,पर सपा ने निषाद, लोधी,पाल,कुशवाहा, मौर्य,राजभर,चौहान,बिन्द, प्रजापति,किसान,साहू,कश्यप जाति के 100 भी अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं किया।कई जातियों का आरोप है कि पंचायत चुनाव में सपा ने अतिपिछड़ी जातियों के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार किया तो विधानसभा चुनाव में उससे न्याय व सम्मान की उम्मीद कैसे की जा सकती है।अतिपिछड़ी जातियाँ सपा के साथ जुड़ने को आतुर थीं,पर सपा नेतृत्व द्वारा इन्हें जोड़ने के प्रति गम्भीरता नहीं दिखाई जा रही।
लौटनराम निषाद
(सामाजिक-राजनीतिक समीक्षक व विश्लेषक)

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