केंद्र सरकार ने ही राज्यों का अधिकार छीना, ओबीसी संगठनों के दबाव में लाए बिल
1 min read- चंद्रशेखर प्रसाद, लखनऊ
- ओबीसी की सूची में जोड़ने घटाने का अधिकार राज्यों को ही था, भाजपा सरकार ने लिया था वापस
लखनऊ,9 अगस्त। राज्य पिछड़ावर्ग आयोग की संस्तुति पर राज्य सरकार किसी जाति को ओबीसी की सूची में शामिल करती रही है। ओबीसी की सूची में किसी भी प्रकार के संशोधन व परिवर्धन का अधिकार राज्य सरकारों के पास ही निहित रहा है, जिसे कुछ महीने पूर्व केंद्र सरकार ने ही खत्म किया था। केंद्र सरकार ने निर्णय लिया था कि जिस तरह एससी, एसटी की सूची में किसी प्रकार का संशोधन केंद्र सरकार कृति है। उसी तरह OBC की सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग के पास प्रस्ताव भेजेगा और एन सी बी सी की सहमति व संस्तुति पर केंद्र सरकार निर्णय लेगी।विकासशील इंसान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चौ. लौटनराम निषाद ने उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने ही राज्यों से ओबीसी की सूची में जातियों को शामिल करने का अधिकार छीना था।पिछड़े वर्ग के संगठनों के विरोध के बाद राज्यों को अधिकार देने का संसद में बिल पेश किया गया है।
निषाद ने कहा कि ओबीसी को झूठा लॉलीपाप दिखाकर राजनीतिक लाभ लेने का यह सुनियोजित षड्यंत्र है।नीट में भी ओबीसी का 27% कोटा भाजपा सरकार ने ही खत्म किया था,जब ओबीसी के संगठन आंदोलित हो गए तो केंद्र सरकार को फिर से नीट में ओबीसी कोटा बहाल करना पड़ा। जबकि ओबीसी को 2008 से ही उच्च व केंद्रीय शिक्षण प्रशिक्षण संस्थानों में आरक्षण कोटा दिया गया था जिसे 2017 में मोदी सरकार ने खत्म कर दिया था।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार अपने ही निर्णय को बदल कर सियासी खेल खेल रही है। उन्होंने सेन्सस 2021 में जातिगत जनगणना कराने व एससी, एसटी की तरह कार्यपालिका, विधायिका के साथ सभी स्तरों पर समानुपातिक कोटा देने और मंडल कमीशन की अन्य सिफारिशों को लागू करने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी अपने को पिछड़ी जाति का बताते हैं।यदि वे वास्तव में ओबीसी हैं तो मंडल मसीहा बीपी मंडल व पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की संसद परिसर में प्रतिमा लगवाएं और इन महापुरुषों को भारतरत्न देने का निर्णय लें।