बीएड की फर्जी डिग्री के आधार नौकरी करने वाले हजारों शिक्षकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका, बर्खास्तगी को बताया सही
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त हजारों सहायक टीचरों को बर्खास्त करने के एकल पीठ के आदेश को सही माना है।
कोर्ट ने अंकपत्र में छेड़छाड़ के इन आरोपियों की जांच चार महीने में पूरी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह जांच कुलपति की निगरानी में की जाए। कोर्ट ने विश्वविद्यालय को दिए गए जांच के एकल पीठ के आदेश को सही मानते हुए कहा कि जांच होने तक चार माह तक ऐसे अध्यापकों की बर्खास्तगी स्थगित रहेगी। वे वेतन सहित कार्य करते रहेंगे। इनकी बर्खास्तगी का आदेश जांच के परिणाम पर निर्भर करेगा।
कोर्ट ने जांच की निगरानी कुलपति को सौंपते हुए कहा है कि जांच में देरी हुई तो सम्बंधित अधिकारी को वेतन पाने का हक नहीं होगा। जांच की अवधि नहीं बढ़ेगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जांच के बाद डिग्री सही होने पर बर्खास्तगी वापस ली जाए। कोर्ट ने दस्तावेज पेश करने वाले सात अभ्यर्थियों को एक माह में प्रवेश परीक्षा में बैठने का सत्यापन करने का भी निर्देश दिया है और कहा है कि यदि सही हो तो इनकी बर्खास्तगी रद्द की जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने किरण लता सिंह सहित हजारों सहायक अध्यापकों की विशेष अपील को निस्तारित करते हुए दिया है। अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय, स्थायी अधिवक्ता राजीव सिंह ने प्रदेश सरकार की तरफ से अपील पर प्रतिवाद किया जबकि अशोक खरे, आरके ओझा व एचएन सिंह ने अपीलार्थियों का पक्ष रखा। विश्वविद्यालय की तरफ से अशोक मेहता व बोर्ड की तरफ से जेएन मौर्य ने बहस की।
न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी ने वरिष्ठ न्यायमूर्ति एमएन भंडारी के फैसले से सहमति जताते हुए अलग से हिन्दी भाषा में फैसला दिया। इसमें उन्होंने गुरु के महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि शिक्षा एक पवित्र व्यवसाय है। यह जीविका का साधन मात्र नहीं है। राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोई छल से शिक्षक बनता है तो ऐसी नियुक्ति शुरू से ही शून्य होगी। उन्होंने कहा कि छल कपट से शिक्षक बनकर इन लोगोंने न केवल विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया है बल्कि शिक्षक के सम्मान को भी ठेस पहुंचाई है।
गौरतलब है कि आगरा विश्वविद्यालय की 2005 की बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर हजारों लोगों ने सहायक अध्यापक की नियुक्ति प्राप्त की है। हाईकोर्ट ने इसकी जांच का आदेश देते हुए एसआईटी गठित की। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में व्यापक धांधली का खुलासा किया। उसके बाद सभी को कारण बताओ नोटिस जारी की गई। 814 लोगों ने जवाब दिया जबकि शेष आए ही नहीं। बीएसए ने फर्जी अंक पत्र व अंकपत्र से छेड़छाड़ की दो श्रेणियों वालों को बर्खास्त कर दिया। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अंक पत्र में छेड़छाड़ करने के आरोपियों की विश्वविद्यालय को जांच करने का निर्देश दिया था और कहा था कि बीएसए बर्खास्त अध्यापकों से अंतरिम आदेश से लिए गए वेतन की वसूली कर सकता है। खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश के इस भाग को रद्द कर दिया है।
पिछले महीने फैसला सुरक्षित हुआ था
सहायक अध्यापकों की इस विशेष अपील पर कई सप्ताह तक बहस के बाद कोर्ट ने 29 जनवरी को फैसला सुरक्षित कर लिया था। इन सहायक अध्यापकों को फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी ले लेने के कारण एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर बीएसए ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। इन्होंने अपील में बर्खास्तगी को चुनौती दी थी।
एसआईटी की रिपोर्ट पर एकल पीठ ने दिया था फैसला
एकल पीठ ने एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर इन सहायक अध्यापकों की बीएसए द्वारा की गई बर्खास्तगी को सही ठहराया था। अपील में कहा गया था कि बीएसए का बर्खास्तगी आदेश एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है, जो गलत है। कहा गया था कि पुलिस रिपोर्ट को बर्खास्तगी का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
बीएसए ने बर्खास्तगी से पूर्व सेवा नियमावली के कानून का पालन नहीं किया जबकि सरकार की तरफ से बहस की गई कि इन सहायक अध्यापकों की बर्खास्तगी एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर की गई है। लेकिन एसआईटी की रिपोर्ट हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में आई है। हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच कर एसआईटी से रिपोर्ट देने को कहा था। बहस की गई थी कि फर्जी डिग्री या मार्कशीट के आधार पर सेवा में आने वालों की बर्खास्तगी के लिए सेवा नियमों का पालन करना जरूरी नहीं है।