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October 16, 2024

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बिन्द्रानवागढ़ में प्रवेश के लिए आदिवासियों के आराध्य देव कचना धुर्वा की आज भी लेनी होती है अनुमति

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  • लाखों लोगों के आस्था का केन्द्र बिन्द्रानवागढ़ के पहाड़ी पर महान वीर पराक्रमी राजा कचनाध्रुर्वा के दरबार में श्रद्धालु की भीड़
  • नवरात्र में पंचमी के बाद ही पहाड़ी के चोटी तक पहुंच पाते है श्रद्धालु, अपने भीतर अनेक रहस्यों को समेटे बिन्द्रानवागढ़
  • शेख हसन खान, गरियाबंद

गरियाबंद । छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख गढ़ के रूप में बिन्द्रानवागढ़ को जाना जाता है। प्रदेश के 90 विधानसभा क्षेत्र में बिन्द्रानवागढ़ भी विधानसभा क्षेत्र के नाम पहचाना जाता है और मैनपुर गरियाबंद नेशनल हाईवे 130 सी मैनपुर से यहां 22 किमी की दूरी पर स्थित है जहां विशाल पहाड़ी है और इस पहाड़ी के चोटी में महान वीर पराक्रमी राजा कचनाध्रुर्वा का किला है। राजा कचनाध्रुर्वा अपने वीरता से 9 राज्यो को जीतकर नवागढ़ में अपना राज स्थापित किया था और पहाड़ी के चारो तरफ 9 तालाबों का निर्माण किया गया है जिससे उनका किला शत्रुओं से सुरक्षित रह सके। जनश्रुति के अनुसार कचनाध्रुर्वा देवपुरूष था उनके साथ चार देवी -देवता शक्ति के रूप में हमेशा उनके सुरक्षा करते थे और चार देवी -देवताओं का उनके द्वारा नवागढ़ के पहाड़ी में स्थापित किया गया है जहां आज भी पूरे बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र सहित प्रदेश व ओड़िशा राज्य सहित अनेक राज्यो के लोग बड़ी संख्या में श्रद्धा के साथ पहुंचते है और पूजा अर्चना करते हैं। ग्राम बिन्द्रानवागढ़ खम्हारीपारा के वरिष्ठ नागरिक व पुजारी जागेश्वर कोमर्रा, जगदीश कोमर्रा, जयसिंह दाऊ, भगवान सोरी, हेमंत कोमर्रा, प्रकाश कोमर्रा, उमेश दाऊ, लच्छु सोरी, आनंद ठाकुर रजउराम नेताम,सीयाराम,सुखराम मरकाम,दसरू मरकाम, रामलाल, शिवलाल, श्रवण, तुलसीराम ने बताया बिन्द्रानवागढ़ की पहाड़ी लाखों लोगों के आस्था का प्रमुख केन्द्र है और इस पहाड़ी में राजा कचनाध्रुर्वा के साथ गादीमाई, कालाकुंवर, पाठरानी, चारदेवता, बुढ़ाराजा, रानीमाई, ठाकुरदेव, माटीमहतारी सहित कई देवी -देवताओं के मंदिर है जहां पूरे बिन्द्रानवागढ़ राज के साथ प्रदेश व ओड़िशा प्रदेश के लोग पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं। खासकर नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जा रहा है। ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार, आदिवासी परंपरा अनुसार यहां पूजा पाठ वर्षो से किया जा रहा है और जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से आते है और जो भी मन्नत मांगते है। वह पूरा होता है इसलिए हर वर्ष यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है।

  • नवरात्र के पंचमी के बाद ही पहाड़ी के चोटी पर चढ़ पाते है श्रद्धालु

बिन्द्रानवागढ़ की पहाड़ी के चोटी पर राजा कचनाध्रुर्वा देव की प्रमुख मंदिर है और पहाड़ी के निचले छोर पर भी उनका आसन है लेकिन नवरात्र पर्व में पंचमी से पहले कोई भी पहाड़ी के चोटी तक नही पहुंचते पंचमी से यहां आदिवासी परंपरा अनुसार देवदशहरा का आयोजन किया जाता है और नवरात्र के पंचमी पर कचनाध्रुर्वा देव के आसन में झाखर पुजारी, बैगा, सिरहा द्वारा पालो चढ़ाने के बाद ही श्रद्धालु वहां तक पहुंचते है इस पहाड़ी में ठाकुर ठकराईन देव का भी पूजा अर्चना किया जाता है और पहाड़ी के नीचे गढ़िया देवी की मंदिर है।

  • राजा रजवाड़े जमाने के खड़क तलवार और पहाड़ी में कई रहस्यमय गुफा

नवागढ़ की पहाड़ी नेशनल हाईवे से लगा हुआ है और पहाड़ी में देव स्थल तक पहुंचने के लिए बकायदा सैकड़ो सीढ़ियो का निर्माण किया गया है।पहाड़ी के ऊपर कचनाध्रुर्वा देव स्थल पर प्राचीन जमाने के बड़ी संख्या में छोटे -छोटे मूर्तियां है यह पहाड़ी घनघोर जंगल के साथ काफी खुबसूरत पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करता है। बारिश के इन दिनों में पहाड़ी क्षेत्र से कलकल करते झरना जगह -जगह गिरते नजर आता है पहाड़ी के ऊपर कई रहस्यमय स्थल है जहां क्षेत्र के आदिवासी समाज का गहरी आस्था का केन्द्र है। पहाड़ी में आज भी राजा रजवाड़े जमाने के खड़क तलवार रखा हुआ है साथ ही रहस्यमय गुफा है। यह गुफा राजा के किले से निचले हिस्से दूसरे पहाड़ी पर निकलती है लेकिन अब यह किला का मात्र अवशेष ही बाकी है इसके बारे में सिर्फ ग्रामीण जानकारी देते है यहां निशान जिसे एक तरह से वाद्ययंत्र कहते हैं। वह भी है लेकिन अब इसकी आवाज नही आती है। ग्रामीणों के बताये अनुसार इस वाद्ययंत्र निशान पहले दशहरा के दिन अपने आप बज उठता था।

  • रानी माई का समाधी स्थल 1856 से बिन्द्रानवागढ़ में आस्था का केन्द्र

बिन्द्रानवागढ़ पहाड़ी के नीचे नेशनल हाईवे के किनारे प्राचीन कालीन समाधी स्थल दिखाई देता है जहां रानी चंद्रकुमारी का नाम अंकित है इसके संबंध में ग्रामीणो ने बताया यह रानी महान पराक्रमी वीर कचनाध्रुर्वा के परिवार के रानी माई चंद्रकुमारी शाह का मठ है और इसका निर्माण 1854 के आसपास किया गया है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि राजा कचनाध्रुर्वा की राजधानी बिन्द्रानवागढ़ में 1857 तक रही होगी। ग्रामीणों ने बताया आज भी इनके वंशज छुरा में राज परिवार है और बाद में इसकी राजधानी छुरा में बनाई गई।

  • महान पराक्रमी राजा कचना ध्रुर्वा की प्रतिमा लगाने की ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है मांग

महान पराक्रमी राजा कचना ध्रुर्वा की विशाल प्रतिमा लगाने की मांग इस क्षेत्र के ग्रामीणों के द्वारा वर्षो से किया जा रहा है क्योंकि बिन्द्रानवागढ़ को महान पराक्रमी राजा कचना ध्रुर्वा की राजधानी के नाम से जाना जाता है और यह प्रमुख धार्मिक आस्था का केन्द्र है वही दूसरी ओर यह प्राकृतिक व पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है साथ ही लाखो लोगो के आस्था का केन्द्र है और तो और महान पराक्रमी वीर राजा कचनाध्रुर्वा के मुख्य स्थल है। इसके बावजूद आज तक बिन्द्रानवागढ़ प्रशासनिक व पर्यटन के दृष्टि में पिछड़ा हुआ है जबकि होना यह चाहिए कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए बेहतर विश्राम गृह और मंदिर तक सीढ़ियो के दोनो ओर रेलिंग के साथ पेयजल व्यवस्था, पहाड़ी में बिजली व्यवस्था के साथ गार्डन व मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराते हुए इस बिन्द्रानवागढ़ को पर्यटन स्थल घोषित कर यहां सभी मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए क्योकि बिन्द्रानवागढ़ के नाम से विधानसभा क्षेत्र भी है जहां अब तक कई विधायक, सांसद चुने गये बावजूद अब तक बिन्द्रानवागढ़ ग्राम मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है।

  • नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्वलित कर पूजा अर्चना जारी

बिन्द्रानवागढ़ माता देवालय में ज्योति कलश प्रज्वलित कर नवरात्रि का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है यहां पूरे 9 दिन माता सेवा के साथ जसगीत के साथ पूजा अर्चना कर देवी देवताओं की सवारी निकाली जाती है। विजयदशमी के दिन क्षेत्रभर की देवी देवता बिन्द्रानवागढ़ में पहुंचते हैं और पूजा अर्चना के बाद शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा रैनी मारकर विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है।

  • नवरात्र की पंचमी के दिन पहाड़ी पर कचना धुर्वा की विशेष पूजा अर्चना

नवरात्र पर्व के पंचमी पर पहाड़ी में कचना धुर्वा की पालों चढ़ा कर विशेष पूजा अर्चना किया गया है ग्रामीणों ने बताया विजयदशमी के दिन यहां पालो का पूजा अर्चना कर शोभायात्रा के साथ सभी देवी देवता रैनी मारकर दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।

  • बिंद्रनवागढ में प्रवेश के लिए आदिवासियों के आराध्य देव कचनाधुर्वा की लेनी होती है अनुमति, ये रिवाज आज भी

मूल निवासी कहे या आदिवासी इनके अराध्य देव में कचना धुर्वा का नाम सुमार है। धार्मिक, समाजिक हो या कोई भी मांगलिक कार्य बगैर कचना धूर्वा के स्मरण के बिना कार्य पूर्ण नहीं होता। इतना ही नहीं घनघोर जंगलों से गुजरना हो और यात्रा को सफल बनाना होता था, तब भी इनके चरणों पूजा अर्चना के बाद ही आगे बढ़ा जाता था. मैनपुर के बाजाघाटी, गरियाबंद के बारूका व छुरा प्रवेश से पहले मुख्य मार्ग पर कचना धुर्वा का देवालय मौजूद है. जंहा आज भी राहगीर देवालय में माथा टेकने के बाद ही आगे बढ़ते हैं. कहा जाता है यह उनके क्षेत्र में निर्बाध आवागमन की अनुमति मांगी जाती है।