छत्तीसगढ़ के कश्मीर के नाम से मशहूर पहाड़ी पर बसे ग्राम ओंढ – आमामोरा सड़क, स्वास्थ्य, पेयजल, शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहा
1 min read- 26 वर्ष पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ओंढ़ आमामोरा मे कमार जनजातियों के बीच बिताई थी रात और समस्याओं को सुना था
- शेख हसन खान, गरियाबंद
गरियाबंद। उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के अंतर्गत गरियाबंद विकासखण्ड के अंतिम छोर और जमीन सतह से लगभग 25 सौ मीटर की उंचाई पहाड़ों के उपर बसे विशेष पिछडी जनजाति कमार आदिवासी बाहूल्य ग्राम पंचायत ओंढ एंव आमामोरा आज आजादी के 7 दशक पश्चात भी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। ग्राम पंचायत ओढ एंव आमामोरा दो अलग अलग ग्राम पंचायत है और ये वही ग्राम पंचायत है, ज़हां नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण विधानसभा और लोकसभा की चुनाव में शासन मतदान दल को हेलीकाप्टर के सहारे पहुचाती है, तब कही जाकर आमामोरा और ओढ में मतदान हो पाता है, इस खुबसूरत पहाड़ी क्षेत्र को छत्तीसगढ का कश्मीर भी कहा जाता है।
इस पहाडी क्षेत्र में ठंड इतना ज्यादा पडता है कि सुबह घरों के उपर खपैरल और पेड पौधें के पत्तो में बर्फ जम जाती है मैनपुर गरियाबंद नेशनल हाईवे मार्ग से मैनपुर से 09 किलोमीटर दुर छिन्दौला से आमामोरा तक कच्ची सडक का निर्माण किया गया, लेकिन आज आजादी के 75 वर्षो बाद भी आमामोरा ओढ तक पहुचने के लिए पक्की सडक का निर्माण नहीं हो पाया है। आमामोरा पहुचने के लिए 12 से 15 छोटे बडे नदी नालो को पार किया जाता है। ग्राम पंचायत ओंढ़ की जनसंख्या लगभग 650 के आसपास है और इस पंचायत क्षेत्र में कमार, भुंजिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। साथ ही अन्य समाज के लोग भी निवास करते हैं। ग्राम पंचायत ओंढ के तीन आश्रित ग्राम है अमलोर, हथौडाडीह, और नगरार इन ग्रामो तक पहुचना बहुत बडी चुनौती है क्योंकि सडक की स्थिति बेहद ही खराब है पंगडडी मार्ग से होकर यहा पहुचा जाता है, ग्राम ओंड में वन विभाग द्वारा एक रेस्ट हाऊस का निर्माण किया गया है, ग्राम ओढ से लगभग 08 किलोमीटर दुर ग्राम पंचायत आमामोरा है जिसकी जनसंख्या 850 के आसपास है यहा भी कमार भुजिया जनजाति के अलावा, रावत एंव अन्य जनजाति के लोग निवास करते है, ग्राम पंचायत आमामोरा के दो आश्रित ग्राम है जो ओडिसा सीमा से लगा हुआ है। जोकपारा और कुकरार।
- ग्रामीणो को शुध्द पेयजल की है दरकार, आयरन युक्त पानी पीने मजबूर
बीहड पहाडी के उपर बसे ग्राम पंचायत ओंढ आमामोरा व उनके आश्रित ग्रामो में शासन के द्वारा हेडपम्प लगाया गया है, और दो जगह वन विभाग द्वारा सोलर पम्प लगाया गया है, लेकिन अधिकांश हेडम्पपों में आयरन युक्त लाल पानी निकलने के कारण ग्रामीण नदी नाले झरिया और कुंआ का पानी पीना पंसद करते है क्योंकि हेडपम्पों से निकलने वाला पानी कुछ समय बाद लाल हो जाता है, और लाल पानी से खाना नही बन पाता।
- नहीं है स्वास्थ्य सुविधा भगवान भरोसे जीवन यापन करते हैं ग्रामीण
पहाडी के उपर बसे आमामोरा और ओढ ग्राम पंचायत में स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति बेहद खराब है। यहां घटना दुर्घटना या गंभीर स्थिति के साथ गर्भवती माताओं को विषम परिस्थितियों मे कांवर और खाट में लिटाकर मिलो पैदल दुरी तय कर अस्पताल तक लाना पडता है हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा चार छै माह में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कर दवा कर वितरण किया जाता है। यहा के लोगों ने नियमित और स्थाई रूप से उपस्वास्थ्य केन्द्र खोलने की मांग की है।
नाम का है सौर उर्जा प्लेट सारे उपकरण खराब पड़े है
ग्राम पंचायत ओंढ़ आमामोरा के ग्रामीणो ने बताया कि ओंढ आमामोरा सहित आश्रित ग्रामो में शासन द्वारा आज तक बिजली नही लगाया गया है लेकिन सौर उर्जा प्लेट लगाया गया है, जिसमें आए दिनों बैटरी, सौर प्लेट में खराबी के चलते इसका जो लाभ मिलना चाहिए नही मिल पाता, महज कुछ घंटें ही चलने के बाद पुरा रात यहा के ग्रामीणो को लकडी के अलाव जलाकर रात के अंधेरे से संघर्ष करना पडता है।
- 26 वर्ष पहले पहुंचे थे मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ओंढ़ आमामोरा
26 वर्ष पहले अविभाजि मध्यप्रदेश के दौरान मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जनवरी सन् 1994 में कडाके के ठंड के बीच ग्राम ओंढ और आमामोरा पहुचे थे, और बकायदा मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ग्राम ओंढ आमामोरा में पुरा रात बिताया था। यहा के विशेष पिछडी कमार , भुंजिया जनजातियों के जीवन शैली को बहुत नजदीक से देखा था रात में अलाव जलाकर ग्रामीणों की समस्या को सुना था, और ग्राम ओढ से आमामोरा लगभग 08 किलोमीटर पैदल दिग्विजय सिंह चलकर पहुचे थे। वही दूसरी ओर आमामोरा ओंढ में वर्ष 2008- 09 में जब आंध्र स्त्रोत उल्टी दस्त से एक दर्जन ग्रामीणों की मौत हो गई थी उस दौरान छत्तीसगढ के प्रथम मुख्यमंत्री स्वः अजीत जोगी नदी नालो को पार कर बारिश के दिनो में आमामोरा पहुचे थे, और उन्होने ओढ और आमामोरा के ग्रामीणा की समस्याओं को सुना था,
- धूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र आमामोरा ओड़िसा सीमा में एडीशनल एसपी सहित 7 जवान हुए थे शहीद
ज्ञात हो कि ओंढ़ आमामोरा क्षेत्र ओड़िसा सीमा से लगा हुआ है और धूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। लगभग 10 वर्ष पहले इस क्षेत्र में एडीशनल एसपी सहित 7 पुलिस जवान यहां नक्सली हमले में शहीद हो गये थे।
- तत्कालीन कलेक्टर निरंजन दास ने मोटरसायकल से किया था ओंढ़ आमामोरा का दौरा
गरियाबंद जिला निर्माण के बाद तत्कालीन कलेक्टर निरंजन दास एवं पुलिस अधीक्षक ने मोटरसायकल से इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर समस्याओं को जाना था उसके बाद से अबतक कोई भी आला अधिकारी और जनप्रतिनिधियों का इस क्षेत्र में आगमन नही हुआ है।
- ओंढ़ आमामोरा की समस्याओं के समाधान के लिये आज हुआ बैठक
ओंढ़ आमामोरा क्षेत्र के मूलभूत समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर आज रविवार को दोनो ग्राम पंचायतों कें सैकड़ों ग्रामीणों की बैठक आमामोरा मे आयोजित किया गया जिसमें ग्रामीणों की प्रमुख मांग छिन्दोला से आमामोरा तक पक्की सड़क पुल पुलिया, उपस्वास्थ्य केन्द्र भवन निर्माण, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता नियुक्ति, ग्राम पंचायत के सभी आश्रित ग्रामों में जल जीवन मिशन योजना के तहत नल लगाने ओंढ़ में हाई स्कूल बालिका आश्रम खोलने दोनों ग्राम पंचायतों में विद्युतिकरण, स्टॉपडेम निर्माण, नया स्कूल भवन आदि मांग को लेकर बैठक आयोजित किया गया। और इस समस्या से गरियाबंद कलेक्टर को अवगत कराने का निर्णय लिया गया है। इस मौके पर आमामोरा के सरपंच श्रीमती मैनाबाई, ओंढ के सरपंच रामसिंह सोरी, उपसरपंच विष्णुराम, नर्मदा बाई, जयराम, बाबूलाल, सुकराम, कृष्ण कुमार, रामबती, सावित्री, रूखमणी, पुष्पाबाई यादव, सुन्दर यादव सहित सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।
- सरपंच ने बताया
ग्राम पंचायत ओढ़ के सरपंच रामसिंह सोरी ने चर्चा में बताया बिहाड पहाड़ी के ऊपर बसे ग्राम पंचायत ओढ एवं आमामोरा उड़ीसा सीमा से लगा हुआ है और हमारे इस गांव में विधायक सांसद उच्च अधिकारियों का वर्षों से दौरा नहीं हुआ है जिसके कारण समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। आज आजादी के 75 वर्ष हो गया है। इसके बाद भी एक दर्जन पारा टोला जो पहाड़ी के ऊपर बसे गांव है यहां के ग्रामीण गंदा झरिया का पानी पीने को मजबूर हो रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधा कुछ भी नहीं है उप स्वास्थ्य केंद्र भवन स्वीकृत होने की बात बताई जाती है लेकिन अब तक निर्माण नहीं किया गया है। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता नहीं होने से महिलाओं को प्रसव डिलीवरी के लिए भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है यहां तक बारिश के दिनों में एंबुलेंस वाहन नहीं आने के कारण खाट या कावर में बिठाकर गर्भवती महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल ले जाते हैं। उन्होंने बताया आमामोरा और ओढ़ सहित कोई भी गांव में बिजली नहीं लगा है इन सभी समस्याओं को लेकर आज दोनों ग्राम पंचायत के ग्रामीणों की बैठक आयोजित किए थे। इस बैठक में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित हुए। बैठक में निर्णय लिए हैं कि अपने क्षेत्र की समस्याओं से गरियाबंद जिला के कलेक्टर प्रभात मलिक को आवेदन देकर जल्द समस्या समाधान करने की मांग करेंगे।